Gyanvapi Masjid Survey: ASI कैसे पता लगाएगी कि ज्ञानवापी मस्जिद है या मंदिर ?

Gyanvapi Masjid Survey: वाराणसी कोर्ट के आदेश के बाद बीते सोमवार को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) विभाग की टीम ज्ञानवापी मस्जिद परिसर का सर्वे करने के लिए पहुंची थी। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने परिसर के वैज्ञानिक सर्वेक्षण पर बुधवार शाम 5 बजे तक रोक लगा दी। ज्ञानवापी मस्जिद है या मंदिर इस बात की जानकारी अब 26 जुलाई के बाद ही सामने आ सकेगी। इसमें सबसे बड़ी बात यह है कि एएसआई की टीम सर्वे कैसे करेगी।
एएसआई की टीम सर्वे कैसे करेगी
किसी भी पुरानी इमारतों और खंडहरों के समयकाल और उसकी सच्चाई का पता लगाने के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) विभाग की टीम कई तरीके अपनाती है, लेकिन ज्ञानवापी मस्जिद परिसर (Gyanvapi Masjid) के सटीक नतीजे जानने के लिए एएसआई की टीम के द्वारा ये तीन महत्वपूर्ण तरीके अपनाए जा सकते हैं। इनमे परिसर की बनावट की जांच, कार्बन डेटिंग तकनीक और पुरानी नदियां शामिल हैं।
परिसर की बनावट
इसमें एएसआई की टीम यह जांचने का प्रयास करती है कि परिसर की बनावट में किस वास्तुकला का इस्तेमाल किया गया है और किस राजा के समयकाल में इसका निर्माण किया गया होगा। अगर इसे हिंदू मंदिरों (Hindu Temple) के संदर्भ में देखें तो इमारतों में त्रिशूल, कलश, कमल और अन्य तरह की कलाकृतियां उकेरी जाती थी। इसके अलावा बाकी धर्मों की बात करें तो इनमें अलग तरीके की नक्काशी का प्रयोग किया जाता था। इसलिए इसमें भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की टीम यह कलाकृति और वास्तुकला की जांच करती है।
कार्बन डेटिंग
कार्बन डेटिंग (Carbon Dating) को रेडिया कार्बन डेटिंग के नाम से भी जाना जाता है। कार्बन डेटिंग से किसी जीवाश्म या पुरातत्व संबंधी वस्तु की उम्र की पुख्ता जानकारी मिल जाती है। यानी कि इससे यह पता लगाया जा सकता है कि किसी भी इमारत या खंडहर की असली उम्र क्या है। हालांकि, ज्ञानवापी परिसर के वजूखाने (Wazukhana) यानी कि शिवलिंग के जैसी दिखने वाली आकृति की कार्बन डेटिंग पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने रोक लगा दी है।
नदियों के द्वारा पता लगाना
पहले के समय में अधिकतर लोग नदी के किनारे ही बसते थे और वहीं पर वह भवन या मंदिर का निर्माण करवाते थे। इन्हीं जगहों पर लोग बर्तन या दूसरा कोई भी सामान दबा देते थे। जब भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) विभाग की टीम किसी भी भवन या परिसर की जांच करती है तो यह जरूर देखती है कि इसके पास कौन सी नदी बहती है या कौन सा नदी क्षेत्र रहा होगा। इन जगहों पर तकरीबन 5 से 10 फीट की गहराई तक खुदाई की जाती है।
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