Haribhoomi Explainer: जेम्स हर्शेल ने की थी फिंगरप्रिंट की पहचान, जानें कैसे और क्यों

Haribhoomi Explainer: जेम्स हर्शेल ने की थी फिंगरप्रिंट की पहचान, जानें कैसे और क्यों
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Haribhoomi Explainer: हर इंसानी चेहरा दूसरे से अलग होता है, यह तो हम सभी जानते हैं, लेकिन एक समय यह बात किसी को नहीं पता थी कि हर इंसान के एक जैसे दिखने वाले हाथों की उंगलियों की लकीरें भी अलग-अलग होती हैं। सर विलियम जेम्स हर्शेल ने सबसे पहले इस बात का पता लगाया और हस्ताक्षर की बजाय उंगलियों की छाप को पहचान का बेहतर माध्यम करार दिया। आइए आज के हरिभूमि एक्सप्लेनर के माध्यम से हम आपको फिंगरप्रिंट की खोज करने वाले जेम्स हर्शेल के बारे में बताते हैं।

Haribhoomi Explainer: फिंगरप्रिंट जो आज के युग में फोन के लॉक (Phone Lock), ऑफिस की अटेंडेंस (Office Attendance) से लेकर नागरिक का विशिष्ट पहचान (Unique Identification) तय करने में अपनी भूमिका निभा रहा है। आधार कार्ड (Aadhar Card), राशन कार्ड (Ration Card) से लेकर फोन में फिंगरप्रिंट स्कैनिंग (Fingerprint Scanning) का हर जगह इस्तेमाल हो रहा है। भारत में तो शायद ही ऐसी कोई सरकारी योजना बाकी हो, जिसमें फिंगरप्रिंट का इस्तेमाल न होता हो और अब आ रहे शायद ही ऐसा कोई फोन हो, जिसमें फिंगर प्रिंट स्कैनर का इस्तेमाल न हो। मौजूदा वक्त में ऑफिस में एंट्री लेने से लेकर घर का डोर ओपन करने तक हर जगह फिंगरप्रिंट स्कैनर (Fingerprint Scanner) का इस्तेमाल होता है। भारत के डिजिटल इंडिया (Digital India) मुहिम में फिंगरप्रिंट (Fingerprint) स्कैनर का खास योगदान रहा है, लेकिन यह बात बहुत कम लोग ही जानते होंगे कि आखिर फिंगरप्रिंट (Fingerprint) की खोज करने वाला शख्स कौन था। आइए आज के हरिभूमि एक्सप्लेनर के माध्यम से हम आपको फिंगरप्रिंट की खोज करने वाले शख्स के बारे में बताते हैं।

विलियम जेम्‍स हर्शेल ने की थी फिंगरप्रिंट की खोज

फिंगरप्रिंट की खोज विलियम जेम्‍स हर्शेल (William James Herschel) ने की थी। जेम्‍स एक ब्रिटिश नागरिक (British Citizen) थे, जिनका जन्‍म आज से करीब 165 साल पहले 28 जुलाई, 1858 को हुआ था। मतलब आज जेम्स की जन्मतिथि है। जेम्स ही वो शख्स थे, जिसने बताया था कि हर एक व्यक्ति की उंगलियों के निशान अलग-अलग होते हैं। ब्रिटिश जेम्‍स खगोल वैज्ञानिकों (Astronomers) के परिवार से संबंध रखते थे। जेम्स मात्र 20 साल की उम्र में भारत आ गए और भारत में ईस्‍ट इंडिया कंपनी के कर्मचारी के तौर पर कार्यभार संभाला और लोकल भारतीय बिजनेस मैन के साथ कई तरह के कॉन्ट्रैक्ट साइन किए, लेकिन उस वक्त ज्यादातर भारतीय पढ़े लिखे नहीं थे, ऐसे में हस्ताक्षर युक्त दस्तावेज नहीं उपलब्ध हो पाते थे। ऐसे में भारतीयों और ब्रिटिशों के बीच हुए करार टूट जाते और ब्रिटिश कानूनी दावा भी नहीं कर पाते थे। इस समस्या के समाधान के लिए जेम्स ने साल 1858 में भारतीयों के हाथ की पूरी छाप दस्तावेज पर एक हस्ताक्षर के रूप में कराने लगे। हालांकि, बाद में उन्होंने अनुभव किया कि पूरी हथेलियों की छाप लेना जरूरी नहीं है, क्योंकि उंगलियों के निशान लंबे वक्त तक नहीं बदलते हैं। इसी दौरान उन्होंने पाया कि जब हर एक इंसान के फिंगरप्रिंट अलग-अलग होते हैं, तो क्यों न इसे पहचान के तौर पर इस्तेमाल किया जाए। इसके बाद उन्होंने ICS अधिकारी रहते हुए हस्ताक्षर की बजाय अधिकारिक दस्तावेजों में फिंगरप्रिंट का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। साल 1800 में भारत गुलामी के दौर से गुजर रहा था। ऐसे वक्त में ब्रिटिश अधिकारियों ने फिंगरप्रिंट को कैदियों और अपराधियों के लिए अनिवार्य इस्तेमाल करने को लेकर एक कानून बना दिया गया। इस तरह गुलामी के दौर में भारत में पहचान के तौर पर फिंगरप्रिंट का इस्तेमाल होने लगा, जो आज तक जारी है।

उंगलियों के निशान का इस्तेमाल किया

उंगलियों के निशान को पहचान बनाने वाले ब्रिटिश विलियम जेम्स हर्षल खगोल वैज्ञानिकों के परिवार से ही थे। वह ईस्ट कंपनी में कर्मचारी थे और साल 1800 के दौरान बंगाल में नियुक्त रहे। जेम्स को एहसास हुआ कि सभी के उंगलियों के निशान एक जैसे नहीं होते, वह अलग-अलग होते हैं और इसका इस्तेमाल पहचान के लिए किया जा सकता है। बतौर ICS अधिकारी हस्ताक्षर की बजाए आधिकारिक दस्तावेजों पर उन्होंने अपने उंगलियों के निशान का इस्तेमाल किया। फिर आगे चलकर उंगलियों के निशान देना कैदियों और अपराधियों के लिए कानून बना दिया गया।

किस लिए खास है फिंगरप्रिंट

दुनिया में हर इंसान के हाथ की त्वचा दो लेयर से बनती है। स्किन की पहली लेयर को एपिडर्मिस और दूसरी लेयर को डर्मिस कहा जाता है। हमारे हाथों की स्किन की इन्हीं दोनों लेयर मिलकर फिंगरप्रिंट (Fingerprint) के उभार बनते हैं। ये फिंगरप्रिंट इतने पावरफुल होते हैं कि आप इनका इस्तेमाल करके पासवर्ड बना सकते हैं। गौरतलब है कि फिंगरप्रिंट यूनिक होते हैं। किसी एक इंसान का फिंगरप्रिंट किसी दूसरे इंसान के फिंगर प्रिंट से नहीं मिलता है।

गर्भ से ही बनने लगता है फिंगरप्रिंट

फिंगरप्रिंट के पीछे इंसान के जीन्‍स, एन्‍वॉयर्नमेंट जैसे फैक्टर जिम्मेदार होते हैं। एक्सपर्ट्स के अनुसार, बच्‍चा जब गर्भ में पल रहा होता है, उसी दौरान उसके फिंगरप्रिंट तैयार होने लगते हैं। वहीं, अगर हाथों में किसी तरह की दिक्‍कत आती है और फिंगरप्रिंट गायब हो जाते हैं, तो कुछ ही महीनों के अंदर फिर से उसी पोजीशन पर आ जाते हैं। हाथ जलने के महीने के भीतर उसी तरह के फिंगरप्रिंट आ जाते हैं। उम्र बढ़ने के साथ इंसान के फिंगरप्रिंट में कोई बदलाव नहीं आता है।

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