Khudiram Bose Biography: देश के सबसे पहले शहीद थे खुदीराम बोस, आखिर क्या है अमित शाह की रणनीति

Khudiram Bose Biography: देश के सबसे पहले शहीद थे खुदीराम बोस, आखिर क्या है अमित शाह की रणनीति
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Khudiram Bose Biography: आज केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने देश के सबसे पहले शहीद वीर सपूत खुदीराम बोस को उनके पैतृक गांव पश्चिमी मेदिनीपुर में पुष्पांजलि अर्पित की और बोस के परिवार के सदस्यों के साथ मुलाकात की और उन्हें माला पहनाकर सम्मानित किया।

Khudiram Bose Biography: आजादी की लड़ाई में अंग्रेजों से लोहा लेने वाले देशभक्त खुदीराम बोस ने आजादी की लड़ाई में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की लड़ाई में महज 18 साल की छोटी-सी उम्र में फांसी का फंदा चूम लिया था। आज केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने खुदीराम बोस को उनके (बोस के) पैतृक गांव पश्चिमी मेदिनीपुर में पुष्पांजलि अर्पित की और बोस के परिवार के सदस्यों के साथ मुलाकात की और उन्हें मानद माला पहनाकर सम्मानित किया।

इस दौरान गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि यह मेरा सौभाग्य है कि मैं महान स्वतंत्रता सेनानी खुदीराम बोस के घर की मिट्टी को अपने माथे से स्पर्श कर पाया। वह खुशी-खुशी भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के लिए बलिदान देने के लिए फांसी पर चढ़ गए। आपको बताते चलें कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह अपने दो दिनों के दौरे पर बंगाल गए हुए हैं। इस मुलाकात के बाद खुदीराम बोस के परिवार के सदस्य गोपाल बसु ने कहा कि भाजपा ने हमें थोड़ी श्रद्धा दी है। किसी भी पिछली सरकार ने हमें इस तरह का सम्मान नहीं दिया।

बहन ने किया था खुदीराम का लालन-पालन

आजादी के परवाने खुदीराम बोस का जन्म 3 दिसंबर 1889 को बंगाल के मिदनापुर जिले के गांव हबीबपुर में हुआ था। उनके पिता का नाम त्रैलोक्य नाथ और माता का नाम लक्ष्मीप्रिय देवी था। खुदीराम के सिर से माता-पिता का साया बहुत जल्दी ही उतर गया था इसलिए उनका लालन-पालन उनकी बड़ी बहन ने किया। 9वीं की पढ़ाई के बाद बोस पूरी तरह क्रांतिकारी बन गए थे।

बंगाल विभाजन के बाद बने थे क्रांतिकारी

बंगाल में उभरते हुए राष्ट्रीय आन्दोलन को नष्ट करने के लिए 16 अक्टूबर 1905 को लार्ड कर्जन ने बंगाल का विभाजन किया। 1905 में हुए बंगाल विभाजन के बाद तो खुदीराम बोस क्रांतिकारी सत्येन बोस की अगुवाई में क्रांतिकारी बन गए। 1905 में बंगाल विभाजन के विरोध में चले आंदोलन में भी खुदीराम बोस ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया। पुलिस ने 28 फरवरी, 1906 को सोनार बंगला नामक एक इश्तहार बांटते हुए खुदीराम बोस को दबोच लिया। लेकिन वह पुलिस के शिकंजे से भागने में सफल रहे।

मजिस्ट्रेट किंग्सफोर्ड को मारने की मिली जिम्मेवारी

कोलकाता का चीफ प्रेसिडेंसी मजिस्ट्रेट किंग्सफोर्ड क्रांतिकारियों को अपमानित करने और उन्हें दंड देने के लिए बदनाम था। इसके लिए क्रांतिकारियों ने उसकी हत्या का फैसला किया। युगांतर क्रांतिकारी दल के नेता वीरेंद्र कुमार घोष ने घोषणा की कि किंग्सफोर्ड को मुजफ्फरपुर (बिहार) में ही मारा जाएगा। इस काम के लिए खुदीराम बोस तथा प्रफुल्ल चंद को चुना गया। किंग्सफोर्ड को मारने के लिए खुदीराम और प्रफुल्ल चाकी को एक बम और पिस्तौल दी गई थी। 30 अप्रैल 1908 को दोनों यूरोपियन क्लब के बाहर किंग्सफोर्ड का इंतजार करने लगे। रात के 8.30 बजे दोनों ने किंग्सफोर्ड की बग्गी पर हमला कर दिया। हमले में किंग्सफोर्ड बाल-बाल बच गए, लेकिन उनकी बेटी और एक अन्य महिला की मौत हो गई।

फैसला सुनकर मुस्कुराए खुदीराम

8 जून, 1908 को उन्हें अदालत में पेश किया गया और 13 जून, 1908 को शहीद खुदीराम बोस को मौत की सजा सुनाई गई। जब जज ने फैसला पढ़कर सुनाया तो खुदीराम बोस मुस्कुरा उठे। जज को लगा कि खुदीराम सजा को समझ नहीं पाए हैं, इसलिए वे मुस्कुरा रहे हैं। जज ने पूछा कि क्या तुम्हें सजा के बारे में पूरी बात समझ आ गई है। इस पर बोस ने दृढ़ता से जज को कहा कि 'ये मेरा सौभाग्य है कि जिस देश की मिट्टी का मैंने नमक खाया है, देश के लिए फांसी के तख्ते पर झूल कर आज उस मिट्टी का कर्ज चुकाने का मौका मिला है।'

11 अगस्त 1908 को खुदीराम बोस फांसी पर चढ़े

11 अगस्त, 1908 को सुबह 6 बजे हाथ में गीता लेकर खुदीराम बोस हंसते-हंसते फांसी पर झूल गए। तब उनकी आयु मात्र 18 साल 8 महीने और 8 दिन थी। महान क्रांतिकारी खुदीराम बोस की शहादत के बाद देश में देशभक्ति की लहर उमड़ पड़ी। खुदीराम बोस देश युवाओं के लिए अनुकरणीय हो गए।

खुदीराम धोती

शहीद खुदीराम बोस की लोकप्रियता का यह आलम था कि उनको फांसी दिए जाने के बाद बंगाल के जुलाहे एक खास किस्म की धोती बुनने लगे, जिसकी किनारी पर 'खुदीराम' लिखा होता था और बंगाल के नौजवान बड़े गर्व से वह धोती पहन कर आजादी की लड़ाई में कूद पड़े। इतिहासवेत्ता शिरोल ने लिखा है कि 'बंगाल के राष्ट्रवादियों के लिए वह वीर शहीद और अनुकरणीय हो गया'। भारत के कई जाने माने इतिहासकारों ने शहीद खुदीराम बोस को देश को आजाद कराने के लिए हंसते-हंसते अपनी जान देश के खातिर कुर्बान करने वाला सबसे कम उम्र का क्रांतिकारी माना है।

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