केसर और हींग के उत्पादन में आत्मनिर्भर बनेगा भारत, सीएसआईआर ने किया इस सरकार के साथ करार

देश के दो पारंपरिक मसालों केसर और हींग के उत्पादन को लेकर आत्मनिर्भरता लाने के मामले में भारत ने जरूरी कदम बढ़ा दिए हैं। इसे लेकर केंद्रीय वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) के हिमाचल प्रदेश स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन बायोरिर्सोस टेक्नोलॉजी (आईएचबीटी) ने प्रदेश सरकार के कृषि विभाग के साथ एक अहम साझदारी की है। इससे भविष्य में हिमाचल में भी केसर और हींग की खेती की जाने लगेगी।
केंद्रीय विज्ञान-प्रौद्योगिकी मंत्रालय के मुताबिक यह साझेदारी हिमाचल में कृषि आय बढ़ाने, आजीविका में वृद्धि और ग्रामीण विकास के उद्देश्य को पूरा करने में मददगार हो सकती है। साथ ही किसानों तथा कृषि विभाग के अधिकारियों को क्षमता निर्माण, नवाचारों के हस्तांतरण, कौशल विकास और अन्य विस्तार गतिविधियों का लाभ मिल सकता है। इस साझेदारी से इन दोनों फसलों की गुणवत्तापूर्ण रोपण सामग्री के बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए अत्याधुनिक टिश्यू कल्चर लैब की स्थापना की जाएगी।
आयात निर्भरता घटेगी
केसर और हींग दुनिया के सबसे मूल्यवान मसालों में गिने जाते हैं। भारतीय व्यंजनों में सदियों से इनका व्यापक रूप से उपयोग किया जाता रहा है। इसके बावजूद देश में इन दोनों कीमतों मसालों का उत्पादन सीमित है। देश में केसर की वार्षिक मांग करीब 100 टन है। लेकिन हमारे देश में इसका औसत उत्पादन लगभग 6 से 7 टन ही होता है। इसी तरह से हींग का उत्पादन भी भारत में नहीं होता है और हर साल 600 करोड़ रुपए की लगभग 1200 टन कच्ची हींग अफगानिस्तान, ईरान और उजबेकिस्तान जैसे देशों से आयात करनी पड़ती है। देश में उत्पादन शुरू होने पर आयात पर से निर्भरता घटेगी।
आईएचबीटी का तर्क
सीएसआईआर-आईएचबीटी के निदेशक डॉ़ संजय कुमार ने कहा कि इन फसलों की पैदावार बढ़ती है तो इनके आयात पर निर्भरता कम हो सकती है। संस्थान किसानों को इसके बारे में तकनीकी जानकारी मुहैया कराने के साथ-साथ राज्य कृषि विभाग के अधिकारियों और किसानों को प्रशिक्षित भी करेगा। राज्य में केसर और हींग के क्रमश: घनकंद और बीज उत्पादन केंद्र भी खोले जाएंगे।
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