Haribhoomi Explainer: अफ्रीकी देशों ने भारत को दे दिए बीमार चीते, क्या खतरे में है 'प्रोजेक्ट चीता'

Haribhoomi Explainer: अफ्रीकी देशों ने भारत को दे दिए बीमार चीते, क्या खतरे में है प्रोजेक्ट चीता
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Haribhoomi Explainer: 'प्रोजेक्ट चीता' के तहत अफ्रीका से भारत लाए गए 20 में से 6 चीतों की मौत हो चुकी है। अब इसके बाद विलुप्त चीतों को भारत में एक बार फिर से बसाने का यह प्रयास विफल होता नजर आ रहा है। आइये आज के हरिभूमि एक्सप्लेनर में आपको बताते हैं कि आखिर क्यों कूनो राष्ट्रीय उद्यान में रखे गए अफ्रीकी चीतों की मौत हो रही है। वन्यजीव चिकित्सा विशेषज्ञों का इस पूरे मामले क्या कहना है, सभी पहलुओं पर विस्तार से चर्चा आगे...

Haribhoomi Explainer: भारत में करीब 70 साल पहले चीते को विलुप्त घोषित कर दिया गया था। कहा जाता है कि साल 1947 में सरगुजा के राजा रामानुज प्रताप सिंह देव ने भारत में बचे आखिरी तीन चीतों का शिकार किया था। अब केंद्र सरकार देश में चीतों को पुनर्जीवित करने के लिए लगातार काम कर रही है। पीएम नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट 'प्रोजेक्ट चीता' के तहत बीते साल अफ्रीका से 20 चीतों को मध्य प्रदेश स्थित कूनो राष्ट्रीय उद्यान में लाया गया था। चीतों की पहली खेप में 17 सितंबर 2022 को से आठ चीते लाए गए और फिर दक्षिण अफ्रीका से 12 चीते भारत पहुंचे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन चीतों को अपने जन्मदिन के मौके पर उद्यान में छोड़ा था। कूनो में छोड़े गए चीतों में से एक मादा चीता का नाम ज्वाला था, जिसने 4 बच्चों को जन्म दिया था। इस तरह कूनो राष्ट्रीय उद्यान में कुल चीतों की संख्या 24 पहुंच गई थी।

इस बीच सरकार का देश में चीतों को पुनर्वास करने का यह प्रोजेक्ट विफल होता सा नजर आ रहा है। दरअसल, नामीबियाई से लाई गई ज्वाला चीता के 4 में से 3 शावकों की मौत बीते एक हफ्ते के भीतर ही हो गई है। इसमें से एक शावक की मौत 23 मई और दो की 25 मई को हुई, जबकि एक बीमार है। इन शावकों के अलावा भी 3 बड़े चीतों की मौत बीते कुछ समय में हुई है। नामीबियाई चीता शासा की किडनी से रिलेटेड परेशानी के चलते 27 मार्च को मौत हो गई, वहीं एक और चीता उदय 23 अप्रैल को मर गया। इसके अलावा दक्षिण अफ्रीका की मादा चीता दक्षा ने भी इस दुनिया को अलविदा कह दिया। इन तमाम मौतों के बाद अब कूनो नेशनल पार्क में मात्र 18 चीते रह गए हैं। इनमें सात नामीबियाई, दस दक्षिण अफ्रीकी और एक शावक भी हैं। कूनो में बीते कुछ समय से एक के बाद एक चीता की मौत होने से सवाल खड़ा होने लगा है कि क्या यह उद्यान चीतों के लिए सही नहीं है या फिर अफ्रीकी देशों ने भारत के साथ धोखा किया है।

आखिर भारत में क्यों हो रही अफ्रीकी चीतों की मौत

चीतों के लिए काफी छोटा कूनो राष्ट्रीय उद्यान

अधिकतर विशेषज्ञों का मानना है कि कूनो राष्ट्रीय उद्यान चीतों के लिए छोटा है। अफ्रीकी और नामीबियाई चीतों को यहां के पारिस्थितियों में ढलने के लिए काफी ज्यादा संघर्ष करना पड़ रहा है। चीते शिकार भी नहीं कर पा रहे हैं। नामीबिया स्थित लीबनिज आईजेडडब्ल्यू के चीता रिसर्च प्रोजेक्ट के वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं का कहना है कि कूरो नेशनल पार्क का इलाका बड़े जानवरों के लिए बहुत छोटा है। सबसे जरूरी समझने वाली बात यह है कि अफ्रीका में प्रति 100 वर्ग किलोमीटर में एक चीता रहता है। इस हिसाब से कूनो नेशनल पार्क का इलाका काफी कम है। वहीं इस उद्यान के 44 में से 17 किलोमीटर में फेंसिंग की भी सुविधा नहीं है। 1.15 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल है।

वन्यजीव चिकित्सा विशेषज्ञों की राय

चीतों की मौत को लेकर चिंता व्यक्त करते हुए दक्षिण अफ्रीका वाइल्डलाइफ स्पेशलिस्ट विंसेट वान डेर मर्व ने कहा कि अब तक बिना बाड़ वाले अभयारण्य में चीतों को पुनर्वास करने का प्रोजेक्ट कभी भी सफल नहीं हुआ है। ऐसे में भारत को चीतों के इलाकों में बाड़ लगानी चाहिए। वान डेर मर्व ने बताया कि साउथ अफ्रीका में ऐसे 15 प्रयास हो चुके हैं, जिनमें से कोई भी सफल नहीं हुआ। उनका कहना है कि 'सोर्स रिजर्व' स्थापित होने चाहिए। ये ऐसे निवास क्षेत्र हैं, जहां उपयुक्त आवास और अनुकूल पर्यावरणीय परिस्थितियां होती हैं। साथ ही उन्होंने आशंका जताई है कि आने वाले दिनों में जब चीते कूनो राष्ट्रीय उद्यान में अपना क्षेत्र स्थापित करने का प्रयास करेंगे, तो उनका तेंदुओं और बाघों से सामना होगा और बहुत संभावना है कि इस दौरान कुछ की मौत भी हो जाए।

क्या भारत में दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया से बीमार चीते आए

चीतों की मौत को लेकर संबंधित अधिकारियों का कहना है कि नामीबिया ने भारत को असल सच्चाई नहीं बताई थी। उनके मुताबिक, भारत आने से पहले ही नामीबियाई चीते बीमार थे, लेकिन इसकी जानकारी नामीबिया ने भारत को नहीं दी थी। अब इस पूरे मामले में जांच की जा रही है। अधिकारियों का कहना है कि मादा चीता साशा को किडनी की बीमारी थी। साउथ अफ्रीका के वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट एड्रियन टॉर्डिफ बताते हैं कि लंबे समय तक कैद में रहने से नामीबिया या दक्षिण अफ्रीका के चीतों में इस तरह की बीमारी हो सकती है। उन्होंने बताया कि भोजन के कारण चीतों को समस्या आती है। चीता कंजर्वेशन फंड (CCF) लॉरी मार्कर ने साशा की मौत को लेकर कहा कि हम जानते थे कि साशा ज्यादा दिनों तक जीवित नहीं रह पाएगी। उनका कहना है कि इन बिल्लियों और चीतों में सामान्य तौर पर ही फेलियर की समस्या होती है। वन विभाग की ओर से जानकारी देते हुए बताया गया कि नामीबिया से भारत लाई मादा चीता साशा का ब्लड टेस्ट करने पर पाया गया कि उनका क्रियेटिनिन स्तर 400 से ज्यादा है। ऐसे में स्पष्ट हो जाता है कि साशा को भारत लाने से पहले ही किडनी की बिमारी थी। मेडिकल स्टाफ का कहना है कि अब देखना होगा अन्य चीतों में साशा जैसी बिमारी तो नहीं है।

कम बचते हैं चीते के बच्चे

मादा चीता ज्वाला के 4 में से 3 बच्चों की मौत हो चुकी है। 90 के दशक में अफ्रीका में एक रिसर्च में पता चला कि 100 में से केवल 5 ही चीते के बच्चे बड़े होने तक बच पाते हैं। चीतों के बच्चों के बचने की संभावना काफी कम हो जाती है। खास बात यह है कि मादा चीता अकेले ही रहती है। उसे अपने बच्चों को पालने के लिए अकेले ही रहना पड़ता है। साथ ही यह पहली बार है जब एक मांसाहारी जीव को एक महाद्वीप से दूसरे में लाया गया है, जो काफी चुनौतीपूर्ण होता है। जंगली चीतों को इंसानों की नजदीकी और पिंजड़ों में कैद करने से तनावा आ जाता है।

चीतों का सही से नहीं हो रहा प्रबंधन

वाइल्डलाइफ एक्टिविस्ट अजय बताते हैं कि चीतों की मौत के लिए एमपी कूनो राष्ट्रीय उद्यान का वाइल्डलाइफ मैनेजमेंट है। उनका कहना है कि वहां का प्रशासन इसके लिए ट्रेंड नहीं है। चीता प्रोजेक्ट के तहत प्रबंधन के लिए किए गए वादे सही साबित नहीं हो रहे। हालात इतने खराब है कि भोपाल के चिकित्सक प्रबंधन कर रहे हैं। उनका स्पष्ट तौर पर कहना है कि चीतों का सही से प्रबंधन नहीं हो पा रहा है।

अदालत का पक्ष

कूनो नेशनल पार्क में चीतों की हो रही मौतों पर सुप्रीम कोर्ट ने तक चिंता जताई है। कोर्ट का कहना है कि अगर यहां चीते सुरक्षित नहीं हैं, तो उनको अन्य पार्क या सेंचुरी में शिफ्ट करने पर विचार करना चाहिए। बता दें कि इस प्रोजेक्ट के शुरुआत में एमपी का कूनो नेशनल पार्क, नौरादेही वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी और राजस्थान का शाहगढ़ को चीतों को बसाने के लिए फाइनल किया गया था। हालांकि, तत्काल हालातों को देखते हुए चीता प्रोजेक्ट की समीक्षा टीम नौरादेही समेत कुछ इलाकों को तैयार करने में जुटी हुई है।

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