Haribhoomi Explainer: क्या है ऑपरेशन Blue Star? भिंडरावाले की मौत से लेकर इंदिरा गांधी की हत्या की पूरी कहानी

Haribhoomi Explainer: इतिहास का हर दिन किसी न किसी घटना से जुड़ा हुआ होता है। आज का दिन भी काफी खास है। आज की तारीख यानी कि 6 जून भी देश के इतिहास से जुड़ा हुआ है। 6 जून 1984 को अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में ऑपरेशन ब्लू स्टार चलाया गया था, जिसमें 83 सैनिक मारे गए थे और 248 सैनिल घायल हुए थे। आइए, हरिभूमि एक्सप्लेनर के माध्यम से जानते हैं, क्या है ऑपरेशन ब्लू स्टार, भिंडरावाले वाले कौन था और इंदिरा सरकार को क्यों करना पड़ा था ब्लू स्टार ऑपरेशन।
1977 के लोकसभा चुनाव में मिली हार के साथ पंजाब में भी इंदिरा गांधी को जबर्दस्त हार का सामना करना पड़ा था। पंजाब में प्रकाश सिंह बादल के नेतृत्व वाली शिरोमणी अकाली दल की सरकार सत्ता में आई। इस हार से उभरने के लिए कांग्रेस ने एक ऐसे शख्स का सहारा लिया, जिसने 7 साल के भीतर पंजाब सहित पूरे देश में उथल-पुथल मचा दी। भारत के इतिहास में ऑपरेशन ब्लू स्टार एक ऐसी घटना, जिसे इंदिरा गांधी की मौत की पटकथा कहा जाता है। ऐसा मानते हैं कि इंदिरा गांधी ने अपनी मौत की पटकथा खुद लिखी थी। आज इस घटना के 39 साल पूरे हो गए हैं। बता दें कि ऑपरेशन ब्लू स्टार जरनैल सिंह भिंडरावाले को गिरफ्तार करने के लिए हुआ था, लेकिन इस ऑपरेशन मे भिंडरावाला की मौत हो गई थी। आइए जानते हैं कि कौन है भिंडरावाला और इंदिरा गांधी को ऑपरेशन ब्लू स्टार का निर्णय क्यों लेना पड़ा था।
कौन था जरनैल सिंह भिंडरावाले
भिंडरावाले का जन्म पंजाब के मोगा जिले के रोड गांव में एक जाट सिख परिवार में हुआ था। उसके पिता बाबा जोगिंदर सिंह किसान थे। भिंडरावाले काफी कम उम्र में सिख संगठन दमदमी टकसाल में शामिल हो गया था। 1977 में वह इस संगठन का मुखिया बन गया। भिंडरावाला की शादी हुई और उसके दो बेटे हुए, लेकिन सिख धर्म की सेवा करने के नाम पर वह घर छोड़कर निकल गया था। दमदमी टकसाल के साथ रहते हुए भिंडरावाले ने सिख धर्म की शिक्षाओं और इसके इतिहास का अध्ययन किया। भिंडरावाले शुरू में लोगों से कहा करता था कि अमृतधारी सिख बनो, सिख धर्म की शिक्षाओं का पालन करो, गुरुबानी का पाठ करो और नशा छोड़ो। भिंडरावाले ने उस दौर में सामाजिक बुराइयों के खिलाफ आवाज उठाई। इस रुख ने उसे लोकप्रिय बना दिया।
कहा जाता है कि भिंडरावाले को कांग्रेस ने ही तैयार किया था, क्योंकि ज्ञानी जैल सिंह और संजय गांधी पंजाब में शिरोमणि अकाली दल के मुकाबले एक बड़ा सिख नेता खड़ा करने के बारे में सोच रहे थे। हालांकि, यह उस दौर की बात है, जब केंद्र में जनता पार्टी का शासन था और आपातकाल की आंच में तपी कांग्रेस अपना वजूद बचाने के लिए संघर्ष कर रही थी। अप्रैल 1978 में अमृतसर में निरंकारियों का एक बड़ा सम्मेलन हुआ। उधर सम्मेलन हो रहा था, इधर स्वर्ण मंदिर के पास भिंडरावाले की सभा हुई। उसकी बातें सुनकर सैकड़ों लोगों ने निरंकारी सम्मेलन पर धावा बोल दिया। मार-काट मची, पुलिस ने फायरिंग की और करीब एक दर्जन लोगों की जान चली गई। उस घटना ने भिंडरावाले का नाम पंजाब के कोने-कोने में पहुंचा दिया था। पंजाब में तब अकाली दल की सरकार थी और भिंडरावाले के मन में यह बैठ गया कि अकाली दल सिखों का समर्थक नहीं है। वह निरंकारियों और हिंदुओं का समर्थन जुटाना चाहता है। बताया जाता है कि कांग्रेस ने भिंडरावाले की इस सोच के राजनीतिक इस्तेमाल का मन बनाया, क्योंकि उसे लगा कि उसके जरिए अकाली दल को कमजोर कर सकते हैं।
इसके बाद मार्च 1979 में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के चुनाव हुए। कांग्रेस एसजीपीसी में अकालियों का दबदबा खत्म करना चाहती थी। वहीं, भिंडरावाले भी एसजीपीसी पर कंट्रोल चाहता था, ताकि उसके जरिए वह लोगों को सिख धर्म की ओर ले आए। भिंडरावाले के साथ बब्बर खालसा और पंथ खालसा जैसे संगठन भी जुड़ गए, जिनका मकसद खालिस्तान देश बनाना था। हालांकि चुनाव में अकाली दल को एकतरफा जीत हासिल हुई थी।
ऑपरेशन ब्लू स्टार क्या है
बता दें कि भिंडरावाले ने 1982 में अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर को अपना ठिकाना बना लिया था। कुछ महीनों बाद भिंडरावाले ने सिख धर्म की सर्वोच्च संस्था अकाल तख्त से अपना विचार रखना शुरू कर दिया। इसके विचारों में सिखों के लिए एक अलग देश की मांग भी शामिल था, जिसे खालिस्तान नाम दिया था। इसका कहना था कि सिख समुदाय के लोग भारत में सुरक्षित नहीं हैं। इसलिए सिखों के लिए एक अलग देश होना चाहिए। इस मांग को लेकर ये पंजाब में बढ़ती हिंसक घटनाओं को रोकने के लिए भिंडरावाले को पकड़ना बहुत जरूरी हो गया था। इसलिए इंदिरा गांधी की सरकार ने ऑपरेशन ब्लू स्टार शुरू किया। इस ऑपरेशन के सैन्य कमांडर मेजर जनरल केएस बराड़ का कहना था कि कुछ ही दिनों में खालिस्तान की घोषणा होने जा रही थी, जिसे रोकने के लिए इस ऑपरेशन को जल्द से जल्द अंजाम देना जरूरी था।
1 जून 1984 को ही स्वर्ण मन्दिर के आस-पास फोर्स एकत्रित होने लगी थी। 3 जून को पंजाब में कर्फ्यू लगा दिया गया और अगली सुबह से ही गोलाबारी शुरू हो गई। दो दिनों तक भीषण खून-खराबा के बाद 6 जून को आर्मी की फोर्स ने स्वर्ण मंदिर के अंदर घुसकर भिंडरावाले को मार गिराया। केंन्द्र सरकार की स्वर्ण मंदिर पर की गई इस कार्रवाई से सिख समुदाय काफी नाराज हुआ और इस घटना की जमकर आलोचना की। इस घटना के बाद कांग्रेस मे आन्तरिक फूट पड़ गई और इसके विरोध मे कैप्टन अमरिंदर सिंह समेत कई नेताओं ने इस्तीफा दे दिया। सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस ऑपरेशन में 83 सैनिक शहीद हुए थे और 249 घायल हुए थे। वहीं 439 नरमपंथी या आम नागरिक की मृत्यु हुई थी।
घटना के चार महीने बाद प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या
ऑपरेशन ब्लू स्टार को अंजाम दिए चार महीने हुए थे कि 31 अक्टूबर 1984 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सुरक्षा दस्ता में तैनात सतवंत सिंह और बेअंत सिंह ने इंदिरा गांधी की हत्या कर दी। दोनों ने इतनी गोली चलाई थी कि इंदिरा गांधी का शरीर क्षत-विक्षत हो गया था। प्रधानमंत्री की हत्या के बाद देश भर में सिख विरोधी दंगा भड़क गया था। सरकारी आंकड़ों के अनुसार राजधानी दिल्ली में ही अकेले लगभग 2800 सिखों को मौत के घाट उतार दिया गया था। वहीं, पूरे देश में लगभग 3500 सिखों की हत्या हुई थी। इस हत्याकांड के कुछ दिन बाद ही 23 जून 1985 को कनाडा के मॉन्ट्रियल से लंदन जा रही प्लाइट में बम लगा कर उड़ा दिया गया था। इस विमान में सवार सभी 329 यात्रियों की मौत हो गई थी। हमले की पूरी जिम्मेदारी लेते हुए बब्बर खालसा ने कहा था कि यह भिंडरावाले की मौत का बदला है।
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