Kargil 21 Years: कारगिल के रास्ते भारत भारत में घुसने की फिराक में था पाकिस्तान, मिशन पर जाने से पहले सभी जवानों ने किया था ये काम

भारत-पाकिस्तान के बीच 1999 में हुआ कारगिल युद्ध आज भी जवानों के जहन में है। वही हर भारतवासी को इस युद्ध को नहीं भूला है। 21 साल पहले पाकिस्तान ने कारगिल के जरिए भारत में घुसने की कोशिश की थी। इस दौरान भारतीय जवानों ने पाकिस्तानी सैनिकों को धूल चटा दे और कारगिल पर तिरंगा लहरा दिया था।
ऑपरेशन विजय रखा था कारगिल युद्ध का नाम
कारगिल युद्ध के दौरान ऑपरेशन विजय के नाम से युद्ध को शुरू किया गया था। मई से जुलाई तक युद्ध हुआ। इन 90 दिनों के अंदर भारत और पाकिस्तान के जवान शहीद हुए। जबकि वहीं दूसरी तरफ पाकिस्तान ने दावा करता रहा कि उसकी सेना इस लड़ाई में शामिल नहीं है। यह कश्मीरी उग्रवादियों की चाल है। लेकिन बाद में सबूत मिला और साबित हो गया कि पाकिस्तानी सेना भी इस युद्ध में शामिल है।
ऐसे मिली थी कारगिल युद्ध में जीत
जिसके बाद भारतीय सेना ने मोर्चा संभालते हुए अपनी तो पर तैनात कर दें और ऑपरेशन विजय को 90 दिनों के अंदर जीत लिया गया। इस दौरान कई कैप्टन शहीद हो गए और कई जवानों ने अपने बलिदान से इस ऑपरेशन को विजय बनाया। यह कश्मीर घाटी के उत्तर-पूर्व में श्रीनगर से करीब 205 किमी दूर है। पहले यह जम्मू-कश्मीर का हिस्सा था। लेकिन जम्मू-कश्मीर राज्य पुनर्गठन विधेयक के कानून के बनने के बाद इसे लद्दाख से जोड़ दिया गया।
इतने पॉइंट पर मिला था जवानों को तिरंगा लहराने का लक्ष्य
21 साल पहले जुलाई 1999 को जवानों को प्वॉइंट 4875 पर तिरंगा फहराने का लक्ष्य मिला था। इस मौके पर कैप्टन नवीन नागपन्न ने एक इंटरव्यू के दौरान बताया कि किस तरह से कारगिल में युद्ध के दौरान वह घायल हो गए थे और 13 महीने तक इलाज होने के बाद उन्हें सेना से अनफिट कर दिया गया।
उन्होंने जानकारी दी थी कि मैं 6 महीने पहले ही भारतीय मिलिट्री एकेडमी में आया था और जम्मू-कश्मीर राइफल्स यूनिट में भर्ती हुआ था। मेरी सबसे पहली पोस्टिंग ही जम्मू कश्मीर में हुई थी और इमरजेंसी ऑपरेशन में ही उन्हें रखा गया था। लेकिन 6 महीने ही हुए थे कि उन्हें कारगिल भेज दिया गया उन्होंने कहा कि मिशन पर जाने से पहले सभी जवान एक दूसरे से गले लगे थे।
युद्ध में जाने से पहले सभी मिले थे गले
मैं भी बारी-बारी से सबसे मिल रहा था इस दौरान जब मैं कैप्टन विक्रम बत्रा के पास पहुंचा और उन्हें गले मिलने लगा तब उन्होंने मुझसे कहा था कि यारा अभी गले ना लग क्या पता कौन सी मुलाकात आखरी हो जाए। जानकारी के लिए बता दें कि जब कारगिल युद्ध हो रहा था तो उससे पहले ही यहां पर तैनात जवानों से उनका आखिरी संदेश लिखवा लिया गया था। अक्सर युद्ध में जाने से पहले जवानों से आखरी संदेश उसके परिवार माता पिता और पति पत्नी बच्चों के लिए लिखवाया जाता है कि वह आखिर संदेश में क्या कहना चाहते हैं। इसकी जिम्मेदारी कैप्टन को दी गई थी।
सभी जवानों ने अपने परिवार के लिए पत्र लिखे। उसके बाद उनसे कहा गया कि सभी अपने बटुए और आईडी कार्ड भी जमा कर दें। आईडी कार्ड लेकर मिशन पर जाना खतरनाक हो सकता था। क्योंकि, यदि कोई जवान गलती से युद्धबंदी हो जाए तो दुश्मन उसका बेजा इस्तेमाल कर सकता था।
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