Haribhoomi-Inh News: समान हो व्यवहार,गिरे हर दीवार ! चर्चा' प्रधान संपादक डॉ. हिमांशु द्विवेदी के साथ

Haribhoomi-Inh News: समान हो व्यवहार,गिरे हर दीवार !  चर्चा प्रधान संपादक डॉ. हिमांशु द्विवेदी के साथ
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Haribhoomi-Inh Exclusive: हरिभूमि-आईएनएच के खास कार्यक्रम 'चर्चा' में प्रधान संपादक डॉ. हिमांशु द्विवेदी ने दिल्ली हाईकोर्ट के उस फैसले पर बातचीत की जिसमें केंद्र सरकार को समान नागरिक संहिता लागू करने के आदेश दिए गए हैं।

Haribhoomi-Inh Exclusive: हरिभूमि-आईएनएच के खास कार्यक्रम 'चर्चा' में प्रधान संपादक डॉ. हिमांशु द्विवेदी ने दिल्ली हाईकोर्ट के उस फैसले पर बातचीत की जिसमें केंद्र सरकार को समान नागरिक संहिता लागू करने के आदेश दिए गए हैं।

दरसल, दिल्ली हाईकोर्ट ने 7 जुलाई को देश में समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) लागू करने के लिए समुचित कदम उठाने के आदेश केंद्र सरकार को दिए। कई सालों से लगातार इस विषय में चर्चा होती आई है पर अब तक परिणाम शुन्य ही रहा है। आखिर क्या है समान नागरिक संहिता...

समान नागरिक संहिता देश में मौजूद सभी धर्म, लिंग, जाति या अन्य वर्ग के लोगों के शादी, उत्तराधिकार, दहेज, संपत्ति या अन्य सिविल मामलों के लिए एक समान कानूनी व्यवस्था। तीन शब्दों से मिलकर बना यूनिफॉर्म, सिविल, कोड में 'यूनिफॉर्म' का मतलब है सभी लोग सभी परिस्थितियों में समान हैं। जबकि 'सिविल' लैटिन शब्द 'civils' से लिया गया है जिसका अर्थ सिटीज़न होता है। वहीं लैटिन शब्द 'codex'यानी 'कोड' का मतलब किताब से है। समान नागरिक संहिता का आशय है कि सभी नागरिकों के लिए सभी परिस्थितियों में एक समान नियम जो एक ही पुस्तक में संहिताबद्ध हो....

कार्यक्रम 'चर्चा' में प्रधान संपादक डॉ. हिमांशु द्विवेदी ने अल्पसंख्यक आयोग जे.ए आजमी, छतीसगढ़ पूर्व मंत्री प्रेम प्रकाश पांडेय, विश्व रामराज्य महासंघ अध्यक्ष दीपिका सिंह, सुप्रीम कोर्ट वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सांख्ला और जामा मस्जिद कमेटी उन्नाव अध्यक्ष जमीर अहमद से खास चर्चा की। खास कार्यक्रम के दौरान इन मेहमानों से कई सवाल पूछे...

समान हो व्यवहार,गिरे हर दीवार !

'चर्चा'

दिल्ली हाईकोर्ट ने समान नागरिक संहिता की आवश्यकता का समर्थन करते हुए बीते दिनों कहा था कि देश में एक संहिता की आवश्यकता है। 'सभी के लिए समान' और केंद्र सरकार से इस मामले में आवश्यक कदम उठाने का आदेश दिया गया। आधुनिक भारतीय समाज में धीरे-धीरे एकरूप होता जा रहा है। धर्म, समुदाय और जाति के पारंपरिक अवरोध धीरे-धीरे खत्म हो रहे हैं। हाईकोर्ट की जज प्रतिभा एम सिंह की पीठ ने कहा था कि संविधान के अनुच्छेद 44 में राज्य अपने नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता को सुरक्षित रखेगा। ये केवल एक आशा नहीं रहनी चाहिए। अनुच्छेद 44 के तहत परिकल्पित सुप्रीम कोर्ट के द्वारा भी समय समय पर दोहराया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने 1985 में निर्देश दिया था कि इस मामले को कानून मंत्रालय के समक्ष रखा जाए। हालाँकि, तब से तीन दशक से अधिक समय बीत चुका है और यह स्पष्ट नहीं है कि क्या कदम उठाए गए हैं।

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