Haribhoomi Explainer: 51 साल पहले इंदिरा और भुट्टो के बीच हुआ था शिमला समझौता, पढ़िये कहां हुई थी चूक

Haribhoomi Explainer: भारत के इतिहास में 1971 का साल ऐतिहासिक रहा है। इसी साल भारत-पाकिस्तान (India-Pakistan) के बीच युद्ध हुआ था। इस युद्ध में भारत ने पाक सैनिकों को घुटने टेकने के लिए विवश कर दिया था। पाकिस्तान (Pakistan) की ऐसी करारी हार हुई थी, जिसे वह कभी भुला नहीं पाएगा। भारतीय सेना (Indian Army) ने पाकिस्तान को न केवल युद्ध में धूल चटाई, बल्कि पाकिस्तान के दो टुकड़े कर दिए थे। तब पूर्वी पाकिस्तान कहा जाने वाला हिस्सा, बांग्लादेश (Bangladesh) नाम से एक अलग देश के रूप में अस्तित्व में आया। इस युद्ध के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच शिमला (Shimla) में एक समझौता हुआ था, जिसे शिमला समझौता (Shimla Agreement) के नाम से जाना जाता है। आइए आज के हरिभूमि एक्सप्लेनर के माध्यम से शिमला समझौता और इसके पीछे की कहानी जानते हैं।
पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) के मुद्दों को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद आए दिन होता रहता था। इसी विवाद के कारण साल 1971 के दिसंबर में पाकिस्तान ने भारत पर हमला बोल दिया। पाकिस्तान चाहता था कि भारत के टुकड़े कर सके। पाकिस्तान के इस हमले का भारत ने भी मुंहतोड़ जवाब दिया। नतीजा यह हुआ कि भारत को टुकड़े में बांटने की साजिश रचने वाला पाकिस्तान ही दो हिस्सों में बंट गया। पाकिस्तान से टूटे हिस्से को बांग्लादेश का नाम दिया गया। इस युद्ध में पाकिस्तान के 90 हजार से ज्यादा सैनिकों ने सरेंडर कर दिया। इस जीत से भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी दुनिया में एक ताकतवर नेता के रूप में उभरी थीं।
क्या है शिमला समझौता
साल 1972 में हिमाचल प्रदेश के शिमला में भारत और पाकिस्तान के बीच 28 जून से शांति को लेकर वार्ता शुरू हुई। एक जुलाई तक कई दौर की वार्ता चलती रही। इस वार्ता का उद्देश्य कश्मीर से जुड़े विवादों को आपसी बातचीत और शांतिपूर्ण ढंग से हल निकालना था। दोनों देशों के बीच संबंध अच्छे रहे, इसके लिए भी कई कदम उठाए जाने को लेकर दोनों देश राजी हुए थे। 2-3 जुलाई 1972 को दोनों देशों के बीच समझौता हुआ। इसे ही शिमला समझौता के नाम से जाना जाता है। इस समझौते में पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो अपनी बेटी बेनजीर भुट्टो के साथ शिमला आए थे।
बांग्लादेश के आजाद होने के छह महीने बाद, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो ने 2 जुलाई, 1972 को शिमला में एक समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए मुलाकात की, जिसने उनके विवादों के पारस्परिक समाधान के लिए एक रूपरेखा प्रदान की। इस समझौते के तहत भारत पाकिस्तान से पकड़े गए 90,000 युद्धबंदियों को वापस करने पर सहमत हुआ। बदले में, भुट्टो ने इंदिरा गांधी को मौखिक आश्वासन दिया कि उनके सैनिक घर लौटेंगे और कश्मीर को अंतरराष्ट्रीय सीमा में विभाजित करने वाली नियंत्रण रेखा को स्थायी बनाएंगे।
इस पर कुछ विशेषज्ञों का मानना था कि इंदिरा गांधी को भुट्टो के मौखिक आश्वासनों पर भरोसा नहीं करना चाहिए था और कुछ लाभ उठाना चाहिए था। उनका कहना था कि अगर उन्होंने नियंत्रण रेखा को अंतरराष्ट्रीय सीमा में तब्दील करने के लिए भुट्टो को बिंदीदार रेखा पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया होता, तो भारत-पाकिस्तान संबंधों का पेचीदा इतिहास बहुत अलग हो सकता था।
समझौते की मुख्य बातें
1. दोनों देश सभी विवादों और समस्याओं के शांतिपूर्ण समाधान के लिए सीधी बातचीत करेंगे और इसमें कोई मध्यस्थ या तीसरा पक्ष नहीं होगा।
2. परिवहन की सुविधाएं स्थापित की जाएंगी ताकि दोनों देशों के लोग आगे आ जा सकें।
3. जहां तक संभव होगा व्यापारिक एवं आर्थिक सहयोग शीघ्र बहाल किया जाएगा।
4. 1971 के युद्ध के दौरान भारत द्वारा कब्जाए गए पाकिस्तानी क्षेत्रों को वापस किया जाएगा।
5. दोनों देश विज्ञान और संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए मिलकर काम करेंगे।
6. वे हमेशा एक-दूसरे की राष्ट्रीय एकता, क्षेत्रीय अखंडता, राजनीतिक स्वतंत्रता और संप्रभु समानता का सम्मान करेंगे
समझौते का महत्व
दोनों देशों ने शिमला समझौते के तहत मुद्दों को शांतिपूर्ण ढंग से हल करने के लिए प्रत्यक्ष द्विपक्षीय दृष्टिकोण अपनाने की प्रतिबद्धता जताई। समझौते में लोगों से लोगों के बीच संपर्क के महत्व पर जोर दिया गया, जिसका उद्देश्य सहकारी संबंधों की नींव तैयार करना था। समझौते के अनुसार, भारत और पाकिस्तान दोनों को शांति बनाए रखने में मदद के लिए जम्मू और कश्मीर में नियंत्रण रेखा का उल्लंघन न करने के उपाय करने थे।
शिमला समझौते में मार्गदर्शक सिद्धांतों का एक सेट शामिल था, जिसे दोनों देश एक-दूसरे के साथ संबंधों का प्रबंधन करते समय पालन करने पर सहमत हुए। समझौते में एक-दूसरे की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता के लिए सम्मान, दूसरे देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना, दोनों देशों की एकता के लिए सम्मान, राजनीतिक स्वतंत्रता, संप्रभु समानता और सभी शत्रुतापूर्ण प्रचार को त्यागने पर जोर दिया गया।
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पाकिस्तान ने नहीं माना समझौता
पाकिस्तान ने शिमला समझौते का कई बार तोड़ा है। उसने समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद भी कभी नहीं समझौते को माना। पाकिस्तान हमेशा से कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाता आया है। साथ ही लगातार सीमा पर सीजफायर का उल्लंघन करता रहा है। जिस पाकिस्तान ने कभी भी बल प्रयोग नहीं करने की बात कही थी, उसने 1999 में कारगिल में घुसपैठ की और भारतीय इलाके पर कब्जा कर लिया। पाकिस्ताान ने भारत पर कारगिल युद्ध थोप दिया। भारत को अपना क्षेत्र दोबारा से पाने के लिए युद्ध लड़ना पड़ा। यह युद्ध दो महीने से ज्यादा समय तक चला और 500 से अधिक जवान शहीद हुए। हालांकि हर बार की तरह पाकिस्तान को फिर से मुंह की खानी पड़ी थी।
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