भारत जल्द कोरोना वायरस का टीका विकसित कर सकता है, आईसीएमआर ने बनाया कोविड 19 का कल्चर

भारत जल्द कोरोना वायरस का टीका विकसित कर सकता है, आईसीएमआर ने बनाया कोविड 19 का कल्चर
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कोरोना की विश्वव्यापी चुनौती के बीच वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) की हैदराबाद स्थित आण्विक जीव-विज्ञान केंद्र प्रयोगशाला (सीसीएमबी) के वैज्ञानिकों ने मरीजों के नमूने से कोविड-19 के लिए जिम्मेदार कोरोना वायरस का स्थिर संवर्धन यानि कल्चर किया है।

कोरोना की विश्वव्यापी चुनौती के बीच वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) की हैदराबाद स्थित आण्विक जीव-विज्ञान केंद्र प्रयोगशाला (सीसीएमबी) के वैज्ञानिकों ने मरीजों के नमूने से कोविड-19 के लिए जिम्मेदार कोरोना वायरस का स्थिर संवर्धन यानि कल्चर किया है।

केंद्रीय विज्ञान-प्रौद्योगिकी मंत्रालय के मुताबिक इससे सीसीएमबी के वैज्ञानिकों को कोरोना से लड़ने के लिए टीका विकसित करने और संभावित दवाओं के परीक्षण में मदद मिल सकती है। सीसीएमबी प्रयोगशाला के डॉ़ कृष्णन.एच. हर्षन के नेतृत्व में शोधार्थियों की एक टीम ने नमूनों से संक्रामक वायरस को पृथक किया है। वैज्ञानिक जब वायरस कल्चर करते हैं तो यह स्थिर होना चाहिए। जिसका अर्थ है कि वायरस संवर्धन निरंतर होते रहना चाहिए। इसे स्थिर संवर्धन कहा जाता है।

ऐसे फैलता शरीर में कोरोना

कोरोना वायरस एसीई-2 नामक रिसेप्टर प्रोटीन के साथ मिलकर मनुष्य के श्वसन मार्ग में एपीथिलियल कोशिकाओं को संक्रमित करता है। श्वसन मार्ग में यह कोशिकाएं प्रचुरता से उक्त प्रोटीन को व्यक्त करती हैं, जिससे इस वायरस से संक्रमित मरीजों में श्वसन रोगों का खतरा बढ़ जाता है। कोशिकाओं में वायरस के प्रवेश की एंटोसाइटोसिस नामक प्रक्रिया के बाद वायरस आरएनए कोशिकाओं के साइटोप्लाज्म में रिलीज होता है जहां यह पहले वायरल प्रोटीन बनाता है और फिर जीनोमिक आरएनए की प्रतिकृति बनने लगती है। इस प्रकार वायरस इन कोशिका संसाधनों का उपयोग अपनी संख्या बढ़ाने के लिए करता है।

शोधार्थियों का तर्क

सीसीएमबी वैज्ञानिक डॉ़ कृष्णन हर्षन ने बताया कि वर्तमान में मानव एपीथिलियल कोशिकाएं प्रयोगशालाओं में निरंतर कई पीढ़ियों तक नहीं बढ़ पाती हैं। यह लगातार वायरस संवर्धन के लिए महत्वपूर्ण है। इसलिए सीसीएमबी या अन्य कोई लैब जो वायरस को संवर्धित कर रहे हैं। उन्हें कभी न खत्म होने वाली सेल लाइन की आवश्यकता है। इसी तथ्य के आधार पर वैज्ञानिक विरो सेल का प्रयोग करते हैं। जो अफ्रीकी बंदर की गुर्दें की कोशिका लाइनों से प्राप्त होते हैं। यही एसीई-2 प्रोटीन को व्यक्त करते हैं। इसके साथ ही यह कोशिका विभाजन भी करते हैं, जिससे वे अनिश्चितकाल तक वृद्धि कर सकते हैं।

वैज्ञानिकों का कहना है कि यदि हम बड़ी मात्रा में वायरस का संवर्धन करते हैं और उन्हें निष्क्रिय कर देते हैं। तो इसका प्रयोग निष्क्रिय वायरस के टीके के रूप में किया जा सकता है। एक बार जब हम निष्क्रिय वायरस को इंजेक्ट कर देते हैं तो मानव प्रतिरक्षा प्रणाली एंटीबॉडी बढ़ाती है। ताप या रसायानिक साधनों द्वारा वायरस को निष्क्रिय किया जा सकता है। निष्क्रिय वायरस एंटीबॉडी की प्रतिक्रिया को बढ़ा सकता है। लेकिन हमें संक्रमित करके बीमार नहीं करता है।

तेजी से बढ़ता प्रयोग

सीसीएमबी के निदेशक डॉ़ राकेश मिश्र ने कहा कि हम विभिन्न क्षेत्रों से वायरस के उपभेदों को अलग करने और बनाए रखने में सक्षम हैं। साथ ही हम बड़ी मात्रा में वायरस का उत्पादन करने की दिशा में भी काम कर रहे हैं, जिसे निष्क्रिय किया जा सकता है। हमने इस वायरल कल्चर का उपयोग डीआरडीओ और अन्य भागीदारों के साथ संभावित दवाओं का परीक्षण शुरू कर दिया है।

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