Haribhoomi Explainer: हॉकी के जादूगर धनराज पिल्लै का जन्मदिन आज, जानें उनके कुछ अनसुने किस्से

Haribhoomi Explainer: हॉकी के जादूगर धनराज पिल्लै का जन्मदिन आज, जानें उनके कुछ अनसुने किस्से
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Haribhoomi Explainer: भारतीय हॉकी के सुपरस्टार धनराज पिल्लै (Dhanraj Pillay Birthday) का आज जन्मदिन है। करीब 15 साल के अपने अंतर्राष्ट्रीय करियर में धनराज ने देश को गर्व के कई मौके दिए। उनके प्रदर्शन को अब भी प्रशंसक याद करते हैं। लेकिन उनके करियर से पहले संघर्षों की भी एक लंबी दास्तान है। जानें, उनके जीवन से जुड़े कुछ सुने-अनसुने किस्से...

Haribhoomi Explainer: जिन लोगों ने 1990 के दशक में भारतीय हॉकी (Indian Hockey) का खेल देखा है, उनके लिए धनराज पिल्लै (Dhanraj Pillai) का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है। वे हमारे कप्तान थे और खेले के दौरान विपक्षी खेमे से डंटकर मुकाबला करने के लिए जाने जाते थे। उनके अंदर प्रतिभा कूट-कूटकर भरी हुई थी और अपने साथी खिलाड़ियों का हमेशा साथ देते थे, लेकिन उन्हें भी अपने करियर की शुरुआत में संघर्ष करना पड़ा। धनराज ने हॉकी के शीर्ष तक ​​पहुंचने के लिए जीवन में आने वाली हर परिस्थितियों से संघर्ष किया। आज हॉकी के महान खिलाड़ी रहे धनराज पिल्लै का जन्मदिन (Birthday) है। इस अवसर पर हरिभूमि एक्सप्लेनर के माध्यम से जानते हैं उनके जीवन और करियर से जुड़ी हुई कुछ कहानियां।

भारतीय हॉकी खिलाड़ी और भारतीय राष्ट्रीय टीम के पूर्व कप्तान (Ex-Captain) धनराज पिल्लै आज 55 वर्ष के हो गए। वे चार विश्व कप (World Cup), ओलंपिक फाइनल, चैंपियंस ट्रॉफी और एशियाई खेलों में भाग लेने वाले एकमात्र हॉकी खिलाड़ी भी हैं। धनराज का जन्म 16 जुलाई 1968 को पुणे जिले के खड़की में एक साधारण परिवार में हुआ था। उनके पिता पुणे (Pune) की एक स्थानीय गोला बारूद फैक्ट्री में काम करते थे। धनराज का हॉकी के प्रति प्रेम शुरू से ही बहुत ज्यादा था। बचपन में उन्होंने टूटी हुई लाठियों से और उबड़-खाबड़ मैदानों पर नंगे पैर रहकर हॉकी सीखी। करियर के इस कठिन दौर ने उन्हें भारतीय हॉकी में अब तक के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों में से एक बना दिया।

पुलिस से डर कर आए थे मुंबई

धनराज पिल्लै बड़ा होने के बाद पुणे से मुंबई आ गए। वैसे कहा जाता है कि वे अपने भाई के कहने पर मुंबई चले गए। लेेकिन वास्तविकता यह थी कि वे पुलिस के डर की वजह से अपने भाई के साथ रहने के लिए मुंबई चले गए। बता दें कि खड़की में धनराज पिल्लै एक बार झगड़े में पड़ गए थे और उन्हें डर था कि पुलिस उन्हें पकड़ लेगी। उनका चंचल स्वभाव उनके बाद के जीवन में, कोर्ट के बाहर और कोर्ट पर काफी विवादों में रहा।

पैसों की दिक्कत, फिर भी दिखाया कमाल

पैसों की दिक्कत के कारण धनराज टूटी हुई लकड़ियों को गोंद और तारों से चिपकाकर अभ्यास करते थे। लेकिन उनकी दृढ़ता रंग लाई। धनराज ने 1989 में पहली बार भारतीय हॉकी टीम में जगह बनाई थी। इसके बाद उन्होंने आने वाले सालों में मोहम्मद शाहिद की खाली जगह को भर दिया था। 1989 से 2004 के बीच उन्होंने 339 खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व किया और अपने देश के लिए 170 गोल किए। वे चार ओलंपिक (1992, 1996, 2000 और 2004), चार विश्व कप (1990, 1994, 1998 और 2002), चार चैंपियंस ट्रॉफी (1995, 1996, 2002 और 2003) खेलने वाले एकमात्र खिलाड़ी हैं। इसके अलावा उन्होंने चार एशियाई खेल (1990, 1994, 1998, और 2002) भी खेले।

विदाई मैच में मात्र दो मिनट का समय

यह कहना उचित होगा कि पद्मश्री धनराज पिल्लै का नाम भारतीय हॉकी का पर्याय है। भारतीय राष्ट्रीय टीम के पूर्व कप्तान ने अपने करियर में कई उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल की हैं। उन्होंने चार ओलंपिक खेलों, विश्व कप और चैंपियंस ट्रॉफी में भाग लिया है। 2004 एथेंस ओलंपिक में भारत के लिए अपने आखिरी गेम में पिल्लै को तत्कालीन कोच गेरहार्ड रैच द्वारा केवल दो मिनट और 55 सेकंड का खेल का समय दिया गया था। यह उनके स्तर के खिलाड़ी को दी गई सबसे खराब विदाई मानी जाती है। रच और पिल्लै की कभी आपस में नहीं बनी। कई मुद्दों के बाद रैच को अंततः जनवरी 2005 में बर्खास्त कर दिया गया।

हॉकी अकादमी खोलना चाहते हैं पिल्लै

पिल्लै मुंबई में हॉकी अकादमी शुरू करने की कोशिश कर रहे हैं। अपनी अकादमी की खातिर धन जुटाने के लिए, उन्होंने मुंबई में खाली प्लास्टिक प्रिंटर कार्ट्रिज इकट्ठा करने और उन्हें एक यूरोपीय रिसाइक्लिंग फर्म को बेचने के अभियान का नेतृत्व किया। हालांकि, मुंबई हॉकी एसोसिएशन ने अपनी एस्ट्रोटर्फ सुविधा को प्रशिक्षण के लिए इस्तेमाल करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया है।

धनराज पिल्लै से जुड़े रोचक तथ्य

  • उनका जन्म 16 जुलाई 1968 को पुणे के पास खड़की में हुआ था। उनके पिता एक ग्राउंड्समैन थे और आर्थिक रूप से गरीब पृष्ठभूमि से थे।
  • धनराज पिल्लै एकमात्र भारतीय हॉकी खिलाड़ी हैं जिन्होंने 4 विश्व कप, 4 ओलंपिक, 4 एशियाई खेल और 4 चैंपियन ट्रॉफी खेली।
  • उन्होंने भारत के लिए 330 से अधिक अंतर्राष्ट्रीय मैच खेले।
  • 1988 में भारत ने एशियाई खेलों में जीत हासिल की, जिसमें वे सबसे अधिक गोल करने वाले खिलाड़ी थे। उनकी कप्तानी में भारत ने 2003 विश्व कप में जीत हासिल की।
  • भारत के अलावा मलेशिया में भी उनके काफी संख्या में प्रशंसक थे।
  • उन्हें राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार से पुरस्कृत किया गया। साल 2000 में उन्हें पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया था।
  • 'मुझे माफ कर दो अम्मा' उनकी जीवनी है, जिसे पत्रकार सुदीप मिश्रा ने लिखा है।
  • वर्तमान में वे भारतीय हॉकी टीम के प्रबंधक के रूप में कार्यरत हैं।
  • 2003 में उन्होंने भारत को एशिया कप का खिताब भी दिलाया था।

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