Haribhoomi Explainer: जमशेदजी जीजीभॉय की जयंती आज, पढ़िए कैसे शराब की बोतलें बीनने वाला बना सदी का सबसे बड़ा दानी

Haribhoomi Explainer: 19वीं सदी में भारत के सबसे अमीर व्यक्तियों में से एक जमशेदजी जीजीभॉय (jamshedji jeejeebhoy) के जीवन को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है, एक व्यापारी के रूप में और दूसरा गरीब और असहाय की सेवा में दान देने के रूप में। 15 जुलाई 2023 यानी आज भारत के बड़े व्यापारी में से एक जमशेदजी जीजीभॉय की जयंती है। आज के हरिभूमि एक्सप्लेनर के माध्यम से हम आपको जमशेदजी जीजीभॉय की कहानी बताते हैं। साथ ही बताएंगे कि शराब की बोतल उठाने वाला सदी का सबसे बड़ा दानी कैसे बना।
जमशेदजी जीजीभॉय (Jamsetjee Jejeebhoy) का जन्म 15 जुलाई 1783 को गुजरात (Gujarat) में एक पारसी (Parsee) परिवार में हुआ था। उन्होंने 16 साल की उम्र से पहले अपने माता-पिता को खो दिया था और अपने मामा के साथ शराब की खाली बोतलें खरीदने और बेचने का काम करने के लिए बंबई (Bombay) आ गए। 20 साल की उम्र में जीजीभॉय ने अपने मामा की बेटी अवाबाई (Avabai) से शादी की। अपने परिवार के माध्यम से ही जीजीभॉय ने व्यापार करना और चीन (China) की यात्राएं करना शुरू किया।
व्यापार के लिए शुरू की चीन की यात्रा
इन यात्राओं से उनकी संपत्ति में कोई इजाफा नहीं हुआ, लेकिन इससे उन्हें दक्षिण और पूर्वी एशिया (Eastern Asia) में महत्वपूर्ण संबंध बनाने में मदद मिली। ऐसा ही एक संबंध ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company) के डॉक्टर विलियम जार्डिन के साथ था। जिन्होंने बाद में अफीम का व्यापार करने के लिए कैंटन जिसे अब चीन में गुआंगजौ के नाम से जाना जाता है, एक व्यापारिक घराना स्थापित किया। ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा भारत से अफीम का व्यापार किया जा रहा था। यह वस्तु मालवा में उगाई जाती थी और बंबई से भेजी जाती थी। जीजीभॉय भारत से इस व्यापार को सुगम बना रहे थे। जब तक जीजीभॉय के बेटे कर्सेटजी व्यवसाय संभालने लायक बड़े हो गए, तब तक पारसी व्यापारी ने पीछे हटने और नागरिक जीवन पर ध्यान केंद्रित करने का फैसला कर लिया था।
जीजीभॉय के कुछ अनूठे योगदान
जीजीभॉय ने खूब दान दिया। 1855 तक, उन्होंने खुद को लगभग पूरी तरह से परोपकार और सार्वजनिक जीवन के लिए समर्पित कर दिया था। इतिहासकार जेआरपी मोदी, जिन्होंने जीजीभॉय की जीवनी लिखी है, उनके अनुसार, पारसी व्यापारी ने अपने पूरे जीवन में 2,450,00 पाउंड का दान दिया होगा। जो 2019 में लगभग 10 मिलियन पाउंड या 100 करोड़ रुपये के बराबर था।
पुणे वॉटरवर्क्स की पूरी लागत का लगभग दो-तिहाई हिस्सा जीजीभॉय द्वारा वहन किया गया था। जीजीभॉय की पत्नी अवाबाई ने पूरे माहिम कॉजवे मार्ग के निर्माण के लिए दान किया और यह सुनिश्चित किया कि सरकार नागरिकों से टोल न वसूले। यह मार्ग माहिम द्वीप को बांद्रा से जोड़ता है। 1841 में, अवाबाई ने सड़क के निर्माण के लिए 1,55,800 रुपये का दान किया, जो चार साल बाद पूरा हुआ। जीजीभॉय ने सर जेजे स्कूल ऑफ आर्ट, सर जेजे कॉलेज ऑफ आर्किटेक्चर, सर जेजे इंस्टीट्यूट ऑफ एप्लाइड आर्ट और सेठ आरजेजे हाई स्कूल की स्थापना की।
जे जे अस्पताल की स्थापना
उनके सबसे उल्लेखनीय योगदानों में से एक जे जे अस्पताल की स्थापना थी। 1838 में जब बॉम्बे के तत्कालीन गवर्नर सर रॉबर्ट ग्रांट ने एक अस्पताल स्थापित करने का प्रस्ताव रखा, तो जीजीभॉय ने इसे स्थापित करने के लिए 1 लाख रुपये की पेशकश की। बाद में उन्होंने सर जेजे अस्पताल परिसर का निर्माण करने वाली भूमि के एक विशाल हिस्से के साथ-साथ 1 लाख रुपये का दान दिया। महज सात साल से भी कम समय में अस्पताल बनकर तैयार हो गई।
मवेशियों के लिए भी दिया खूब दान
साल 1838 में अंग्रेजों ने मवेशियों को चराने के लिए चराई शुल्क शुरू किया। जिसे कई गरीब मवेशी चराने वाले वहन नहीं कर सकते थे। पहले मवेशी विक्टोरिया टर्मिनस के सामने खुले मैदान में स्वतंत्र रूप से चरते थे। जिसे अब आजाद मैदान के नाम से जाना जाता है। मवेशी चराने वालों की मदद करने के लिए, जीजीभॉय ने ठाकुरद्वार में समुद्र तट के पास घास के मैदान खरीदने और मवेशियों को बिना शुल्क के चराने के लिए 20,000 रुपये का दान दिया।
जेजे धर्मशाला की स्थापना
जीजीभॉय ने 1.45 लाख रुपये खर्च करके बेलासिस रोड पर सर जेजे धर्मशाला की स्थापना की। एशिया में बुजुर्गों के लिए पहला मुफ्त घर माना जाने वाला धर्मशाला अभी भी बूढ़े और निराश्रित लोगों को मुफ्त भोजन, कपड़े, आश्रय और दवा प्रदान करता है। जीजीभॉय ने आयरलैंड के अकाल (1822), फ्रांस में बाढ़ (1856) और बंबई (1803) और सूरत (1837) को तबाह करने वाली आग के दौरान उदारतापूर्वक दान दिया।
देश के पहले शांति के न्यायाधीश बने
जमशेदजी जीजीभॉय ने 1820 के दशक में जब उनकी उम्र 40 वर्ष थी तो उन्होंने 2 करोड़ रुपये से अधिक की कमाई कर ली थी। उनका नाम भारत के सबसे अमीर लोगों की लिस्ट में पहले स्थान पर आने लगा था। पैसा कमाने के बाद जीजीभॉय नाम कमाना चाहते थे। लिहाजा उन्होंने भारत में अंग्रेजी सरकार के साथ मिलकर स्कूल, कॉलेज, हॉस्पिटल, चैरिटी हाउस और पेंशन फंड समेत कई परोपकार के काम किए। दानशीलता के कारण अंग्रेजों के बीच जीजीभॉय की प्रतिष्ठा बढ़ती जा रही थी। साल 1834 में वह शांति के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त पहले भारतीय बने। 14 अप्रैल, 1859 को 75 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया और वह अपने पीछे एक ऐसी विरासत छोड़ गए जिसकी छाप आज भी मुंबई और पुणे पर है।
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