Haribhoomi-Inh News: सत्ता के वास्ते 'उपहार' के रास्ते ?, 'चर्चा' प्रधान संपादक डॉ. हिमांशु द्विवेदी के साथ

Haribhoomi-Inh News: सत्ता के वास्ते उपहार के रास्ते ?, चर्चा प्रधान संपादक डॉ. हिमांशु द्विवेदी के साथ
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Haribhoomi-Inh News: हरिभूमि-आईएनएच के खास कार्यक्रम 'चर्चा' में प्रधान संपादक डॉ. हिमांशु द्विवेदी ने शुरुआत में कहा कि नमस्कार आपका स्वागत है हमारे खास कार्यक्रम चर्चा में, चर्चा के तहत आज हम एक बार फिर से पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव की राजनीतिक चर्चा को लेकर बातचीत करने जा रहे हैं।

Haribhoomi-Inh News: हरिभूमि-आईएनएच के खास कार्यक्रम 'चर्चा' में प्रधान संपादक डॉ. हिमांशु द्विवेदी ने शुरुआत में कहा कि नमस्कार आपका स्वागत है हमारे खास कार्यक्रम चर्चा में, चर्चा के तहत आज हम एक बार फिर से पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव की राजनीतिक चर्चा को लेकर बातचीत करने जा रहे हैं। और आज का विषय हमारा है संजीदा, क्योंकि देश की सर्वोच्च न्यायालय यानी सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले पर संज्ञान लिया है। चुनाव आते नहीं है कि वादों को लेकर जो राजनीतिक पार्टी करती हैं तमाम राजनीतिक दल सत्ता में आने की खातिर चाहे कुछ भी वादा करने के लिए एलान कर देते हैं।

कई राजनीतिक दल सत्ता में आने के लिए चाहे जो बड़े बड़े वादें कर दें। अगर उनका बस चले तो वह चांद पर प्लॉट भी बांट दें। राजनीतिक दल के संदर्भ में चाहे वह कांग्रेस हो, चाहे भारतीय जनता पार्टी हो या कम्युनिस्ट पार्टी हो। यहां तक की देश की राजनीति में आधारभूत बदलाव के लिए दावा करने वाली आम आदमी पार्टी ही क्यों न हो। सब ने चुनाव में जीतने के लिए सबसे बड़ा नुकसा निकाला है। तो वह है कि ज्यादा से ज्याद खैरात में चीजें देने का वादा कर दें। सत्ता मिल जाए।

उसमें से बहुत कुछ पूरा भी करो भले ही इसके चलते कुल मिलाकर राज्य गर्त में ही क्यों न चला जाए। एक कहावत को कई राजनीतिक दलों ने अपना लिया कि मस्ती में जियो और चाहे कर्ज लेकर ही जियो। सर्वोच्च अदालत में भारतीय जनता पार्टी के एक नेता अश्वनी उपाध्याय ने एक याचिका डाली है कि यह बहुत खतरनाक है। देश के खिलाफ है। इस पर रोक लगनी चाहिए और चुनाव आयोग को इस संदर्भ में कड़े कदम उठाने चाहिए।

अभी हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मामले पर जो चुनावी वादे पार्टियों के द्वारा किए जा रहे हैं। इसमें बड़े-बड़े वादे किए जा रहे हैं। उस पर संज्ञान लिया और बाकायदा नोटिस जारी किया। केंद्र सरकार और चुनाव आयोग को नोटिस जारी कर पूछा गया है। इस कार्यक्रम में हम समझने की कोशिश करेंगे कि क्या जनता के वोट हासिल करने के लिए क्या यही एक रास्ता है और जनता और देश के संदर्भ में यह दावा किया जाता है कि वह बड़ी समझदार है। देश के हित में समाज के हित में चंद सुविधाओं के लिए क्या अपने वोट को देने के लिए तैयार होती है। इसी मुद्दे पर आज हम चर्चा के लिए कई सारे मेहमान जुड़े हुए हैं।

सत्ता के वास्ते 'उपहार' के रास्ते ?

'चर्चा'

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