Haribhoomi Explainer: दलाई लामा का जन्मदिन आज, यहां पढ़िए तिब्बत के धर्म गुरु की कहानी

Haribhoomi Explainer: आज यानी 6 जुलाई को तिब्बतियों के धर्मगुरु और 14 वें दलाई लामा (Dalai Lama) का जन्मदिन है। दलाई लामा का जन्म 6 जुलाई 1935 को पूर्वोत्तर तिब्बत (Northeast Tibet) के एक किसान परिवार में हुआ था। इनका पूरा नाम दलाई लामा तेनजिन ग्यात्सो (Dalai Lama Tenzin Gyatso) है। 13वें दलाई लामा के उत्तराधिकारी की खोज और कई आध्यात्मिक संकेतों का पालन करने के बाद 2 साल की उम्र में ल्हामो थोंडुप स्थित धार्मिक अधिकारियों ने उनकी पहचान की और उन्हें 14वां दलाई लामा घोषित किया गया। लेकिन, साल 1959 में चीनी शासन के खिलाफ एक असफल तिब्बती विद्रोह (Tibetan Rebellion) के बाद एक सैनिक के वेश में वे भागकर भारत आ गए। तब से वे हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) के एक धर्मशाला में रहते हैं। आइए आज के हरिभूमि एक्सप्लेनर के माध्यम से तिब्बतियों के धर्मगुरु और 14 वें दलाई लामा के जीवन के बारे में जानते हैं।
मेरा शरीर तिब्बती है और मैं मन से मैं एक भारतीय हूं। तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा की यह बात उनके भारत (India) प्रेम को दर्शाती है। बीते 64 सालों से दलाई लामा भारत में रह रहे हैं। आज वह 88 साल के हो गए हैं।
कौन होते हैं दलाई लामा
तिब्बत में सबसे बड़े धार्मिक नेता को दलाई लामा कहा जाता है, जिसका मतलब होता है ज्ञान का महासागर। जो अपने लोगों को सही रास्ते पर चलने की प्रेरणा देते हैं। तिब्बत के वर्तमान दलाई लामा तेनजिन ग्यात्सो हैं, जो बीते 64 साल से भारत के हिमाचल प्रदेश में रह रहे हैं। उनका अपना देश तिब्बत छोड़ने का यह कारण है कि चीन तिब्बत पर अपना अधिकार कर लिया है। दलाई लामा को चीन एक अलगाववादी नेता मानता है। इसी कारण जिस देश में भी दलाई लामा जाते हैं, वहां की सरकारों से चीन आधिकारिक तौर पर आपत्ति जताने लगता है।
दलाई लामा शांति के प्रतीक
पूरी दुनिया में दलाई लामा को शांति की बात करने वाला और शांति का संदेश देने वाला व्यक्ति मानते हैं। शांति के विचार को ही दुनिया में पहुंचाने के लिए उन्हें 1989 में शांति का नोबेल सम्मान मिला। दलाई लामा ने 6 महाद्वीपों के 67 से अधिक देशों की यात्रा की है। शांति, अहिंसा, अंतर-धार्मिक समझ, सार्वभौमिक जिम्मेदारी और करुणा के उनके संदेश की मान्यता में उन्हें 150 से अधिक पुरस्कार, मानद डॉक्टरेट, पुरस्कार आदि प्राप्त हुए हैं। उन्होंने 110 से अधिक पुस्तकों का लेखन या सह-लेखन भी किया है।
दलाई लामा का भारत में प्रवेश
साल 1959 में चीनी शासन के खिलाफ एक असफल तिब्बती विद्रोह के बाद दलाई लामा तिब्बत की राजधानी ल्हासा से 17 मार्च, 1959 को पैदल ही भारत के लिए निकले थे। हिमालय के बर्फीले पहाड़ों को पार करते हुए 15 दिन के अंदर ही वे भारत की सीमा पार कर चुके थे। 31 मार्च को वह भारतीय सीमा में प्रवेश किए और तब से वे भारत के ही हो कर रह गएए। तिब्बत से भारत की यात्रा के दौरान दलाई लामा को काफी कठिनाई का सामना करना पड़ा था। चीन की नजरों से बचने के लिए वह केवल रात को ही सफर करते थे और दिन भर कहीं छुपे रहते थे।
भारत से चलाते हैं तिब्बत की निर्वासित सरकार
दलाई लामा हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में रहकर यहीं से तिब्बत की निर्वासित सरकार चलाते हैं। इसका चुनाव भी होता है, जिसके लिए दुनियाभर के तिब्बती शरणार्थी वोट करते हैं। वोट डालने के लिए शरणार्थी तिब्बतियों को पहले रजिस्ट्रेशन कराना होता है। तिब्बती लोग चुनाव के दौरान अपने राष्ट्रपति को चुनते हैं, जिसे राष्ट्रपति को तिब्बत में सिकयोंग कहते है। भारत की तरह वहां की संसद का कार्यकाल 5 सालों का होता है। तिब्बत में चुनाव लड़ने और वोट डालने का अधिकार केवल उन तिब्बतियों को होता है, जिनके पास ग्रीम बुक होती है। यह ग्रीन बुक तिब्बत के सेंट्रल तिब्बत एडमिनिस्ट्रेशन द्वारा जारी की जाती है। यह एक तरह का तिब्बत का पहचान पत्र होता है।
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घड़ियों की मरम्मत करने के शौकीन हैं दलाई लामा
दलाई लामा को मेडिटेशन और गार्डनिंग के अलावा दलाई लामा को घड़ियों की मरम्मत करने का बहुत शौक है। बताया जाता है कि घड़ियों की मरम्मत करने का शौक उनको अमेरिकी पूर्व राष्ट्रपति फ्रैंकलिन रूजवेल्ट द्वारा दी गई रोलेक्स से लगा था। दलाई लामा को बचपन से ही तकनीकी सामान ठीक करने में रुचि रही है। उन्होंने कार और एक पुराने फिल्म प्रोजेक्टर जैसी तमाम चीजों की भी मरम्मत कर ठीक किया है।
बचपन में काफी आलसी थे दलाई लामा
दलाई लामा मीडिया को दिए एक साक्षात्कार में बताए हैं कि वे बचपन में काफी आलसी थे। इसी कारण शिक्षक कभी-कभी कोड़े दिखाने की धमकी देते थे। लेकिन धीरे-धीरे दिमाग ठीक हुआ और मेरे अन्दर से आलस बिलकुल खत्म हो गया।
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