आर्थिक मोर्चे पर पीएम मोदी के सामने हैं ये चुनौतियां

देश के आर्थिक मोर्चे पर छाई चुनौतियां गंभीर होती जा रही हैं। भले ही इसके कई बाहरी कारण हो सकते हैं, लेकिन आगामी बजट सत्र में सरकार को विपक्ष के हमलों का जवाब दे पाना आसान नहीं होगा। इस दौरान यह सवाल पूछा जाना स्वाभाविक है कि आखिर पिछले पांच साल में सरकार ने क्या किया? देश की आर्थिक सेहत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जनवरी-मार्च तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद की दर घटकर 5.8 पर आ गई। वित्त वर्ष 2018-19 में आर्थिक वृद्धि दर का आंकड़ा 6.8 फीसद पर आ गया जो पिछले पांच साल का न्यूनतम स्तर है। पहले कार्यकाल में मोदी सरकार हर साल दो करोड़ नए रोजगार मुहैया कराने के वादे के साथ सत्ता में आई थी, लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद बेरोजगारी बढ़ती गई। इस मोर्चे पर सरकार को लगातार किरकिरी झेलनी पड़ी है।
ताजा आंकड़ों में वित्त वर्ष 2017-18 में बेरोजगारी दर कुल कार्यबल का 6.1 फीसद रही जो पिछले 45 साल का उच्चतम स्तर है। इसका वास्तविक आंकड़ा क्या होगा, इसका अंदाजा देश में बढ़ रही बेरोजगारों की फौज को देखकर सहज लगाया जा सकता है। यह तमाम आंकड़े ऐसे समय में सामने आए हैं जब प्रचंड बहुमत के साथ फिर से सत्ता में आई मोदी सरकार के मंत्री अपना कामकाज संभाल रहे हैं। इन चिंताजनक आंकड़ों के कारण नई सरकार अपनी ऐतिहासिक जीत का ठीक से जश्न भी नहीं मना पाई है। आर्थिक क्षेत्र में छाई सुस्ती का भले ही कोई कारण रहा हो लेकर सरकार इन तथ्यों को झुठला नहीं सकती।
मोदी सरकार अभी तक इस बात का ढिंढोरा पीटती रही है कि आर्थिक विकास में भारत दुनिया में सबसे तेज गति से आगे बढ़ रहा है, लेकिन पिछले वित्त वर्ष की आर्थिक वृद्धि दर के जो आंकड़े आए हैं वह नई सरकार के लिए प्रचंड जीत के रंग में भंग डालने वाले हैं। सरकार की दलील है कि चौथी तिमाही में देश की आर्थिक वृद्धि दर 5.8 फीसदी पर गिरने की वजह एनबीएफसी क्षेत्र में दबाव जैसे अस्थायी कारक हैं और चालू वित्त वर्ष की अप्रैल-जून तिमाही में आर्थिक गतिविधियां धीमी रह सकती हैं लेकिन उसके बाद इसमें तेजी आएगी। साथ ही सफाई दी है कि 6.8 फीसदी सालाना आर्थिक वृद्धि के आधार पर भी भारत दुनिया की तीव्र वृद्धि वाली अर्थव्यवस्था बना हुआ है।
सरकार की इस सफाई को काफी हद तक जायज माना जा सकता है, लेकिन ताजा आंकड़ों से साफ जाहिर होता है देश में आर्थिक सुस्ती का माहौल है। इसमें कोई दोराय नहीं कि वैश्विक अर्थव्यवस्था मंदी के मुहाने पर खड़ी है। अमेरिका और चीन के बीच चल रहा व्यापार युद्ध और ईरान पर आर्थिक प्रतिबंध जैसी घटनाएं इस संकट को और बढ़ा रही हैं। इसी आधार सरकार ने पर चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही की आर्थिक गतिविधियां कमजोर रहने के संकेत दिए हैं। ऐसे में भारत को दुनिया में सबसे तेज गति से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था के खिताब को बरकरार रखना आसान नहीं होगा।
यदि मोदी सरकार इस उपलब्धि को बरकरार रखना चाहती है तो उसे आर्थिक मोर्चे पर और बड़े कदम उठाने होंगे। इसी गंभीरता को भांपते हुए ही मोदी सरकार ने कई बड़े कदम उठाए हैं। इसके तहत देश के आर्थिक विकास में तेजी लाने और रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए दो अलग-अलग मंत्रिमंडलीय समितियां गठित की गई हैं। एक समिति में पांच और दूसरी में 10 सदस्य शामिल किए गए हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इन समितियों की खुद अध्यक्षता करेंगे। इसके साथ ही आरबीआई ने अपनी नीतिगत दरों में चौथाई फीसद की कटौती करके बाजार में नकदी की समस्या को दूर करने की पहल की है। केंद्रीय बैंक के इस कदम से उद्योग जगत को भारी राहत मिलेगी।
दरअसल, मोदी इस बात को अच्छी तरह से समझते हैं कि आम चुनाव में जनता ने उन पर उम्मीद से ज्यादा भरोसा जताया है। यदि वह इस पर खरे नहीं उतरे तो जवाब दे पाना मुश्किल हो जाएगा। फिलहाल आर्थिक मोर्चे पर जो हालात हैं वह वाकई में सोचनीय हैं। सरकारी आंकड़ों में वित्त वर्ष 2018-19 की चौथी तिमाही में सकल मूल्य वर्धन 6.6 फीसदी रहा जो इससे पूर्व वित्त वर्ष की इसी तिमाही में 6.9 फीसदी था। आर्थिक सुस्ती का मुख्य कारण कृषि और विनिर्माण क्षेत्रों का खराब प्रदर्शन रहा। इस दौरान कृषि, वानिकी और मत्स्य क्षेत्रों का जीवीए 0.1 फीसद घटा जबकि वर्ष 2017-18 की चौथी तिमाही में इसमें 6.5 फीसदी की वृद्धि हुई थी।
विनिर्माण क्षेत्र में नरमी काफी तेज रही। इसकी जीवीए वृद्धि दर महज 3.1 फीसदी रही जो वर्ष 2017-18 की चौथी तिमाही में 9.5 फीसद के स्तर पर थी। जीडीपी के संदर्भ में देखें तो सकल स्थिर पूंजी निर्माण चालू और स्थिर मूल्य पर वर्ष 2018-19 में क्रमश: 29.3 और 32.3 फीसदी रहा। इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि देश की 60 फीसदी आबादी की रोजी-रोटी खेती-बाड़ी पर आधारित है। इसके बाद कारखाना क्षेत्र रोजगार सृजन का बड़ा जरिया है, लेकिन इन दोनों ही क्षेत्र में नरमी का रुख रहा है। चिंता की बात यह है कि बेरोजगारी के आंकड़ों ने सरकार के लिए खतरे की घंटी बजा दी है।
आम चुनाव से ठीक पहले बेरोजगारी से जुड़े आंकड़ों पर आधारित यह रपट लीक हो गई थी, लेकिन बयानों के कारण यह मुद्दा दब गया था। अब सरकार ने इस आंकड़े की पुष्टि कर दी है। जाहिर है इस समय देश में बेरोजगारी बड़ी समस्या है जो इस बात की ओर इशारा कर रही है कि घरेलू अर्थव्यवस्था की सेहत दुरुस्त नहीं है। बेरोजगारी संकट गंभीर हो सकता है। इसी वजह से सरकार व्यापक कदम उठा रही है। बहरहाल, यह कहना भी उचित नहीं होगा कि आर्थिक क्षेत्र सबकुछ खराब चल रहा है। मोदी सरकार ने पहली पारी में जीएसटी, आईबीसी और रेरा जैसे जो आर्थिक सुधार लागू किए थे, उनके सकारात्मक परिणाम अब आने लगे हैं।
पिछले दो महीनों से जीएसटी संग्रह लगातार एक लाख करोड़ रुपये से ऊपर रहा है। आने वाले दिनों में इसमें और वृद्धि के आसार हैं। इसी आधार पर विश्व बैंक ने अपनी ताजा रपट में कहा है कि बेहतर निवेश तथा निजी खपत के दम पर भारत आने वाले समय में भी सबसे तेजी से वृद्धि करने वाली प्रमुख वैश्विक अर्थव्यवस्था बना रहेगा। अगले तीन साल तक भारत की आर्थिक वृद्धि दर 7.5 फीसदी पर रहेगी जो चीन की अनुमानित वृद्धि दर से करीब 1.5 फीसदी ऊपर है। निश्चित तौर पर विश्व बैंक की रपट राहत देने वाली है। ऐसे में नई सरकार ने देश की अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के लिए जो कदम उठाएं हैं यदि वह कारगर होते हैं तो अंधेरे की ओर बढ़ रही वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारत चमकता सितारा साबित हो सकता है।
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