Haribhoomi-Inh News: जूझता 'वर्तमान', उलझता 'भविष्य' ? 'चर्चा' प्रधान संपादक डॉ. हिमांशु द्विवेदी के साथ

Haribhoomi-Inh News: हरिभूमि-आईएनएच के खास कार्यक्रम 'चर्चा' में प्रधान संपादक डॉ. हिमांशु द्विवेदी ने शुरुआत में कहा कि नमस्कार आपका स्वागत है हमारे खास कार्यक्रम चर्चा में, चर्चा के तहत आज हम एक संजीदा विषय पर चर्चा करेंगे। उस विषय पर चर्चा करेंगे जिस पर संवत है कि देश का सबसे पुराना राजनीतिक दल है। कई बार देश की सबसे पुरानी पार्टी हालांकि शुरुआत में उसका नाम कांग्रेस था। उसने अपनी स्थापना के 137 साल पूरे किए हैं। 28 दिसंबर 1885 को मुंबई में कुछ देश के संदर्भ में सोचते हुए लोग इकट्ठा हुए थे और कांग्रेस नाम की संस्था उस वक्त अस्तित्व में आई। वक्त गुजरता गया और कांग्रेस का स्वरूप बदलता गया।
लेकिन कांग्रेस ने राजनीतिक स्वरूप सही मायने में और देश की पार्टी होने का स्वरूप सही मायनों में तब एक तैयार किया। जब मोहन दास करमचंद गांधी जैसे शख्स ने कांग्रेस के साथ अपना नाता जोड़ा। 1915 से लेकर 1947 तक का सफर गांधी युग के तौर पर कांग्रेस में याद किया है। कांग्रेस के साथ वह जुड़े भी और फिर बाद में उन्होंने अपने आप को एक सक्रिय भूमिका से अलग कर लिया। लेकिन कांग्रेस गांधी की छाया में ही फैसले लेती रही और आगे बढ़ती रही। आजादी के बाद नेहरू युग शुरू हुआ। कुल अब तक देश में 16 बार आम चुनाव हुए हैं और इसमें से कांग्रेस ने कई बार जीत हासिल की।
आंकड़ों के हिसाब से नजर डाले तो 49 सालों तक कांग्रेस ने देश पर राज किया या शासन चलाया। लेकिन आज जिस पार्टी के पास इतना बड़ा एक स्वर्णिम इतिहास रहा । आजादी से पहले का है, आजादी के बाद का है और अब वर्तमान का कैसा है। वर्तमान स्थिति में कांग्रेस के पास सिर्फ संसद में 52 सांसद हैं। इससे पहले वह चुनाव में कांग्रेस के पास सिर्फ 44 सांसद थे। आज हमें कार्यक्रम में उस मुद्दे पर बातचीत करेंगे, जिसमें कांग्रेस का इतना पुराना राजनीतिक दल, जिसके पास कभी देश का स्पष्ट जनादेश हुआ करता था और आज एक सीमित हिस्से में भी कुल उपस्थिति दर्ज कराने में क्यों नाकाम रहा है। क्या आने वाला समय कांग्रेस के लिए और भी ज्यादा खराब होने वाला है या फिर हम आने वाले वक्त में कांग्रेस के लिए कोई उम्मीद देख पाएंगे। इस कार्यक्रम में हमारे साथ कई मेहमान जुड़े हुए हैं। जिनसे हम इस मुद्दे पर उनकी राय जानेंगे और कई सवाल पूछेंगे....
जूझता 'वर्तमान', उलझता 'भविष्य' ?
'चर्चा'
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