Haribhoomi Explainer: कर्नाटक सीएम की दौड़ में सिद्धारमैया जीते, जानिए कौन सा पत्ता डीके पर पड़ा भारी

Haribhoomi Explainer: कर्नाटक के मुख्यमंत्री पद की दौड़ में सिद्धारमैया जीत चुके हैं। वहीं सीएम पद के प्रबल दावेदार डीके शिवकुमार को डिप्टी सीएम पद से संतोष करना पड़ा है। खास बात है कि डीके शिवकुमार ने दावा किया था कि अगर उन्हें सीएम पद मिलता है तो वे आगामी लोकसभा चुनाव में भी 20 से 25 सीटें दिला सकते हैं। बावजूद इसके कांग्रेस हाईकमान के लिए सिद्धारमैया को अनदेखा करना आसान नहीं था। यही कारण रहा कि आखिरकार सीएम पद पर सिद्धारमैया के नाम का ऐलान हो गया। अब सवाल उठता है कि सिद्धारमैया के पास ऐसा कौन सा पत्ता था, जिसने सियासी शतरंज की बिसात ही बदल दी। हरिभूमि एक्सप्लेनर में हम आपको बताएंगे कि सिद्धारमैया किस तरह डीके शिवकुमार पर भारी पड़े। साथ ही, सिद्धारमैया के जीवन और राजनीति करियर पर भी प्रकाश डालेंगे।
जीवनी
कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री और 2013 से पद संभाला था। पेशे से एक वकील, प्रोफेसर नानजुंडा स्वामी के समाजवादी युवजाना सभा में अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की। उन्होंने 1978 तक जूनियर वकील के रूप में काम किया। वह कर्नाटक विधानसभा में विभिन्न पदों पर रहे। वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक महत्वपूर्ण राजनीतिक व्यक्ति हैं। इससे पहले उन्होंने जेडीएस के लिए नेता के रूप में कार्य किया और दो मौकों पर राज्य के लिए उपमुख्यमंत्री बने।
सिद्धारमैया का जन्म 12 अगस्त 1948 (उम्र ) मैसूर
पार्टी का नाम- Indian National Congress
पिता का नाम- सिद्धाराम गौड़ा
माता का नाम- बोरामा गौड़ा
पत्नी का नाम- पार्वती सिद्धरमैया
पत्नी का व्यवसाय- गृहिणी
पुत्र- यतींद्र सिद्धारमैया, राकेश सिद्धारमैया (निधन)
शिक्षा- स्नातक मैसूर विश्वविद्यालय से विज्ञान में स्नातक की डिग्री ली और बाद में यहीं से कानून की डिग्री हासिल की।
मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के बारे में जरूरी बातें-
• 2023 के चुनावों के दौरान, अनुभवी नेता ने दावा किया था कि यह उनका आखिरी मतदान होगा। उन्होंने बार-बार कहा था, 'मैं चुनावी राजनीति से संन्यास ले लूंगा।
• सिद्धारमैया कुरुबा समुदाय से आते हैं, जो कर्नाटक की तीसरी सबसे बड़ी जाति है और इससे पहले अहिन्दा (अल्पसंख्यकों, पिछड़े वर्गों और दलितों के लिए कन्नड़ संक्षिप्त नाम) सम्मेलनों का नेतृत्व कर चुके हैं।
• वह नौ बार के विधायक हैं, जिन्होंने पिछले सप्ताह 46,163 मतों के अंतर से वरुणा निर्वाचन क्षेत्र जीता था।
• सिद्धारमैया ने कर्नाटक विधानसभा में पांच बार मैसूर में चामुंडेश्वरी निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया -1983 में निर्दलीय के रूप में, 1985 में जनता पार्टी के टिकट पर,1994 और 2004 में जनता दल के लिए, और 2006 में कांग्रेस के लिए 257 मतों के कम अंतर से।
जनता दल को छोड़कर कांग्रेस पार्टी में हुए शामिल
सिद्धारमैया एचडी देवेगौड़ा के जनता दल (सेक मेयेसी) गुट में शामिल हो गए। इस बीच, उन्होंने दो बार राज्य के उपमुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया। दिलचस्प बात यह है कि एच डी देवेगौड़ा के साथ मतभेदों के बाद, 2005-06 में सिद्धारमैया को निकाले जाने के बाद सिद्धारमैया कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए। वर्तमान में वह समन्वय समिति के अध्यक्ष हैं, जो कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन सरकार का समन्वय करती है।
रोचक बातें
सिद्धारमैया के माता-पिता चाहते थे कि वह डॉक्टर बने लेकिन उन्होंने वकील बनने का फैसला किया। सिद्धारमैया की इच्छा कर्नाटक को भूख मुक्त देखना है। इसी कारण से उन्होंने इंदिरा कैंटीन बनवाई। सरकार के गठन के बाद उन्होंने गरीबों को चावल मुहैया कराया। 2018 में उन्होंने अपना 13वां राज्य बजट प्रस्तुत किया, एक रिकॉर्ड स्थापित किया। 2010 में सिद्धारमैया ने बेंगलुरु को रेड्डी ब्रदर्स के खिलाफ 320 किमी पद्ययत (बल्लेरी चालो) में बैलेरी की यात्रा की। कर्नाटक की राजनीति में यह प्रमुख घटना है। बल्लेरी चलो अवैध खनन और भ्रष्टाचार पर सत्तारूढ़ बीजेपी को टारगेट किया गया।
पूर्व इतिहास और उपलब्धियां
1968 के आसपास सिद्धारामैया को मैसूर में एक प्रसिद्ध वरिष्ठ वकील चिक्कोबोरायाह के तहत जूनियर वकील नियुक्त किया गया था। बाद में सिद्धारमैया ने लॉ कॉलेज में कानून भी पढ़ाया। डी देवराज उर्स के बाद, सिद्धारमैया कर्नाटक के मुख्यमंत्री के रूप में पूर्ण 5 साल की अवधि पूरी कर चुके थे।
बल्लेरी चालो यात्रा 2010
कर्नाटक विधानसभा में विपक्ष के नेता डी सिद्धारमैया ने नेलमंगला और तुमकुर की ओर यात्रा का नेतृत्व किया था। पदयात्रा को हल्के में लेने वाले बीजेपी मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा पर निशाना साधते हुए सिद्धारमैया ने कहा, कांग्रेस का 125 साल का इतिहास है। इसने देश में कई आंदोलन किए हैं। कांग्रेस को इससे सबक सीखने की जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा कि अवैध खनन के मुद्दे पर लोगों का ध्यान भटकाने के लिए येदियुरप्पा दिल्ली में डेरा डाले हुए हैं, जिसकी सीबीआई जांच पर कांग्रेस जोर दे रही है।
राजनीतिक करियर का घटनाक्रम
2018 वरुण निर्वाचन क्षेत्र से जीता और विधायक बन गए। वर्तमान में वह समन्वय समिति के अध्यक्ष हैं, जो कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन सरकार का समन्वय करते हैं।
2013 सिद्धारमैया ने कर्नाटक के 22 वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। उन्होंने इस पद पर 2018 की सेवा की थी। वह राज्य के पहले मुख्यमंत्री थे।
2008 उन्हें वरुण निर्वाचन क्षेत्र से कर्नाटक विधानसभा के सदस्य के रूप में निर्वाचित किया गया था।
2006 के दिसंबर में आयोजित चामुंडेश्वरी उपचुनाव जीते। उन्होंने जेडी (एस) के एम शिवबास्पा को केवल 257 वोटों से पराजित किया।
2005 जेडीएस से निष्कासित होने के बाद वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए। 2004 फिर उन्होंने कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली।
1999 सिद्धारमैया विधानसभा चुनाव हार गए।
1996 वह पूर्व मुख्यमंत्री जे एच पटेल के शासनकाल में कर्नाटक राज्य के उपमुख्यमंत्री बने।
1994 वह कर्नाटक विधान सभा के सदस्य के रूप में चुने गए थे। उन्हें वित्त मंत्री नियुक्त किया गया था।
1992 उन्हें जनता दल के सचिव नियुक्त किया गया था।
1989 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस नेता एम राजशेखर मूर्ति द्वारा हार मिली।
1985 सिद्धारमैया ने मध्य-अवधि के चुनाव लड़े और उसी निर्वाचन क्षेत्र से फिर से निर्वाचित हुए। वह पशुपालन और पशु चिकित्सा सेवाओं के मंत्री बने। 1983 सिद्धारमैया को चामुंडेश्वरी निर्वाचन क्षेत्र से कर्नाटक विधान सभा के सदस्य के रूप में निर्वाचित किया गया था। उन्होंने भारतीय लोक दल के टिकट पर चुनाव लड़ा।
1978 सिद्धारमैया मैसूर के एक वकील नानजुंडा स्वामी के संपर्क में आए थे। उन्होंने चुनाव लड़ने का आग्रह किया। बाद में वह मैसूर तालुका के लिए चुने गए।
1977 के बाद अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा किया था।
कई बार कहा, 'चुनावी राजनीति से लूंगा संन्यास'
2013: कर्नाटक के उम्मीदवारों के रूप में जाने के बाद सिद्धारमैया ने पहली बार घोषणा की थी कि मैं जल्द चुनावी राजनीति से संन्यास ले लूंगा। इसके बाद भी वे राजनीति से जुड़े रहे। उन्होंने 2018 में भी उन्होंने फिर से राजनीति से संन्यास लेने की बात कही थी।
2018: इस साल के विधानसभा चुनावों के दौरान उन्होंने दो अलग-अलग सीटों यानी बादामी और चामुंडेश्वरी सीट से चुनाव लड़ा था। दरअसल, 2018 की विधानसभा चुनावों के दौरान भी सिद्धारमैया ने ऐसी ही घोषणा की थी कि वे 2023 के राज्य का चुनाव नहीं लड़ेंगे। बावजूद इसके वो राजनीति में सक्रिय रहे।
2023: वरुणा से चुनाव लड़ने की घोषणा करते हुए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सिद्धारमैया ने घोषणा की कि आगामी 10 मई को होने वाला कर्नाटक चुनाव उनकी आखिरी चुनावी लड़ाई होगी। बतौर सिद्धारमैया ने कहा, “मैं वरुणा विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ रहा हूं क्योंकि मेरे माता-पिता गांव इस निर्वाचन क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं। यह मेरा आखिरी चुनाव होगा। मैं चुनावी राजनीति से संन्यास ले लूंगा। हालांकि जिस तरह कांग्रेस ने सिद्धारमैया को सीएम बनाया है, निश्चित है कि उनके लिए जल्द राजनीति से संन्यास लेना आसान नहीं होगा।
यह बात डीके शिवकुमार पर पड़ी भारी
बता दें कि डीके शिवकुमार ने कहा था कि आगामी लोकसभा चुनाव में वे कांग्रेस को 20 से 25 सीटें जीता सकते हैं। बावजूद इसके कांग्रेस हाईकमान ने सिद्धारमैया पर ही भरोसा जताया कि उनके रहने से लोकसभा चुनाव में भी बड़ा फायदा मिलेगा। दरअसल, डीके शिवकुमार की तुलना में सिद्धारमैया का अनुभव काफी लंबा है। वे राजनीति के हर दांवपेंच से भी अच्छे से वाकिफ है। यही नहीं, आलोचकों का कहना है कि डीके शिवकुमार युवा हैं, जबकि सिद्धारमैया की उम्र 75 के आसपास है। लेकिन आज भी उनकी ऊर्जा दर्शाती है कि राजनीतिक दृष्टि से वे लंबी पारी खेलने के लिए पूरी तरह फिट नजर आते हैं।
Tags
© Copyright 2025 : Haribhoomi All Rights Reserved. Powered by BLINK CMS
-
Home
-
Menu
© Copyright 2025: Haribhoomi All Rights Reserved. Powered by BLINK CMS