जानें कोरोना ट्रीटमेंट में कितनी इफेक्टिव है हर्ड इम्यूनिटी

कोरोना वायरस का संक्रमण इतना गंभीर रूप ले चुका है कि पूरी दुनिया में हाहाकार मचा हुआ है। अमेरिका और ब्राजील के बाद भारत विश्व का तीसरा सबसे अधिक प्रभावित देश है, जहां कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों का आंकड़ा 10 लाख के करीब है। लोगों को संक्रमण से बचाने के लिए विश्व के अधिकतर देशों में लॉकडाउन, कंटेनमेंट जोन, सोशल डिस्टेंसिंग जैसे उपाय अपनाए जा रहे हैं। लेकिन हालात काबू में नहीं आ रहे हैं।
अभी कोरोना वायरस का वैक्सीन भी बाजार में नहीं आया है, इसलिए इसके संक्रमण से बचाव के लिए प्राकृतिक रूप से हर्ड इम्यूनिटी विकसित करने के विकल्प पर विचार किया जा रहा है। चिकित्सा जगत से जुड़े हुए कई लोगों का मानना है कि इस अत्यधिक संक्रामक वायरस से निपटने के लिए हर्ड इम्यूनिटी एक कारगर रणनीति हो सकती है।
क्या है हर्ड इम्यूनिटी: हर्ड इम्यूनिटी एक एपिडेमियोलॉजिकल (महामारी से संबंधित विज्ञान) अवधारणा है, जो उस स्थिति का वर्णन करती है, जिसमें जनसंख्या का एक बहुत बड़ा भाग प्राकृतिक रूप से या वैक्सीन के द्वारा किसी संक्रमण के प्रति इम्यूनिटी विकसित कर लेता है। प्राकृतिक रूप से इम्यूनिटी विकसित करने के लिए तरीका है कि युवा आबादी को संक्रमित होने दें, उनके शरीर में एंटीबॉडीज विकसित होने दें, उन्हें ठीक होने दें और उनके शरीर में इस संक्रमण के प्रति प्रतिरोध विकसित होने दें।
इससे यह होगा कि रोग संचरण की श्रंखला टूट जाएगी और इस प्रकार बूढ़े लोगों और जिन्हें पहले से ही कोई बीमारी हैं, उनका जीवन बचाना संभव हो पाएगा। जब जनसंख्या का 92 प्रतिशत भाग किसी बीमारी के लिए इम्यूनिटी विकसित कर लेता है तो इसे हर्ड इम्यूनिटी थ्रेशोल्ड या हर्ड इम्यूनिटी की सीमारेखा कहते हैं, इस स्थिति में किसी संक्रमण के प्रसार को लगभग नियंत्रित कर लिया जाता है।
खसरा, गलसुआ रोग, पोलियो और चेचक जैसे संक्रामक रोगों के कुछ उदाहरण हैं, जो किसी समय बड़े सामान्य थे, लेकिन आज विश्वभर में इनके मामले काफी कम हो गए हैं। लेकिन इन पर पूरी तरह नियंत्रण प्राकृतिक तरीके से हर्ड इम्यूनिटी विकसित करके नहीं पाया गया, बल्कि इनके वैक्सीन तैयार करके पूरे विश्व में इन रोगों के प्रति हर्ड इम्यूनिटी विकसित की गई।
भारत में स्थिति: प्रिंस्टन यूनिवर्सिटी और सेंटर फॉर डिसीज डायनेमिक्स इकोनॉमिक्स एंड पॉसिली (सीडीडीईपी) के शोधकर्ताओं का कहना है कि हर्ड इम्यूनिटी की तकनीक भारत में कोरोना से लड़ने के लिए कारगर साबित हो सकती है, क्योंकि भारत की आबादी में युवाओं की संख्या अधिक है, जिससे उनके अस्पतालों में भर्ती होने का खतरा काफी कम होगा। लेकिन जो चिकित्सक प्राकृतिक रूप से हर्ड इम्यूनिटी विकसित करने का विरोध कर रहे हैं, उनका मानना है कि हमारे देश में युवा बड़ी संख्या में डायबिटीज और उच्च रक्तचाप के शिकार हैं, ऐसे में हम उनका जीवन जोखिम में नहीं डाल सकते।
विरोध के स्वर: हालांकि विश्व स्वास्थ्य संगठन सहित अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चिकित्सा जगत से जुड़े अधिकतर विशेषज्ञ हर्ड इम्यूनिटी का विरोध कर रहे हैं। उनका मानना है कि जनसंख्या के बड़े भाग को संक्रमित करना एक बहुत खतरनाक कदम है, इससे सिर्फ युवाओं के लिए खतरा नहीं बढ़ेगा बल्कि उन लोगों के लिए भी खतरा बढ़ जाएगा जिनमें उम्र बढ़ने या किसी बीमारी के चलते इम्यून तंत्र कमजोर हो गया है। ऐसे में डब्ल्यूएचओ का मानना है कि सरकारों को वैक्सीन का इंतजार करना चाहिए।
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