GNCTD Amendment Bill 2021: जानें क्या है जीएनसीटीडी विधेयक, जिसको लेकर केंद्र और दिल्ली सरकार में मची है रार, एक नजर में समझिए बिल पर राजनीति

केंद्र सरकार के द्वारा संसद में पेश किए गए राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र सरकार (संशोधन) विधेयक-2021 (GNCTD Amendment Bill 2021) को लेकर मोदी सरकार के खिलाफ दिल्ली (Delhi) सरकार और कांग्रेस (Congress) ने मोर्चा खोल दिया है। दिल्ली सरकार का कहना है कि केंद्र की मोदी सरकार गुपचुप तरीके से चुनी हुई सरकार की शक्तियों को कम पर उपराज्यपाल की ताकत को बढ़ा रही है। जब केंद्रीय गृह राज्य मंत्री जी. किशन रेड्डी ने लोकसभा में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र सरकार (संशोधन) विधेयक पेश किया तो सबसे पहले दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने सबसे पहले केंद्र सरकार पर टिप्पणी की और चुनी हुई सरकार की शक्ति कम करने का आरोप लगाया। जिसके बाद केंद्र और दिल्ली सरकार एक बार फिर एक बिल को लेकर आमने-सामने हैं।
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली सरकार (संशोधन) विधेयक 2021 को सोमवार को लोकसभा में पेश किया गया। जबकि केंद्र सरकार का कहना है कि विधेयक निर्वाचित सरकार और उपराज्यपाल की जिम्मेदारियों को परिभाषित करेगा। लेकिन वहीं दूसरी तरफ दिल्ली सरकार और उसके नेता इस बात का दावा कर रहे हैं कि यह केंद्रशासित प्रदेश दिल्ली सरकार की शक्तियों पर अंकुश लगाने की योजना है।
जानें क्या है जीएनसीटीडी बिल और क्यों है विवाद
विभिन्न वर्गों में संशोधन के माध्यम से विधेयक को पेश किया है। केंद्रशासित प्रदेश की सरकार को किसी भी प्रशासनिक फैसले लेने से पहले उपराज्यपाल की राय या फाइलें भेजनी जरूरी होगी। विधेयक के जरिए लेफ्टिनेंट गवर्नर के साथ अधिनियम में सरकार को प्रतिस्थापित करना है। विधेयक में कहा गया है कि विधानसभा द्वारा बनाए जाने वाले किसी भी कानून में को लागू करने से पहले उपराज्यपाल के पास जाना होगा। अन्य संशोधन धारा-44 में किया गया है। दिल्ली सरकार के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र अधिनियम-1991 की धारा 44 में संशोधन कर पेश किया गया। विधेयक कहता है कि मंत्रिपरिषद या एक मंत्री के निर्णय के अनुपालन में कोई भी कार्रवाई करने से पहले सभी शक्तियां उपराज्यपाल के पास होगी।
बिल के पीछे केंद्र का तर्क
केंद्र सरकार का कहना है कि अधिनियम की धारा-44 के व्यवसाय के संचालन से संबंधित है। इस बारे में कोई स्पष्टता नहीं है कि आदेश जारी करने से पहले उपराज्यपाल को किस प्रस्ताव या मामलों को भेजना आवश्यक होगा। विधेयक में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के बारे में भी बात की गई है और कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने 4 जुलाई 2018 के अपने फैसले में और सुप्रीम कोर्ट की डिवीजन बेंच ने 14 फरवरी 2019 को जो आदेश दिया उसके बारे में बताया गया है।
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