Haribhoomi Explainer: केंद्र के अध्यादेश के खिलाफ केजरीवाल का 'संघर्ष' जारी, पढ़िये जीत पाएंगे या नहीं

Haribhoomi Explainer: दिल्ली में केंद्र द्वारा अध्यादेश लाने के बाद केजरीवाल सरकार और केंद्र सरकार के बीच तनातनी बढ़ गई है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब केंद्र के अध्यादेश आने से दिल्ली सरकार की अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। 11 मई को भारत की शीर्ष अदालत चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में पांच जजों की बेंच ने दिल्ली सरकार को बड़ी राहत देते हुए फैसला दिया था कि पब्लिक ऑर्डर, पुलिस और जमीन के अलावा सभी सेवाएं दिल्ली सरकार के ही नियंत्रण में होगी। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि इन सेवाओं पर दिल्ली सरकार का नियंत्रण होगा यानी अफसरों के तबादले और पोस्टिंग दिल्ली सरकार के हाथ में होगी।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि दिल्ली पूर्ण राज्य नहीं है, लेकिन अनुच्छेद 239 एए के तहत उसे विशेष दर्जा प्राप्त है। कोर्ट का कहना है कि अफसरों पर चुनी हुई सरकार का ही नियंत्रण होना चाहिए, नहीं तो प्रशासन की सामूहिक जिम्मेदारी प्रभावित होगी। कोर्ट के इस आदेश को आम आदमी पार्टी सरकार ने बड़ी जीत माना था। लेकिन इस फैसले के एक हफ्ते बाद 19 मई को केंद्र सरकार ने एक अध्यादेश जारी कर दिया, जिसने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट कर रख दिया और केंद्र सरकार राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली अध्यादेश 2023 लाई। ऐसे में दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल विभिन्न राज्यों का दौरा कर समर्थन हासिल कर रहे हैं ताकि लोकसभा और राज्यसभा में मोदी सरकार पर हमला बोला जा सके। तो चलिए बताते हैं कि अध्यादेश क्या कहता है और अध्यादेश को चुनौती देना संभव है या नहीं।
क्या कहता है अध्यादेश
केंद्र द्वारा लाए गए अध्यादेश में कहा गया है कि अफसरों की ट्रांसफर और पोस्टिंग से जुड़ा अंतिम निर्णय लेने का हक उपराज्यपाल को वापस दे दिया गया है। मतलब यह है कि अब अधिकारियों की ट्रांसफर-पोस्टिंग उपराज्यपाल ही करवाएंगे। अध्यादेश के जरिए केंद्र सरकार एक वैधानिक निकाय, राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण की स्थापना करेगी। इसके प्राधिकरण में तीन सदस्य होंगे, जिनमें मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव और प्रमुख गृह सचिव शामिल हैं। इसका मतलब है कि निर्वाचित मुख्यमंत्री के निर्णय को दो वरिष्ठ गैर-निर्वाचित नौकरशाह खारिज कर सकते हैं। प्राधिकरण में फैसले बहुमत के आधार पर होंगे और अगर उपराज्यपाल इस प्राधिकरण के फैसले से सहमत नहीं होंगे, तो वह इन फैसलों को पुनर्विचार के लिए फिर से प्राधिकरण के पास भेज सकते हैं।
क्या कहते हैं अध्यादेश के पक्षकार
अध्यादेश के पक्षकारों का कहना है कि दिल्ली में जो कुछ भी फैसले होते हैं, उनका राष्ट्रीय महत्व होता है। देश के और नागरिक भी उससे प्रभावित होते हैं। साथ ही, देश की अंतरराष्ट्रीय छवि भी उससे प्रभावित होती है। ऐसे में केंद्रीय सरकार का उसमें दखल होना चाहिए।
क्या कोर्ट को फैसले को बदल सकता है अध्यादेश
भारतीय संविधान के अनुसार, संसद के पास शक्तियां हैं कि वह नया कानून बनाकर कोर्ट के फैसले को पलट सके, लेकिन संसद द्वारा बनाया गया कानून सीधे कोर्ट के फैसले का विरोध न करता हो।
क्या अध्यादेश को भी चुनौती देना संभव
केंद्र सरकार द्वारा जारी किए गए अध्यादेश को कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। चुनौती देने के बाद सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश यह तय करते हैं कि इस मामले पर संविधान बेंच बनाएंगे या नहीं।
राज्यसभा में अध्यादेश को रोकने की तैयारी
किसी भी लाए गए अध्यादेश को छह माह के भीतर संसद के दोनों सदनों से पारित कराना अनिवार्य होता है। वर्तमान में केन्द्र सरकार के पास अध्यादेश को पास करने के लिए लोकसभा में पर्याप्त बहुमत है। लेकिन केंद्र सरकार के पास राज्यसभा में बहुमत से 8 सदस्य कम हैं, ऐसे में अध्यादेश को राज्यसभा से पास कराने के लिए केन्द्र सरकार को विपक्षी दलों का सहारा लेना पड़ेगा। लेकिन दूसरी तरफ केजरीवाल सरकार विपक्षी एकता के जरिए इस अध्यादेश को रोकने की भरपूर कोशिश करेंगे।
केजरीवाल के लिए 2024 का सेमीफाइनल
लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर विपक्षी दल एकजुट होकर चुनाव लड़ने की कोशिश कर रहे हैं। विपक्षी दलों में आम आदमी पार्टी भी अहम स्थान रखती है। वर्तमान में आप की दो राज्यों में सरकार है। आप को इस समय विपक्ष की सबसे ज्यादा जरूरत भी है। केंद्र द्वारा लाए गए अध्यादेश को राज्यसभा में रोकने के लिए केजरीवाल सरकार विपक्षी दलों के नेताओं से मुलाकात कर रही है। बीते रविवार को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव से मुलाकात की। नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव ने अध्यादेश को लेकर दिल्ली सरकार का समर्थन भी किया है। लेकिन, वर्तमान में आम आदमी पार्टी को लेकर लेकर कई विपक्षी दलों का रुख अभी तक स्पष्ट नहीं है।
अध्यादेश का पहला आदेश, पलटा दिल्ली सरकार का फैसला
केंद्र सरकार द्वारा लाए गए अध्यादेश के बाद सोमवार को पहला आदेश जारी हुआ। दिल्ली सरकार ने सचिव राजशेखर का ऑफिस सील कर दिया था। अध्यादेश ने इस आदेश को पलटते हुए सचिव राजशेखर के दफ्तर को सोमवार से फिर खोल दिया है। आपको बता दें कि सचिव राजशेखर मुख्यमंत्री आवास जीर्णोद्धार और शराब घोटाले एवं अन्य कई महत्वपूर्ण मामलें की जांच कर रहे थे।
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