Haribhoomi Explainer: दो-दो बार प्रधानमंत्री बनने के बाद भी नहीं था खुद का घर, यहां पढ़िए अजब प्रधानमंत्री की गजब कहानी

Haribhoomi Explainer: पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न गुलजारी लाल नंदा (Gulzari Lal Nanda) की आज 125वीं जयंती देश भर में मनाई जा रही है। गुलजारी लाल नंदा देश के दो बार अंतरिम प्रधानमंत्री (Prime Minister) रहे। करीब दो दशकों तक वह बम्बई सरकार (Bombay Government) और केंद्र सरकार में मंत्री थे। लेकिन सक्रिय राजनीति को अलविदा कहने के बाद वह दिल्ली (Delhi) में किराये के मकान में रहते थे। जब वे किराया नहीं दे सके, तो उनकी बेटी उन्हें अपने साथ अहमदाबाद (Ahmedabad) ले गई। आइए आज के हरिभूमि एक्सप्लेनर के माध्यम से जानते हैं देश के पूर्व प्रधानमंत्री गुलजारी लाल नंदा के जीवन और उनसे जुड़ी हुई खास बातों को...
प्रधानमंत्री गुलजारी लाल नंदा को अक्सर भारत के सबसे कम समय तक रहने वाले अंतरिम प्रधानमंत्री के रूप में याद किया जाता है, जिन्होंने दो बार 13 दिनों का कार्यकाल पूरा किया था। अंतरिम प्रधानमंत्री के अलावा वह स्वतंत्रता सेनानी (Freedom Fighter) और कांग्रेस नेता थे। हालांकि वह कांग्रेस के एक प्रमुख नेता थे, फिर भी उन्होंने आपातकाल (Emergency) का विरोध किया और बाद में पार्टी से इस्तीफा दे दिया।
सत्ता की नहीं थी लालसा
1964 में जवाहरलाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) की मृत्यु के बाद नेहरू की विचारधारा को लेकर आगे बढ़ना देश के लिए चुनौती से कम नहीं था। दुनिया भी यह देखना चाहती थी कि क्या देश वास्तव में नेहरू की विचारधारा के साथ लोकतंत्र को कायम रख सकता है। इसके अलावा चीन के साथ हालिया युद्ध से बाहर आकर, नंदा का देश का अस्थायी नेतृत्व भारत के इतिहास में एक बहुत ही महत्वपूर्ण मोड़ पर आया। भारत गंभीर खाद्य संकट, अस्थिर राजनीति की ओर बढ़ रहा था और अपने पैर जमाने की कोशिश कर रहा था। इस तरह की विपरीत परिस्थिति में वे तेरह दिनों तक देश का कार्यभार संभाले थे। फिर 13 दिन बाद लाल बहादुर शास्त्री ने उनकी जगह ले ली।
1966 में फिर बने कार्यवाहक प्रधानमंत्री
1966 में शास्त्री की मृत्यु के साथ इतिहास ने खुद को दोहराया। हालांकि, इस बार नंदा को भारतीय मंत्रिमंडल के सदस्यों ने प्रधानमंत्री के रूप में पद बरकरार रखने के लिए प्रोत्साहित किया था। लेकिन वह अनिच्छुक थे, क्योंकि वह खुद को सत्ता के खेल का हिस्सा नहीं बनने देना चाहते थे। दोनों बार कार्यालय में उनकी सीमित अवधि ने उन्हें राष्ट्र के ढांचे में कोई स्थायी परिवर्तन करने में सक्षम नहीं होने दिया, फिर भी वे भ्रष्टाचार के खिलाफ अपने रुख पर बेहद मुखर रहे। एक कट्टर हिंदू के रूप में नंदा चाहते थे कि भारत में गाय के वध पर प्रतिबंध लगाया जाए, लेकिन उन्होंने इस विषय पर संसद में बोलने से इनकार कर दिया था। इस विषय पर उनके मजबूत विचारों ने उनके फैसले को प्रभावित किया। यह निर्णय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को दिया गया। संसद भवन के बाहर सड़कों पर दंगे भड़क गए और दंगाई जो हिंदू साधु प्रतीत होते थे, परिसर के साथ-साथ एक कांग्रेस नेता के घर में भी घुस गए। बाद में यह पाया गया कि दंगा उन लोगों के द्वारा किया गया था जिन्हें भ्रष्टाचार के प्रति उनके रवैये से परेशानी थी।
किराए के घर में रहते थे
गुलजारी लाल नंदा अपने सिद्धांतवादी व्यक्तित्व के लिए जाने जाते थे। उन्होंने एक बार अपने पोते को एक स्केच बनाने के लिए आधिकारिक स्टेशनरी का उपयोग करने के लिए डांटा था। नंदा के पास कोई निजी संपत्ति नहीं थी। एक घटना में दर्ज है कि किराया न चुकाने के कारण उन्हें नई दिल्ली की डिफेंस कॉलोनी में उनके किराए के घर से निकाल दिया गया था, जिसके बाद वह अपनी बेटी के साथ रहने के लिए अहमदाबाद चले गए। उन्होंने स्वयं को किसी भी प्रकार की भौतिकवादी इच्छाओं से दूर रखा। हालांकि इससे उन्हें अपने साथियों के बीच बहुत सम्मान मिला, लेकिन यह तर्क दिया गया कि इससे एक नेता के रूप में उनका पतन हुआ।
पेंशन लेने को नहीं थे तैयार
पूर्व प्रधानमंत्री गुलजारी लाल नंदा दो बार भारत के कार्यवाहक प्रधानमंत्री रहे। एक बार विदेश मंत्री भी बने। उन्हें स्वतंत्रता सेनानी के रूप में 500 मासिक की पेंशन स्वीकृत हुई थी। लेकिन उन्होंने यह कहते हुए पेंशन लेने से मना कर दिए थे कि पेंशन के लिए उन्होंने लड़ाई नहीं लड़ी थी। बाद में मित्रों के समझाने पर कि किराये के मकान में रहते हैं तो किराया कहां से देंगे, उन्होंने पेंशन कबूल की थी।
राजनीति के साथ लेखन में भी अच्छे थे नंदा
गुलजारी लाल नंदा एक अच्छे राजनीतिज्ञ ही नहीं, अपितु अच्छे लेखक भी थे। लेखक के रूप में अपनी भूमिका का भी उन्होंने बेहतर ढंग से निर्वाह भी किया था। उन्होंने कई पुस्तकों की लिखा। उनकी कुछ किताबों के नाम हैं सम आस्पेक्ट्स ऑफ खादी, अप्रोच टू द सेकंड फाइव इयर प्लान, गुरु तेगबहादुर, संत एंड सेवियर, हिस्ट्री ऑफ एडजस्टमेंट इन द अहमदाबाद टेक्सटाइल्स। एक अच्छे राजनीतिज्ञ और लेखक के रूप में उन्हें कई पुरस्कार मिले थे। देश का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न उन्हें 1997 में और दूसरा सर्वश्रेष्ठ नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से उन्हें विभूषित किया गया। उनका निधन 100 वर्ष की उम्र में 15 जनवरी, 1998 को हुआ। इन्हें एक स्वच्छ छवि वाले गांधीवादी राजनेता के रूप में याद रखा जाएगा।
© Copyright 2025 : Haribhoomi All Rights Reserved. Powered by BLINK CMS
-
Home
-
Menu
© Copyright 2025: Haribhoomi All Rights Reserved. Powered by BLINK CMS