शीला दीक्षित निधन : जानिए पति की मौत के बाद सियासत में उतरीं पूर्व मुख्यमंत्री का पूरा राजनीतिक जीवन

शीला दीक्षित निधन : जानिए पति की मौत के बाद सियासत में उतरीं पूर्व मुख्यमंत्री का पूरा राजनीतिक जीवन
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शीला दीक्षित के ससुर उमाशंकर दीक्षित प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी रहे थे। देश आजाद होने के बाद उन्हें केन्द्रीय मंत्रिमंडल में मंत्री बनाया गया। उम्र के आखिरी पड़ाव पर वह राज्यपाल भी रहे। शीला दीक्षित महिलाओं के उत्थान के लिए काम करती रही हैं। समाज में बराबरी दिलवाने के लिए इन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ की महिला स्तर समिति में भारत का लगातार 5 सालो तक प्रतिनिधित्व किया।

लंबे समय से बीमार दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री व कांग्रेस की मजबूत नेता शीला दीक्षित ने शनिवार को 81 वर्ष की अवस्था में चिरनिंद्रा में लीन हो गई। पंजाब के कपूरथला शहर में 31 मार्च 1938 को जन्मी शीला कपूर दीक्षित ब्राम्हण परिवार में ब्याही जाने के बाद शीला दीक्षित हो गई। राजनीति में उन्होंने बड़ा नाम हासिल किया। कांग्रेस जब भी संकट में फंसी शीला दीक्षित ने उन्हें उस संकट से उभारा।

शीला दीक्षित की शुरुआती शिक्षा दिल्ली के कान्वेंट ऑफ जीसस एंड मैरी स्कूल में हुई। स्नातक और परास्नातक की पढ़ाई उन्होने मिरांडा हाउस कॉलेज से की। पढ़ाई पूरी करने के बाद शीला दीक्षित ने जीवनसाथी के रूप में विनोद दीक्षित को चुना जो पेशे से भारतीय प्रशासनिक सेवा के सदस्य थे। शीला दीक्षित का राजनीति में प्रवेश इसी परिवार में शादी करने के बाद ही हो पाया।

शीला दीक्षित के ससुर उमाशंकर दीक्षित प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी रहे थे। देश आजाद होने के बाद उन्हें केन्द्रीय मंत्रिमंडल में मंत्री बनाया गया। उम्र के आखिरी पड़ाव पर वह राज्यपाल भी रहे। शीला दीक्षित महिलाओं के उत्थान के लिए काम करती रही हैं। समाज में बराबरी दिलवाने के लिए इन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ की महिला स्तर समिति में भारत का लगातार 5 सालो तक प्रतिनिधित्व किया।


इसी बीच उनके पति विनोद दीक्षित का निधन हो गया। शीला दीक्षित दो बच्चों की जिम्मेदारी संभालने साथ राजनीति में उतर आई। 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने उन्हें उत्तर प्रदेश के कन्नौज लोकसभा सीट से चुनावी मैदान में उतारा, चुनाव जीतकर शीला दीक्षित लोकसभा पहुंची। अगले चुनाव में कांग्रेस की हार के साथ वह भी चुनाव हार गई।

हार के बाद शीला दीक्षित देश की राजधानी दिल्ली चली आई और कांग्रेस के संगठन को मजबूत करने में लग गई। 1998 में पूर्वी दिल्ली लोकसभा सीट से एक बार फिर से चुनाव लड़ा लेकिन फिर से भाजपा के लाला बिहारी तिवारी से चुनाव हार गई। इसके बाद उन्होंने लोकसभा चुनाव के बजाय दिल्ली विधानसभा चुनाव पर फोकस किया और गोल मार्केट विधानसभा से चुनाव जीतने में सफल रही।

यहां से दिल्ली में कांग्रेस का और शीला दीक्षित का स्वर्णिम युग शुरू हुआ। 1998 में वह पहली बार दिल्ली की मुख्य मंत्री बनी। प्रदेश के लिए बेहतर काम किया। इसलिए 2003 में फिर से जनता ने उन्हें चुना। लोगों से जुड़ने की कला शीला दीक्षित में जबरदस्त थी जो उन्हें और नेताओं से अलग बनाती थी। यही कारण है कि वह दिल्ली की जनता ने उन्हें दिल में बसाया और 2008 में भी उन्हें पूरा बहुमत देकर लगातार तीसरी बार सत्ता पर बिठाया।


2013 तक प्रदेश की मुख्यमंत्री रहने के बाद कांग्रेस आलाकमान ने उन्हें केरल का राज्यपाल बनाया पर स्वास्थ्य समस्याओं को लेकर उन्होंने 6 महीने में ही राज्यपाल के पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद वह कांग्रेस के संगठन को मजबूत करती रही। 2019 लोकसभा चुनाव में उन्हें दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष बनाया गया। वह उत्तर-पूर्वी दिल्ली से चुनावी मैदान में भी थी पर मोदी लहर से पार नहीं पा सकी। शीला दीक्षित के निधन से राजनीतिक गलियारा शोक में है।

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