Haribhoomi Explainer: PM Modi के अमेरिकी दौरे से रूस नाराज, पढ़ें India-Russia Relations पर क्या पड़ेगा असर

Haribhoomi Explainer: मंगलवार की सुबह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) अपने पहले अमेरिकी राजकीय दौरे के लिए रवाना हुए। अमेरिका में मोदी का लंबा चौड़ा कार्यक्रम तय है। अमेरिका में पीएम अमेरिकी कारोबारियों से मिलेंगे, संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में योग दिवस में भाग लेंगे, भारतीय समुदाय को संबोधित करेंगे, राष्ट्रपति बाइडेन (Joe Biden) के साथ द्विपक्षीय वार्ता करेंगे और अमेरिकी कांग्रेस को संबोधित भी करेंगे। साथ ही अमेरिका की फर्स्ट लेडी जिल बाइडेन के साथ व्हाइट हाउस (White House) में रात्रिभोज करेंगे। प्रधानमंत्री की इस यात्रा की खास बात यह है कि वह दूसरी बार अमेरिकी कांग्रेस की संयुक्त बैठक को संबोधित करने वाले भारत के पहले प्रधानमंत्री होंगे।
पीएम के दौरे से अरबों की सैन्य डील की उम्मीद
प्रधानमंत्री मोदी की इस यात्रा को लेकर अनुमान लगाया जा रहा है कि पीएम मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन (Joe Biden) के बीच कई रक्षा सौदे पर आधिकारिक मुहर लग सकती है। प्राप्त जानकारी के अनुसार, भारत कुल 31 ड्रोन की खरीदी करेगा, जिसमें 15 भारतीय नौसेना के लिए और आठ-आठ ड्रोन सेना और वायु सेना को दिए जाएंगे। इस खरीद की अनुमानित लागत करीब 25000 करोड़ रुपये है। इन ड्रोन को हासिल करने की भारत की योजना अपनी मानवरहित रक्षा क्षमताओं को और मजबूत करना है। उम्मीद जताई जा रही है कि ये ड्रोन भारत को अपनी सीमाओं पर निगरानी क्षमता बढ़ाने और संभावित खतरों पर अधिक प्रभावी निगरानी करने में सक्षम बनाएगा। साथ ही हिन्द-महासागर क्षेत्र में ड्रोन का इस्तेमाल कर चीन के बढ़ते दबदबे पर नजर रखा जा सकेगा।
दोस्ती का नया दौर
पिछले दिनों पीएम मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन की हिरोशिमा में G-7 की बैठक के दौरान मुलाकात हुई थी। दोनों नेता बेहद गर्मजोशी के साथ मिले थे। प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी का यह सातवां अमेरिका दौरा है, लेकिन इस बार मोदी अपनी पहली राजकीय यात्रा के लिए अमेरिका पहुंचे हैं।
अमेरिका रवाना होने से पहले पीएम मोदी ने विश्वास व्यक्त किया कि उनकी अमेरिका की यात्रा से दोनों देशों के बीच संबंध और भी मजबूती मिलेगी। पीएम ने कहा कि मैं अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और प्रथम महिला जिल बाइडेन के आमंत्रण पर अमेरिका की राजकीय यात्रा पर जा रहा हूं। यह विशेष आमंत्रण हमारे लोकतंत्रों के बीच साझेदारी के उमंग और शक्ति को दर्शाता है।
पीएम की इस यात्रा को पिछली तमाम यात्राओं से ज्यादा अहम बताई जा रही है। आजाद भारत के इतिहास में मोदी से पहले सिर्फ दो नेता ऐसे रहे जो अमेरिका के राजकीय दौरे पर गए। जून 1963 में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन और 2009 में पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह अमेरिका के राजकीय यात्रा पर जा चुके हैं। अमेरिका के राजकीय दौरे पर जाने वाले पीएम मोदी तीसरे प्रधानमंत्री हैं।
पीएम के दौरे से क्या रूस नाराज
पीएम मोदी के अमेरिकी राजकीय दौरे से रूस थोड़ा नाराज लग रहा है। रूस के राष्ट्रपति पुतिन की पार्टी के नेता अभय सिंह भारत को अमेरिका से सतर्कता बरतने की सलाह दी है। उन्होंने आगे कहा कि अमेरिका, रूस और भारत के रिश्तों को खराब करने की कोशिश कर रहा है। भारत और रूस के रिश्ते बहुत पुराने और अहम हैं। लिहाजा पीएम मोदी को अमेरिका से सतर्क रहने की जरूरत है।
आइए आगे भारत पर रूस की दोस्ती का कुछ किस्सा बताते हैं
रूस के साथ भारत की नजदीकियां आजादी के ही दौरान से रहीं हैं। भारत की आजादी से पहले भी नेहरू की वैचारिक नजदीकी सोवियत संघ के साथ ही थी। आजादी के बाद भारत और सोवियत संघ की दोस्ती अधिक मजबूत हुई। भारत और रूस की दोस्ती तब और मजबूत हुई, जब 1971 में भारत और पाकिस्तान की जंग हुई। जंग की इस मुश्किल घड़ी में सोवियत संघ भारत के साथ खड़ा था। उस समय अमेरिका ने तो पाकिस्तान का साथ दिया था। 1971 की जंग से कुछ महीने पहले भारत और सोवियत संघ ने भरोसा दिलाया कि युद्ध की स्थिति में वो न सिर्फ राजनयिक तौर पर बल्कि, हथियारों के मोर्चे पर भी भारत का साथ देगा। इतना ही नहीं, 1999 में भारत ने जब परमाणु परीक्षण किया तो अमेरिका ने इसका विरोध किया। अमेरिका ने भारत पर कई तरह के प्रतिबंध भी लगा दिए, लेकिन रूस ने ना तो विरोध किया और न तो कोई प्रतिबंध लगाए।
क्या अमेरिका अच्छा दोस्त नहीं है?
ऐसा नहीं है कि अमेरिका का भारत अच्छा दोस्त नही है। लेकिन पहले भारत को अमेरिका पर भरोसा कर पाना थोड़ा मुश्किल सा होता था। उसकी वजह यह है कि 1947 में जब भारत और पाकिस्तान का बंटवारा हुआ, तो तब से ही अमेरिका की पाकिस्तान से नजदीकियां रहीं हैं।
अमेरिका से भारत की नजदीकियां बढ़नी तब शुरू हुईं, जब 90 के दशक में भारत ने अपना बाजार खोला। इसका नतीजा ये हुआ कि पाकिस्तान को चीन के साथ जाना पड़ा। 2014 में मोदी सरकार में भारत आने के बाद भारत की अमेरिका से दोस्ती पहले से काफी मजबूत हुई है। इसकी एक वजह चीन भी है। पिछले कुछ सालों में भारत और चीन के रिश्ते अच्छे नहीं रहे हैं। 2017 में डोकलाम में भारत और चीन के बीच तनातनी, 2020 में गलवान घाटी में सैनिकों की हिंसक झड़प तो कभी अरुणाचल के तवांग में दोनों देशों के सैनिकों को आपस में भिड़ जाना। भारत और चीन के बीच खटास को दिखाता है।
Also Read: International Yoga Day: आखिर कैसे हुआ योग का जन्म, कौन हैं इसके जनक, जानें इससे जुड़ी पौराणिक कथा
रूस की जगह क्या अमेरिका ले सकता है
अमेरिका पूरी कोशिश में है कि वो कम से कम हथियारों के मामले में ही भारत के लिए रूस की जगह ले सके, लेकिन यह इतना आसान भी नहीं होगा। इसकी भी अपनी वजहें हैं। पहली तो यही कि रूस की तरह अमेरिका अपनी टेक्नोलॉजी का ट्रांसफर नहीं करता है। दूसरी ये कि रूस के मुकाबले अमेरिकी हथियार कहीं ज्यादा महंगे होते हैं। शायद यही वजह है कि जो अमेरिका कभी भारत के लिए हथियारों की दूसरी सबसे बड़ी दुकान हुआ करता था, वो अब तीसरे नंबर पर खिसक गया है। हालांकि, इन सबके बावजूद पीएम मोदी के अमेरिकी दौरे में कई अहम समझौते होने की उम्मीद है। माना जा रहा है कि ये भारत को सुपरपावर बनाने वाली अब तक की सबसे बड़ी डिफेंस डील होगी।
© Copyright 2025 : Haribhoomi All Rights Reserved. Powered by BLINK CMS
-
Home
-
Menu
© Copyright 2025: Haribhoomi All Rights Reserved. Powered by BLINK CMS