Kargil Diwas Poem: इन टॉप 5 कविताओं से दें वीर जवानों को श्रद्धांजलि

Kargil Diwas 2020: कारगिल विजय दिवस (Kargil Vijay Diwas) की 21वीं वर्षगांठ 26 जुलाई को पूरे देश में जोर-शोर से मनाई जाएगी। इस दिन कारगिल युद्ध (Kargil War) में शहीद हुए सैकड़ों शहीदों को याद करके उनकी शौर्य गाथा को युवा पीढ़ियों को बताते हैं। इस दिन को जहां शहीदों की श्रद्धांजलि देने के लिए मनाते हैं। वहीं हम इस दिन को भारत की पाकिस्तान पर जीत के लिए जश्न के रूप में भी मनाते हैं। कारगिल विजय दिवस पर हम लाएं है कारगिल विजय दिवस कोट्स (Kargil Vijay Diwas Quotes), कारगिल विजय दिवस कविता (Kargil Vijay Diwas Poem), कारगिल विजय दिवस व्हाट्सएप स्टेटस (Kargil Vijay Diwas Whatsapp Status) जिसके जरिए आप भी शहीदों को श्रद्धाजंलि दे सकेंगे।
कारगिल दिवस कविता
1- वीर जवानों की शहादत पर गूंज रहा था, सारा देश,
वही भगत सिंह थे, वही राजगुरु और वही थे सुखदेव,
भारत माता की आजादी की खातिर, धरे थे न जाने उन्होंने कितने ही भेष
लहूलुहान हुई जा रही थी भूमि अपनी और बादलों में छाई हुई थी लालिमा,
आजादी-आजादी के स्वरों से गूंज रहा था सारा जहाँ,
इन वीर शहीदों की कुर्बानी से आँखे सबकी भर आई थी,
जब देश के खातिर उन्होंने अपनी कीमती जान गंवाई थी,
वो कल भी थे वो आज भी है अस्तित्व उनका अमर रहेगा।
2- मिट्टी वतन की पूछती
वह कौन है‚ वह कौन है?
इतिहास जिस पर मौन है?
जिसके लहू की बूंद का टीका हमारे भाल पर‚
जिसके लहू की लालिमा स्वातंत्र शिशु के गाल पर‚
जो बुझ गया गिर कर गगन से‚ निमिष में तारा–सदृश‚
बच ओस जितना भी न पाया‚ अश्रु जिसका काल पर
जो दे गया जीवन विजन के फूल सा हँस नाश को…
जिसके लिये दो बूंद भी स्याही नहीं इतिहास को?
वह कौन है‚ वह कौन है?
जिसके मरण के नेह से‚ दीपक नये युग का जला‚
काजल नयन के मेह से‚ मरुथल मनुज–मन का फला‚
चुनता गया पद–पद्य से‚ कंटक मनुज की राह का‚
विष दासता को‚ मुक्ति को‚ निज मृत्यु का अमृत पिला‚
चुभती न स्मृति जिसकी कभी‚ जो मैं किसी के शूल–सी‚
झरते न जिस पर आंख से‚ दो आंसुओं के फूल ही!
वह कौन है‚ वह कौन है?
लगता नही जिसकी चिता पर आज मेला भी यहां‚
दो फूल क्या‚ मिलता किसी के हाथ ढेला भी कहां?
वह मातृभू पर मर गया‚ फिर भी रहा अनजान ही–
इस मुक्ति उत्सव पर डला उस पर न धेला भी यहां;
वह कब खिला‚ कब झर गया‚ अज्ञात हारसिंगार–सा
किसको पता है दासता के काल उस अंगार का?
वह कौन है‚ वह कौन है?
इतिहास जिस पर मौन है?
3- एक जवान जो शहीद हो गया
संवेदनाओं के कितने बीज बो गया।
तिरंगे में लिपटी उसके घर पर आ गई,
सिहर उठी हवाऐं उदासी कि छा गई।
तिरंगे में रखा ख़त जो उसकी माँ को दिख गया,
मरता हुआ जवान उस ख़त में लिख गया।
तूझे कसम है माँ रोना नहीं है,
तेरा बेटा तो तेरे दिल में कहीं है।
बहना से कहना राखी पर याद ना करें,
कहना की भाई बनकर अगली बार आऊँगा।
तूझसे दुर जल्दी ना जाऊँगा,
रक्षा करने देश की मैं दोबारा आऊँगा।
4- अपने लहू से सिंचा है उन परवानों ने,
यूं ही नहीं ये वादियां जन्नत कहलाती हैं
आज भी खड़ी है रुह-ए-आशिक़ इन सरहदों पे,
आज़माना है किसी को अपना ज़ोर तो आए
पूछा खुदा ने काफी कत्ल किए हैं उस जहां ने,
बोला, आशिक-ए-वतन हूं गुनाहों की हर सज़ा मंजूर है
करके नम अपने चशम, बोले निज़ाम ए आलम,
ऐसे दलेर आशिक से पहली दफा पाला पड़ा है
बोला, खुदा कतार बहुत लंबी है अभी आने वालों की,
कमी नहीं है मेरे मुल्क में उसपर मर मिटने वालों की।
5- चीड़ के जंगल खड़े थे देखते लाचार से
गोलियाँ चलती रहीं इस पार से उस पार से
मिट गया इक नौजवां कल फिर वतन के वास्ते
चीख तक उट्ठी नहीं इक भी किसी अखबार से
कितने दिन बीते कि हूँ मुस्तैद सरहद पर इधर
बाट जोहे है उधर माँ पिछले ही त्योहार से
अब शहीदों की चिताओं पर न मेले सजते हैं
है कहाँ फुरसत जरा भी लोगों को घर-बार से
मुट्ठियाँ भीचे हुये कितने दशक बीतेंगे और
क्या सुलझता है कोई मुद्दा कभी हथियार से
मुर्तियाँ बन रह गये वो चौक पर, चौराहे पर
खींच लाये थे जो किश्ती मुल्क की मझधार से
बैठता हूँ जब भी "गौतम" दुश्मनों की घात में
रात भर आवाज देता है कोई उस पार से।
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