संजीव भट्ट : एक तेजतर्रार आईपीएस जिसने खुद को प्रशासन से बड़ा समझने की भूल कर दी, मिला आजीवन कारावास

संजीव भट्ट : एक तेजतर्रार आईपीएस जिसने खुद को प्रशासन से बड़ा समझने की भूल कर दी, मिला आजीवन कारावास
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बुधवार को गुजरात कैडर के आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट को एक 30 साल पुराने मामले में गुजरात की जामनगर अदालत ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। जामनगर में दंगे हुए तब संजीव भट्ट जामनगर में अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक के रूप में तैनात थे। दंगा भड़काने के आरोप में भट्ट ने करीब 100 लोगों को हिरासत में लिया था। इनमें से एक की मौत हो गई। इस आरोप में उन्हें 2011 में निलंबित कर दिया गया। उसके बाद वह बिना किसी सूचना के वह गायब रहे। साथ ही सरकारी गाड़ी के दुरुपयोग का भी आरोप लगा और 2015 में उन्हें नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया।

बुधवार को गुजरात कैडर के आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट को एक 30 साल पुराने मामले में गुजरात की जामनगर अदालत ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। जामनगर में दंगे हुए तब संजीव भट्ट जामनगर में अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक के रूप में तैनात थे। दंगा भड़काने के आरोप में भट्ट ने करीब 100 लोगों को हिरासत में लिया था। इनमें से एक की मौत हो गई। इस आरोप में उन्हें 2011 में निलंबित कर दिया गया। उसके बाद वह बिना किसी सूचना के वह गायब रहे। साथ ही सरकारी गाड़ी के दुरुपयोग का भी आरोप लगा और 2015 में उन्हें नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया।

आईआईटी मुंबई से एमटेक

संजीव भट्ट गुजरात के उन अधिकारियों में गिने जाते थे जो हर मुश्किल हालात से बहादुरी के साथ निपट लेते थे। संजीव आईआईटी मुंबई से एम टेक किए उसके बाद संघ लोकसेवा की तैयारी में लगे और 1988 में वह आईपीएस के रूप में चयनित हुए। इसके बाद वह करीब 25 सालों तक गुजरात के तमाम जिलों में पुलिस आयुक्त के कार्यालय और अन्य पुलिस इकाइयों में काम किया।

जोधपुर दंगा

संजीव भट्ट अपनी कार्यशैली को लेकर जितना चर्चा में रहे उतना ही विवादों में भी रहे। वह कई बार कोर्ट बनकर फैसला तय कर देते थे। 90 के दशक में वह जब जामनगर में पुलिस अधीक्षक थे तो जोधपुर में दंगा हुआ, पुलिस ने 100 लोगों को गिरफ्तार किया गया। संजीव भट्ट के निर्देश पर हिरासत में लिए गए लोगों को जमकर पीटा गया। जिससे प्रभुदास वैष्णवी की हालत बेहद खराब हो गई। पुलिस ने उन्हें आननफानन में अस्पताल पहुंचाया जहां उनकी मौत हो गई। मृतक के परिजनों ने केस कर दिया। जिसका फैसला अब जाकर आया है।

मादक पदार्थों की खेती

हिरासत में लेकर बर्बरता से पीटने का आरोप 1998 में भी लगा पर आरोप सिद्ध न हो पाने के कारण कोई कार्रवाई नहीं हुई। इसी साल मादक पदार्थों की खेती करने के मामले में संजीव भट्ट को गिरफ्तार किया गया था पर यहां भी वह बच निकले। दिसंबर 1999 से सितंबर 2002 तक संजीव भट्ट को राज्य खुफिया ब्यूरो मे उपायुक्त बनाया गया। संजीव राज्य की आंतरिक सुरक्षा के मामले देखते थे। केंद्रीय एजेंसियों को खुफिया सूचना देते थे। साथ ही गुजरात में माननीयों की सुरक्षा की जिम्मेदारी का कार्यभार भी भट्ट ने संभाला।

राजनीति में प्रवेश

संजीव भट्ट ने अपने को प्रशासन से बड़ा मानना शुरू कर दिया। 2011 में ड्यूटी से गायब रहने और सरकारी गाड़ी का दुरूपयोग करने के कारण निलंबित कर दिया गया। इसके बाद जमकर बवाल मचा, संजीव की पत्नी ने फेसबुक पोस्ट पर अपने पति की जान के खतरे को लेकर एक पोस्ट किया जिसके बाद उनकी सीधी सरकार से ठन गई। संजीव ने राजनीति में प्रवेश किया और अपनी पत्नी को 2012 विधानसभा चुनाव में राज्य के तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ मणिनगर विधानसभा सीट से चुनाव में उतारा पर सफलता नहीं मिली।

इसके बाद वह सरकार की आंखों में चढ़ गए। 2015 में संजीव भट्ट को गुजरात सरकार ने बर्खास्त कर दिया। 2018 में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। तब से वह जेल में ही थे। बुधवार को मिली सजा उन्हें 30 साल पहले हिरासत में लेकर पीटने के मामले में दोषी पाए जाने के कारण मिली है। बाकी के मामले अभी भी उनपर चलते रहेंगे। पुलिस अधिकारियों पर ये कोई पहला मामला नहीं है, ऐसे ही तमाम मामले अक्सर सामने आ जाते हैं जहां पुलिस की थर्ड डिग्री से लोगों की जान जाती रही है।

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