पिता के आखिरी लफ्जों ने बदली जिंदगी, 'फ्लाइंग सिख' का खिताब जितने वाले मिल्खा सिंह की पूरी कहानी

Milkha Singh: पिता के मुख से निकलने वाले वो आखिरी लफ्ज भाग मिल्खा भाग... जिसे जहन में रखकर बेटे ने सिर्फ परिवार ही नहीं, बल्कि देश के तिरंगे की भी शान बढ़ा दिया। एक ऐसा गांव जहां पर अचानक कुछ सरफिरे हमला कर दिया और थोड़ी सी भनक तक नहीं लगी। बात है 1947 की जब देश की बंटवारा हो रहा था। आखों के सामने अपने पूरे परिवार को मरते देख किसका कलेजा नहीं फटेगा, लेकिन वो हार नहीं माने और पूरी दुनिया में अपना कारनामे से सबको हैरान कर दिया। आज हर किसी के दिल-दिमाग में उनका नाम याद रखता है।
जी हां बात कर रहे हैं भारत के इतिहास के महान धावक मिल्खा सिंह के बारे में, जिन्हें फ्लाइंग सिख के नाम से भी जाना जाता है, जिन्होंने दुनियाभर में भारत का परचम लहाराया। आज के समय में भले भी मिल्खा सिंह हमारे बीच नहीं है, लेकिन उनके रिकॉर्ड्स और इनके किस्से हमेशा-हमेशा के लिए अमर हैं।
आज से करीब ठीक 2 साल पहले 18 जून को मिल्खा सिंह ने दुनिया को अलविदा कह दिया था। मिल्खा सिंह के निधन के बाद पूरा देश गम में डूब गया। आज के दिन उनकी पुण्यतिथि है। तो आइये जानते हैं मिल्खा सिंह के जीवन से जुड़े कुछ किस्सों के बारे में। आखिरकार मिल्खा सिंह का नाम फ्लाइंग सिख कैसे पड़ा।
18 जून, 2021 में मिल्खा सिंह ने दुनिया को कहा था अलविदा
बता दें कि मिल्खा सिंह का जन्म देश के विभाजन से पहले 20 नवंबर, 1929 को पाकिस्तान में हुआ था। इनके गांव का नाम गोविंदपुरा मुजफ्फरगढ़ जिले में पड़ता था। मिल्खा सिंह राजपूत परिवार से नाता रखते थे। उनकी फैमिली में मां-बाप के अलावा कुल 12 भाई-बहन थे, लेकिन जब 1947 में देश में बंटवारे के समय, जो त्रासदी हुई वह बहुत ही खौफनाक थी। मिल्खा सिंह की आखों के सामने ही पूरा परिवार उस त्रासदी का शिकार हो गया। उस त्रासदी में मिल्खा सिंह के आठ भाई-बहन और माता-पिता को सामने ही मौत के घाट उतार दिया गया था। बता दें कि पिता के गले पर तलवार रखी हुई था और उन्होंने अपने बेटे मिल्खा से एक लफ्ज बोला कि भाग मिल्खा भाग... पिता के आखिरी लफ्जों ने मिल्खा सिंह की जिंदगी बदल दी।
मिल्खा सिंह के संघर्ष भरी जीवन की कहानी
बता दें कि जब देश का विभाजन हुआ उस दौरान मिल्खा सिंह के परिवार में सिर्फ 3 लोग बचे थे और उन्होंने तीनों के साथ भागकर वे दिल्ली के शरणार्थी शिविरों में दिन गुजारा करते थे। उन्होंने छोटे-मोटे अपराध भी किए, जिसकी वजह से उन्हें जेल भी जाना पड़ा। कुछ साल बाद मिल्खा सिंह ने सेना में भर्ती होने की ठानी, तीन बार प्रयास करने के बाद भी वो नाकाम रहे।
जब मिल्खा सिंह एथलीट के रूप में भारतीय सेना में शामिल हुए, तो उनके लगन और जज्बे को देखकर हर कोई सलाम ठोकने लगा। साल 1956,1960 और 1964 में जब मिल्खा सिंह ओलंपिक खेलों में भारत की ओर से प्रतिनिधित्व किया। साथ ही 1958 और 1960 में एशियाई खेलों में गोल्ड मेडल भी जीत लिया।
जानें कब मिला मिल्खा सिंह को फ्लाइंग सिख का टाइटल
मिल्खा सिंह की रफ्तार और हुनर को देखते हुए पाकिस्तानी प्रधानमंत्री फील्ड मार्शल अयूब खान ने उन्हें फ्लाइंग सिख का खिताब दिया था। बता दें कि एक बार मिल्खा सिंह रोम ओलंपिक में पदक जीतते-जीतते चूक गए थे। तब उनसे पुछा गया था कि आपके हार के पीछे का कारण क्या है, तो उन्होंने बताया था कि मेरी एक आदत थी कि मैं हर दौड़ में एक बार पीछे मुड़कर जरूर देखता था, जो नहीं करना चाहिए था ये मेरी हार की वजह थी।
उन्होंने बताया कि रोम ओलंपिक में मैं जीत के बेहद ही करीब था और मैंने जीत के लिए जबरदस्त तैयारी भी की थी। उन्होंने कहा कि मैंने दौड़ते हुए एक दफा पीछे मुड़कर देख लिया शायद यहीं मैं चूक गया। उन्होंने कहा कि कांस्य पदक विजेता का समय 45.5 सेकेंड था और मैंने 45.6 सेंकेड में दौड़ पूरी की थी।
© Copyright 2025 : Haribhoomi All Rights Reserved. Powered by BLINK CMS
-
Home
-
Menu
© Copyright 2025: Haribhoomi All Rights Reserved. Powered by BLINK CMS