Hindi Diwas 2020: हिंदी भाषा के सामने हैं ये चुनौतियां, विदेशों में बोली और पढ़ाई भी जाती है हिंदी

Hindi Diwas 2020: हिंदी भाषा के सामने हैं ये चुनौतियां, विदेशों में बोली और पढ़ाई भी जाती है हिंदी
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वर्तमान समय में हिंदी सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि विदेशों में भी बोली और पढ़ाई भी जाती है। भारत मे पहली बार 14 सितंबर 1953 को हिंदी दिवस मनाया गया था।

Hindi Diwas 2020: हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस (Hindi Diwas) मनाया जाता है। देश को आजादी मिलने के दो साल बाद 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा में एक मत से हिंदी को राजभाषा घोषित किया गया था। इसके बाद से हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।हिंदी के विस्तार और प्रसार के लिए ना जाने कितने महापुरूषों ने इसकी वकालत की थी और इसको आगे बढ़ाया।

वर्तमान समय में हिंदी सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि विदेशों में भी बोली और पढ़ाई भी जाती है। भारत मे पहली बार 14 सितंबर 1953 को हिंदी दिवस मनाया गया था। दरअसल, इसका मुख्य उद्देश्य राष्ट्रभाषा हिंदी को न केवल देश के हर क्षेत्र में, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी प्रसारित करना है। लेकिन, आज भी हिंदी के सामने कुछ चुनौतियां हैं। चलिए जानते हैं कौन-कौन सी चुनौतियां हिंदी के सामने हैं।

हिंदी के सामने हैं ये चुनौतियां

वर्तमान समय में हिंदी के सामने विभिन्न चुनौतियां हैं। क्योंकि, सामान्य बोलचाल में अंग्रेजी भाषा के शब्दों का उपयोग किया जा रहा है जोकि धीरे-धीरे हिंदी के अस्तित्व को खतरा पहुंच रहा है। हिंदी दिवस के मौके पर सभी से अपील की जाती है कि सामान्य बोलचाल की भाषा में हिंदी का ही प्रयोग करें।

हिंदी दिवस के मौके पर लोगों को अपने विचार हिंदी में लिखने को कहा जाता है। चूंकि हिन्दी भाषा में लिखने हेतु बहुत कम उपकरण के बारे में ही लोगों को पता है, इस कारण इस दिन हिंदी भाषा में लिखने, जांच करने और शब्दकोश के बारे में जानकारी दी जाती है। आज कल लोग देश में अंग्रेजी भाषा को ज्यादा महत्व देने लगे हैं जोकि हिंदी के लिए खतरा है।

21 वीं सदी में यदि हमें हिंदी से हमदर्दी होती, तो हम अपने बच्चों को हिंदी शिक्षा से वंचित नहीं करते। आप अपने बच्चों को डॉक्टर, इंजीनियर, पायलट और वैज्ञानिक बनाइए। लेकिन, साथ में आप अपने बच्चों को हिंदी भी सिखाइए। आपको बता दूं, अगर किसी देश को गुलाम बनाना हो तो पहले उसकी भाषा खत्म की जाती है। यानी उसकी जड़ों को काटा जाता है।

अगर हम खुद अपनी भाषा को तव्वज्जो नहीं देंगे तो अपनी पहचान खो देंगे। और अपनी जड़ें अपने आप काटने के लिए मजबूर हो जाएंगे। किसी भी भाषा की तरक्की का दरोमदार उसके बोलने वालों के ऊपर होता है। वह किस हद तक अपनी भाषा को बदलते हुए हालतों के साथ खुद को जोड़ते हैं।

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