Haribhoomi Explainer: 'मुफ्त की रेवड़ी' वाली राजनीति, यहां‌ जानें फ्रीबीज की शुरुआत से लेकर कोर्ट तक का सफर

Haribhoomi Explainer: मुफ्त की रेवड़ी वाली राजनीति, यहां‌ जानें फ्रीबीज की शुरुआत से लेकर कोर्ट तक का सफर
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Haribhoomi Explainer: चुनावी बिगुल बजते ही सबसे पहले अब मुफ्त की रेवड़ी सुनने को खूब मिलने लगती। कोई पार्टी जनता को ये फ्री दे रही तो कोई कुछ और। मुफ्त की चीजें भला किसे नहीं पसन्द होती, इसीलिए जनता खूब वोट देकर उन्हें जीता भी रही हैं। क्या आप जानते हैं कि सबसे पहले मुफ्त की रेवड़ी किसने बांटी, अगर नहीं तो आइए आज के हरिभूमि एक्सप्लेनर में हम आपको बताते हैं मुफ्त की रेवड़ी से जुड़ी खास बातें...

Haribhoomi Explainer: चुनाव आते ही राजनीतिक पार्टियां अपने-अपने वोटरों को लुभाने के लिए बड़े-बड़े वादे और मुफ्त की योजनाओं की बात करने लगती हैं। इसे ही राजनीतिक भाषा में मुफ्त की रेवड़ी या फ्रीबीज कल्चर कहते हैं। वोटरों को भी मुफ्त की रेवड़ी खूब भाती है और वो ज्यादा रेवड़ी बांटने वाली पार्टियों को जमकर वोट करती हैं। क्या आपको पता है कि रेवड़ी या फ्रीबीज कल्चर की शुरुआत कहां से हुई थी, वह कौन सी पहली पार्टी थी जिसने मुफ्त की रेवड़ी बांटी। आइए आज के हरिभूमि एक्सप्लेनर के माध्यम से आपको मुफ्त की रेवड़ी कल्चर की अब तक की पूरी कहानी बताते हैं...

मुफ्त की रेवड़ी की कब हुई शुरुआत

मुफ्त की रेवड़ी या फ्रीबीज कल्चर की शुरुआत भारत में सबसे पहले तमिलनाडु के विधानसभा चुनाव में हुई थी। 1960 के दशक में के कामराज के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने मुफ्त में शिक्षा और मुफ्त भोजन देने का ऐलान किया था। इस चुनाव में कांग्रेस पार्टी की जीत हुई थी।

मुफ्त की रेवड़ी के फायदे

मुफ्त की रेवड़ी बांटने का दांव कोई नया नहीं है। सियासी दल इसे समय-समय पर आजमाते रहते हैं। दक्षिण के राज्यों में तो चुनावी रेबड़ियां बांटे जाने का चलन आम रहा है और अब तो पूरे देश भर में चुनावों के समय मुफ्त की रेवड़ी बांटने का दौर चलने लगा है। अब तो चुनावी रेवड़ी सियासतदलों की रणनीति का हिस्सा बन गई है। वे बेझिझक इसकी वकालत करने लगे हैं। अगर कुछ लोग इसका विरोध करते दिखते हैं, तो वह विरोध भी जुबानी होता है। इसका उनके सियासी आचरण से दूर-दूर तक कोई लेना देना नहीं होता। आम आदमी पार्टी के दिल्ली और पंजाब में मुफ्त की रेवड़ी के ही बलबूते सरकार बना ली है। इसका एक और उदाहरण हाल ही में संपन्न हुए कर्नाटक विधानसभा चुनाव है।

कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के घोषणापत्र में हर घर को 200 यूनिट मुफ्त बिजली, घर की महिला मुखिया को हर महीने 2000 रुपये और गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों को हर महीने दस किलो मुफ्त चावल व साथ ही बेरोजगार युवाओं को 1500 से 3000 रुपये बेरोजगारी भत्ता देने का वादा की थी। और फिर कर्नाटक में कांग्रेस सत्ता में वापसी कर ली।

मुफ्त की रेवड़ी बांटने में बीजेपी भी पीछे नहीं है। कर्नाटक चुनाव के लिए बीजेपी के घोषणापत्र में अनुसूचित जाति और जनजाति के परिवारों को 5 साल के लिए 10000 रुपये की FD करवाने, गरीब परिवारों को साल में तीन गैस सिलेंडर मुफ्त देने, हर दिन आधा लीटर नंदिनी दूध और हर महीने 5 किलो चावल और बाजरा मुफ्त देने का ऐलान किया गया था। लेकिन बीजेपी की रेवड़ी लोगों को खास पसन्द न आई।

मुफ्त की रेवड़ी का मामला पहुंच चुका है कोर्ट

चुनावों में फ्री स्कीम्स यानी रेवड़ी कल्चर का मामला सुप्रीम कोर्ट जा चुका है। मामले की सुनवाई करते हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि यह एक बहुत ही गंभीर मुद्दा है। इसके अलावा सीजेआई ने केंद्र सरकार से स्थिति पर अंकुश लगाने के लिए कदम उठाने को कहा था।

2013 में भी हो चुकी है सुनवाई

2022 से भी पहले भी यह मामला सुप्रीम कोर्ट में जा चुका है। तब सुप्रीम कोर्ट ने मुफ्त की घोषणाओं और वादों को लेकर एक अहम फैसला सुनाया था। इस संबंध में सुब्रमण्यम बालाजी बनाम तमिलनाडु केस खूब चर्चित रहा। साल 2006 का तमिलनाडु विधानसभा चुनाव जीतने के बाद डीएमके ने मुफ्त में कलर टीवी बांटने का वादा किया था। डीएमके सरकार के इसी फैसले को याचिकाकर्ता ने चुनौती दी थी।

इसपर फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राजनीतिक पार्टियों द्वारा कलर टीवी, साइकिल, मुफ्त मकान, बिजली या रोजगार देने के वादों को घूस या भ्रष्टाचार नहीं माना जा सकता है। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में मुफ्त की रेवड़ी को लेकर कई अहम सवाल थे। इनमें एक सवाल यह था कि क्या राजनीतिक दलों के ऐसे वादों को जन प्रतिनिधित्व कानून की धारा-123 के तहत भ्रष्ट कार्यप्रणाली माना जाना चाहिए।

कोर्ट ने अपने फैसले में मुफ्त देने वाले वादों लेकर कहा था कि जन प्रतिनिधित्व कानून उम्मीदवारों के बारे में बात करता है, ना कि राजनीतिक पार्टी के बारे में। साथ ही कोर्ट ने कहा था कि चुनावी घोषणा पत्र किसी राजनीतिक दल की अपनी नीतियों का एक स्टेटमेंट होता है। यह नियम बनाना कोर्ट के दायरे में नहीं है कि कोई राजनीतिक पार्टी चुनावी घोषणापत्र में किस तरह के वादे कर सकती है या नहीं कर सकती है।

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आगामी चुनाव में मुफ्त की रेवड़ी दिलाएगी खूब वोट

देश में आगामी चुनावों में मुफ्त की रेवड़ी बांट कर सभी दल सत्ता में आने की भरपूर कोशिश करेंगे। साल 2024 में मध्य प्रदेश और राजस्थान विधानसभा चुनाव समेत पूरे देश में आम चुनाव होने हैं। ऐसे में मुफ्त की रेवड़ी तो खूब बटेगी। इसकी शुरुआत अभी से ही हो गई है। इसका कारण यह है कि हर किसी को मुफ्त की चीजें खूब पसन्द आती हैं। देखना यह दिलचस्प होगा कि सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग मुफ्त की रेवड़ी पर रोक लगा पाते हैं या नहीं। अभी तक तो इसपर रोक लगाना सम्भव नहीं हो पाया है। मुफ्त की रेवड़ी सबसे ज्यादा राज्य और देश की आर्थिक स्थित पर चोट करती है। इस पर लगाम लगाने की बहुत ज्यादा जरूरत है। अन्यथा राज्य की सत्ता में आने के लिए पार्टियां राज्य को कर्ज में डूबा देंगी। तभी तो मुफ्त की रेवड़ी पर किसी शायर ने क्या खूब कहा है- गरीब की थाली में पुलाव आ गया है...लगता है शहर में चुनाव आ गया।

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