Joshimath: कुदरत के तांडव से दहल रहा जोशीमठ, वैज्ञानिकों ने खड़े किए हाथ, क्या बर्बादी के इस मंजर को रोक पाना संभव?

कुदरत के कहर के सामने सब फेल हैं। भले ही आधुनिक विज्ञान ने कितनी भी तरक्की कर ली हो। लेकिन आज भी विज्ञान प्रकृति के सामने झुकने को मजबूर है। इसी कटु सत्य का एक नमूना उत्तराखंड के जोशीमठ में देखा जा सकता है। जोशीमठ उत्तराखंड के सबसे बड़े आध्यात्मिक शहरों में से एक है। ये शहर अब जमीन में अंदर धंस रहा है। जमीनें फटने लगी हैं, घरों में मोटी मोटी दरारें आ चुकी हैं। ये घर मौतों को दावत दे रहे हैं। इसी बीच केंद्र और राज्य सरकार ने शहर में अलर्ट जारी कर दिया है। असुरक्षित स्थानों से लोगों को सुरक्षित जगहों पर भेजा जा रहा है।
ऐसी बात नहीं है कि जोशीमठ की तबाही अचानक शुरू हुई है। इसकी शुरुआत 1976 में ही हो गई थी। इस शहर को लेकर साल 1976 में एक रिपोर्ट पेश की गई थी। जिसे सरकार की ओर से नियुक्त मिश्रा आयोग ने तैयार किया था। रिपोर्ट में संकेत दिया गया था कि जोशीमठ एक भूस्खलन स्थल पर बसा हुआ है। अगर यहां अंधाधुंध निर्माण कार्य होंगे तो जोशीमठ तबाह हो जाएगा।
बर्बादी के लिए कौन है जिम्मेदार?
जब से जोशीमठ में भूस्खलन हो रहे हैं, लगातार सवाल उठाए जा रहे हैं कि इसके लिए कौन जिम्मेदार है। इसके लिए विशेषज्ञों की एक टीम ने जांच शुरू कर दी है। स्थानीय लोगों ने दावा किया है कि भूस्खलन के लिए शहर में चलाई जा रही जलविद्युत परियोजना और अन्य निर्माण कार्य जिम्मेदार हैं। जोशीमठ में बनाई जा रहीं टनल और इससे जुड़ी परियोजनाओं को दरार और भूस्खलन की वजह बताया जा रहा है। इसके बाद NTPC के पावर प्रोजेक्ट के तहत जोशीमठ के नीचे बन रही टनल का काम बंद कर दिया गया है।
कितना मुख्य है जोशीमठ?
बता दें कि जोशीमठ शहर भारत के सबसे प्राचीनतम शहरों में से एक है। यह शहर ऋषिकेश-बद्रीनाथ नेशनल हाईवे 7 पर स्थित है। बद्रीनाथ, औली और हेमकुंड साहिब जाने वाले लोग इस जगह पर रात में ठहरते हैं। यह शहर भारतीय सशस्त्र बलों के लिए भी रणनीतिक तौर पर काफी महत्वपूर्ण है। इसलिए इसे सेना की सबसे अहम छावनियों में से एक माना जाता है।
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