Haribhoomi Expalainer: '...अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों', मदन मोहन कोहली की पुण्यतिथि आज, पढ़ें संगीत के जादूगर की कहानी

Haribhoomi Expalainer: मशहूर संगीतकार मदन मोहन कोहली (Madan Mohan Kohli) के एक गीत 'आपकी नजरों ने समझा प्यार के काबिल मुझे, दिल की ऐ धड़कन ठहर जा... मिल गई मंजिल मुझे' से संगीत सम्राट (Sangeet Samrat) कहे जाने वाले नौशाद (Naushad) को इस गीत ने दीवाना बना दिया था। वे इस गीत से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने मदन मोहन से इस धुन के बदले अपने संगीत का पूरा खजाना लूटा देने की इच्छा जाहिर कर डाली। यही नहीं, मदन मोहन का लिखा गीत, 'कर चले हम फिदा जान ओ तन साथियों, अब तुम्हारे…’ आज भी देशभक्ति के जोश को दोगुना कर देता है। आज उन्हीं संगीतकार मदनमोहन की पुण्यतिथि (Death Anniversary) है। आइए आज के हरिभूमि एक्सप्लेनर के माध्यम से हम आपको बॉलीवुड (Bollywood) के मशहूर संगीतकार (Musician) मदनमोहन कोहली की अनसुनी कहानी बताते हैं।
बॉलीवुड के मशहूर संगीतकार मदनमोहन कोहली का जन्म साल 1952 में 25 जून को हुआ था। उनके पिता रायबहादुर चुन्नीलाल फिल्म दुनिया से जुड़े हुए थे और बॉम्बे टॉकीज (Bombay Talkies) और फिल्मिस्तान (Filmistaan) जैसे बड़े फिल्म स्टूडियो के हिस्सेदार थे। परिवार में फिल्मी माहौल होने के कारण मदनमोहन भी फिल्मों में काम करके बड़ा नाम कमाना चाहते थे, लेकिन उनके पिता के कहने पर उन्होंने सेना में भर्ती होने का फैसला लिया और देहरादून में नौकरी करने लगे।
सेना छोड़ ग्लैमर वर्ल्ड में आए
बॉम्बे टॉकीज (Bombay Talkies) फिल्म कंपनी के एक निर्देशक रायबहादुर चुन्नीलाल कोहली (Raibahadur Chunnilal Kohli) के बेटे थे। चुन्नीलाल ने बाद में फिल्मिस्तान की नींव रखी और नामी फिल्मों के साथ कई सितारे फिल्माकाश को दिए। वे नहीं चाहते थे कि उनका बेटा ग्लैमर की इस दुनिया में कदम रखे, लेकिन फिल्मी दुनिया का आकर्षण मदनमोहन में इतना जबरदस्त था कि उन्होंने सेना की नौकरी छोड़कर ऑल इंडिया रेडियो लखनऊ (Lucknow) जॉइन कर लिया। यहां काम करते हुए उन्हें न केवल संगीत राग रागिनियों का ज्ञान मिला, बल्कि देश के शास्त्रीय सुगम गायक-गायिकाओं, वादक और संगीतकारों के संपर्क में आकर उन्होंने बहुत कुछ सीखा। गजल गायिका बेगम अख्तर (Begum Akhtar) और बरकत अली साहब (Barkat Ali Sahab) का उन पर विशेष प्रभाव हुआ। बाद में फिल्मों में मौका मिलने पर मदनमोहन ने जो बंदिशें रची- मैंने रंग दी आज चुनरिया, जिया ले गयो जी मोरा सांवरिया, नैनों में बदरा छाए इन पर बरकत अली साहब का प्रभाव सीधे-सीधे देखा जा सकता है।
बेगम अख्तर का प्रभाव
बेगम अख्तर की गजल गायन का सीधा प्रभाव मदनमोहन की बंदिशों में सुनने को मिलता है। कहा तो यह भी जाता है कि मदनमोहन जैसी गजलों की रचना करने में कोई दूसरा न हुआ। मदनमोहन की कुछ लाजवाब गजलें- उनको ये शिकायत है कि हम कुछ नहीं कहते, आपकी नजरों ने समझा प्यार के काबिल मुझे, आज सोचा तो आंसू भर आए, इसी में प्यार की आरजू और हम प्यार में जलने वालों को चैन कहां आराम कहां।
क्रिकेट का जुनून और खाना बनाने के शौकीन
मदन मोहन अपने निजी जीवन में शौकीन व्यक्ति थे। क्रिकेट खेलना उनको बहुत पसन्द था, यही वजह थी कि समय मिलने पर वग क्रिकेट जरूर खेलते थे। वानखेड़े स्टेडियम में बिना गैप किए क्रिकेट मैच को देखने का जुनून उनके पास था। मदन मोहन टेनिस भी खेलते थे। अक्सर घर पर नए-नए पकवान बनाते थे। पकवान बनाना उन्हें जितना पसंद था, उससे अधिक प्यार से दोस्तों को खिलाते भी थे। ब्रीच कैंडी स्थित बाम्बेलिस रेस्तरां में वे अक्सर जाते थे, जहां जयकिशन और तलत मेहमूद से घंटों बातचीत करते थे। तीनों में अक्सर शर्त लगती थी कि किसके ऑटोग्राफ लेने ज्यादा लोग आएंगे। अक्सर जीत तलत मेहमूद की होती थी। इन शौक के अलावा उन्हें शराब पीने का भी बहुत शौक था। शराब के ही कारण कम उम्र में जीवन से हाथ धो बैठे।
लता और मदनमोहन के बीच गहरा प्रेम
लताजी की पहली मुलाकात मदन मोहन से फिल्मिस्तान स्टूडियो में हुई थी। यह वर्ष 1947 था और उन्हें कुछ पहचान मिलनी शुरू हो गई थी। मास्टर गुलाम हैदर ने उन्हें एक गाना रिकॉर्ड करने के लिए बुलाया था। जब वह फिल्मिस्तान स्टूडियो पहुंचीं तो लताजी को मालूम हुआ कि बहुत बड़ी फिल्म शहीद की शूटिंग हो रही है। उन्हें इसके लिए एक युगल गीत रिकॉर्ड करने के लिए बुलाया गया है। जिस शख्स के साथ उन्हें यह युगल गीत गाना था, उसका नाम मदन मोहन था। लताजी ने उन्हें पहले कभी नहीं देखा था और न ही उन्हें गाते हुए सुना था।
लताजी ने मदन मोहन के साथ जो युगल गीत रिकॉर्ड किया था, वह भाई-बहन के स्नेह पिंजरे में बुलबुल बोले मेरा छोटा सा दिल डोले के बारे में एक गीत था। रिकॉर्डिंग के बाद, उन्होंने मदन मोहन को उनकी गायकी के लिए बधाई दी। मदन मोहन ने उन्हें संक्षेप में बताया कि वह गायक नहीं बल्कि संगीतकार बनने जा रहे हैं और संगीतकार के रूप में उनके पहले प्रोजेक्ट में वह उनके लिए गाएंगी। लेकिन किसी कारण वश लताजी उनकी पहली फिल्म आंखें में गाना नहीं गा सकीं। मदन मोहन इस बात से बहुत दुखी थे। वह उन्हें अपने घर ले गए और बोलो जब हम पहली बार मिले तो हमने एक भाई और बहन के बारे में एक गाना गाया। आज रक्षाबंधन है, आओ मुझे राखी बांधो। आज से तुम मेरी बहन हो और मैं तुम्हारा मदन भैया हूं।
लताजी के मदन भैया
मदनमोहन लताजी को बहन मानते थे और बदले में लताजी उन्हें सारे जीवन मदन भैया कह कर पुकारती थीं। लताजी ने एक बार कहा था कि दूसरे संगीतकारों ने मुझे गाने दिए हैं, जबकि मदन भैया ने संगीत दिया है। फिल्म संगीत के विशेषज्ञ कहते हैं कि लता मंगेशकर ने अपनी गायकी जीवन का सर्वोत्तम गायन मदनमोहन के संगीत में स्वरबद्ध किया है।
मरणोपरांत भी संगीत की दुनिया में जिंदा हैं मदन मोहन
मदन मोहन एकमात्र हिंदी फिल्म संगीतकार हैं जिन्हें ऐसी फिल्म के लिए संगीत निर्देशक के रूप में श्रेय दिया जाता है जिसका संगीत मरणोपरांत निर्मित और रिकॉर्ड किया गया था। मदन मोहन के बेटे संजीव कोहली ने मदन मोहन की मृत्यु के लगभग तीन दशक बाद शाहरुख खान, प्रीति जिंटा, रानी मुखर्जी अभिनीत फिल्म वीर जारा (2004) के लिए अपने पिता की रचनाओं को फिर से बनाया।
साल 1975 में लिवर सिरोसिस बीमारी के कारण इनका असामयिक निधन हो गया। उनकी अंतिम यात्रा में फिल्म उद्योग के सबसे लोकप्रिय सितारे राजेश खन्ना, धर्मेन्द्र, अमिताभ बच्चन एवं राजेन्द्र कुमार इत्यादि सम्मिलित हुए थे।
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