Haribhoomi-Inh News: 'कमतर' क्यों नारी किसकी जिम्मेदारी?, 'चर्चा' प्रधान संपादक डॉ. हिमांशु द्विवेदी के साथ

Haribhoomi-Inh News: हरिभूमि-आईएनएच के खास कार्यक्रम 'चर्चा' में प्रधान संपादक डॉ. हिमांशु द्विवेदी ने शुरुआत में कहा कि नमस्कार आपका स्वागत है हमारे खास कार्यक्रम चर्चा में, 'कमतर' क्यों नारी किसकी जिम्मेदारी ? जिसका संदर्भ है... आज अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस है, जहां हम दुनिया भर की महिलाओं की उपलब्धियों के जश्न में एकजुट होते हैं।
8 मार्च की घटना अतीत, वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियों की महिलाओं को सम्मानित करती है। जिन्होंने लैंगिक समानता में बदलाव और महिला-केंद्रित कार्यों को आगे बढ़ाया है। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस दुनिया भर के कई देशों में मनाया जाता है। यह एक ऐसा दिन है। जब महिलाओं को राष्ट्रीय, जातीय, भाषाई, सांस्कृतिक, आर्थिक या राजनीतिक विभाजन की परवाह किए बिना उनकी उपलब्धियों के लिए पहचाना जाता है। महिलाओं और लड़कियों को आवाज उठाने और जलवायु परिवर्तन और स्थिरता से संबंधित निर्णय लेने में समान अवसर मिलने, साथ ही बाधाओं का पता लगाने सतत विकास और लैंगिक समानता के लिए आवश्यक है। आज एक स्थायी भविष्य और एक समान भविष्य की कल्पना करना कठिन है, देखिए...
'कमतर' क्यों नारी किसकी जिम्मेदारी?
'चर्चा'
कब और क्यों मनाया जाता है अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस हर साल 8 मार्च को ही मनाया जाता है। यह दिन महिलाओं के सम्मान का दिन है। इस दिन का मकसद महिलाओं की उपलब्धियों, जुनून, नेतृत्व और सामाजिक आर्थिक राजनीतिक देशों में उत्थान को याद करना है। यह दिन किसी न किसी थीम पर आधारित होता है। साल 2022 की थीम 'जेंडर इक्वलिटी टुडे फॉर ए सस्टेनेबल टुमॉरो' पर रखी गई है। इस थीम में लैंगिक समानता पर जोर दिया गया है।
बता दें कि संयुक्त राष्ट्र ने 1975 में 8 मार्च के दिन को महिला दिवस मनाने के लिए घोषणा की थी। साल 1909 में अमेरिका में पहली बार महिला दिवस मनाया गया। जो 28 फरवरी को मनाया गया था। वहीं रूस की महिलाओं ने सबसे पहले 28 फरवरी को महिला दिवस मनाकर प्रथम विश्व युद्ध के खिलाफ अपना विरोध दर्ज किया था। यह दिन सिर्फ इसलिए नहीं मनाया जाता है क्योंकि इसे कैलेंडर में दिखाना होता है। बल्कि इसलिए भी क्योंकि आज भी कई महिलाएं हैं, जो उत्पीड़न की शिकार हैं, शिक्षा से वंचित हैं, भ्रूण हत्या के लिए मजबूर हैं, जिनके पास काम का कोई साधन नहीं है। उनकी आवाज और उनके साथ होने वाले भेदभाव को कम करना है। इसीलिए आज भी इस दिन का उतना ही महत्व है, जितना सालों पहले था। समाज में आज भी इसको लेकर जोर दिया जा रहा है।
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