राज्यसभा में गुलाम नबी आजाद बोले- आएगी नहीं याद तो वर्षों नहीं आएगी, मगर जब याद आओगे तो बहुत याद आओगे..

Rajya Sabha Live: राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद के कार्यकाल का आज अंतिम दिन है। राज्यसभा में गुलाम नबी आजाद ने बोलते हुए कहा कि आएगी नहीं याद तो वर्षों नहीं आएगी। मगर जब याद आओगे तो बहुत याद आओगे। गुलाम नबी आजाद ने कहा कि 2005 नवंबर में जब में मुख्यमंत्री बना और मई में दरबार कश्मीर में खुला तो मेरा स्वागत गुजरात के मेरे भाईयो और बहनों से हुआ।
मैं भी दो ही दिन पहले पहुंचा था। तो वहां स्वागत करने का मलीटंट का यही तरीका था, क्या आप हत्या करो गरीबों की तो वही स्वागत होता है। उसका मतलब था कि हम हैं, इस गलतफहमी में मत रहना। निषादबाद जो की राजभवन के साथ वहां बस से उस पर लिखा था गुजरात की बस। उसमे हमारे 40 गुजरात के भाई और बहने टूरिस्ट थे। बस में उन्होंने ग्रेनेड लगाया। और मेरे ख्याल में दर्जन से ज्यादा वहीं हताहत हो गई और वहीं जख्मी हो गए। मैं फोरन उस जगह पर पहुंच लेकिन तब तक पुलिस ने वो हटा दिया।
राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद के कार्यकाल का अंतिम दिन#Rajyasabha
— डीडी न्यूज़ (@DDNewsHindi) February 9, 2021
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फिर में जैसे ही मान्य प्रधानमंत्री जी इन्होंने भी डिफेंस मिनिस्टरी बात की। मैंने प्रधानमंत्री से बात की, जहाज आया। लेकिन जब में एयर पोर्ट पर पहुंचा। तो बच्चों रोते रोते मेरी टांगों को पकड़ लिया। तो जोर से मेरी आवाजें निकल गईं। ऐ खुदा तुमने ये क्या किया। मैं कैसे जवाब दूं इन बच्चों को, मैं कैसे जवाब दूं उन बहनों को। जो यहां शहर करने के लिए आये थे और आज में लाशें लेकर इनके हवाले कर रहा हूं बच्चों के माता पिता की।
तो ये भावुक होने की जरूरी बात। आज हम अल्लाह से भगवान से यही दुआ करते हैं कि इस देश से आतंकबाद खत्म हो जाये। गुलाम नवी आजाद ने आगे कहा कि हजारों हमारे सिक्योरटी फोर्स के आर्मी के पैलामिलिट्री फोर्स के पुलिस के जवान मारे गए हैं। सिविलियन क्रास फायरिंग में मारे गए हैं। हमारी आज हजारों बेटियां और मांए बेवा हैं।
लेकिन उसमें उनके बच्चों का क्या कसूर, उनकी बेवाओं का क्या कसूर, वो भी हजारों की तैदाद में। ये आतंकबाद जब खत्म हो जायेगा। तो उनके बच्चे और बेवाओं को भी रोजगार मिलेगा। वो भी इंसानों की जिंदगी बसर करेंगे। इसके लिए हमने सबने प्रायस करदां। उन्होंने सरकार से कहा कि इसका कोई ऐसा हल निकलना ताकि हमारे कश्मीर के हालात ठीक हो जाएं।
गुलाम नबी आजाद कश्मीर पंडित भाईयों और बहनों के लिए शेर कहा- गुजर गया वो जो छोटा सा एक फसाना था। फूल थे चमन था, आशयाना था। गुजर गया वो जो छोटा सा एक फसाना था। न पूछ उजड़ने नशेमन की दास्तां, के थे चार तिनके, मगर नाम तो आशियाना था।
इसके बाद गुलाम नबी आजाद ने एक और शेर कहा- दिल न उम्मीद तो नहीं, नाकाम ही तो है। लंबी है गम की शाम, शाम ही तो है। आखिर में गुलाम नबी आजाद ने कहा कि बदलेगा न मेरे बाद मौज-ए-गुफ्तगू, मैं जा चुका होऊंगा। मगर तेरी महफिलों में रहूंगा।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, गुलाम नबी आजाद ने यह भा कहा कि मैं उन सौभाग्यशाली लोगों में से हूं, जो कभी पाकिस्तान नहीं गए। जब मैं पाकिस्तान में परिस्थितियों के बारे में पढ़ता हूं, तो मुझे हिंदुस्तानी मुसलमान होने पर गर्व महसूस होता है।
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