Sawan 2023: सावन के साथ आज से कांवड़ा यात्रा शुरू, जानें इसके खास नियम

Kanwar Yatra 2023: आज जुलाई की 4 तारीख यानी मंगलवार से सावन मास (Sawan month) का शुभारंभ हो चुका है, जिसका समापन 31 अगस्त को इस बार होगा। ऐसा कहा जाता है कि सावन माह भगवान शिव (Lord Shiva) को काफी प्रिय है। बता दें कि इस बार सावन माह में 8 सोमवार पड़ रहे हैं। सावन की पहली सोमवारी इस बार 10 जुलाई को है, दूसरी सोमवारी 17 जुलाई, तीसरी सोमवारी 24 जुलाई, चौथी सोमवारी 31 जुलाई, पांचवीं सोमवारी 7 अगस्त, छठी सोमवारी 14 अगस्त, सातवीं सोमवारी 21 अगस्त और आठवीं सोमवारी 28 अगस्त को है।
बता दें कि सावन की सोमवारी को बेलपत्र से भगवान शिव की विशेष पूजा की जाती है। भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए उनके भक्त इस महीने कांवड़ यात्रा भी करते हैं। इस वर्ष 4 जुलाई से कांवड़ यात्रा शुरू हुई है। इस दौरान शिवभक्त नदी से जल भरकर पास के शिव मंदिर पहुंचते हैं और शिवलिंग पर चढ़ाते हैं। इस दौरान भगवान शिव की प्रिय चीजें भी शिवलिंग पर चढ़ाई जाती हैं।
त्रेता युग में श्रवण कुमार ने आरंभ की थी कांवड़ यात्रा
ऐसा कहा जाता है कि सर्वप्रथम त्रेता युग में श्रवण कुमार ने कांवड़ यात्रा आरंभ की थी। अपने दृष्टिहीन माता-पिता को तीर्थ यात्रा कराते समय जब वे हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) के ऊना (Una) में पहुंचे, तो उनसे उनके माता-पिता ने हरिद्वार (Haridwar) में गंगा स्नान करने की इच्छा जताई। उनकी इस इच्छा को पूरा करने के लिए श्रवण कुमार ने उन्हें कांवड़ में बैठाया और हरिद्वार लाकर गंगा स्नान कराए। वहां से वे अपने साथ गंगाजल भी लाए। इसके बाद कांवड़ यात्रा की परंपरा शुरू हुई।
कुछ लोग समुद्र मंथन के बाद बताते हैं कांवड़ यात्रा का आरंभ
कुछ लोग कहते हैं कि कांवड़ यात्रा की शुरुआत (Beginning of Kanwar Yatra) समुद्र मंथन के समय हुई थी। मंथन से निकले विष को पीने के बाद महादेव का कंठ नीला पड़ गया था, जिसके कारण उनका नाम नीलकंठ पड़ा। परंतु उनके ऊपर विष का बुरा प्रभाव हुआ। विष के प्रभाव को दूर करने के लिए शिवभक्त रावण ने तप किया। इसके बाद रावण कांवड़ में जल भरकर लाया और भगवान शिव के ऊपर शिवजी का जलाभिषेक किया। इसके बाद महादेव विष के प्रभाव से मुक्त हुए।
जानें कांवड़ यात्रा के कुछ नियम
कांवड़ यात्रा करने वाले श्रद्धालुओं को कांवड़िया कहा जाता है। यात्रा पर जाने वाले भक्तों को कुछ विशेष नियमों का पालन करना होता है। इस दौरान शिव भक्तों को पैदल यात्रा करनी होती है। भक्तों को सात्विक भोजन ही ग्रहण करना होता है। यात्रा के दौरान यदि विश्राम करना हो तो कांवड़ को जमीन पर नहीं, बल्कि किसी पेड़ पर लटकाना होता है। यदि आप कांवड़ को जमीन पर रखते हैं तो आपको दोबारा से गंगाजल भरकर फिर से यात्रा शुरू करनी पड़ती है। इस दौरान भक्तों को नंगे पांव चलना होता है। बिना स्नान किए कांवड़ का स्पर्श नहीं किया जाता है।
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