Lok Sabha Election Results 2019 : मुद्दों और धारणा की लड़ाई में एक बार फिर धराशाई हुए राहुल गांधी

Lok Sabha Election Results 2019 : मुद्दों और धारणा की लड़ाई में एक बार फिर धराशाई हुए राहुल गांधी
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करीब डेढ़ साल पहले राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष की कमान संभालते समय पार्टी समर्थकों एवं कार्यकर्ताओं को उम्मीद थी कि वह आगामी चुनावों में न सिर्फ पार्टी के लिए सफल खेवनहार साबित होंगे, बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने कड़ी चुनौती भी पेश करेंगे। लेकिन लोकसभा 2019 के नतीजें आने के बाद यह लग रहा है कि मुद्दों, छवि और धारणा की लड़ाई में वह एक फिर धराशायी हो गए।

करीब डेढ़ साल पहले राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष की कमान संभालते समय पार्टी समर्थकों एवं कार्यकर्ताओं को उम्मीद थी कि वह आगामी चुनावों में न सिर्फ पार्टी के लिए सफल खेवनहार साबित होंगे, बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने कड़ी चुनौती भी पेश करेंगे। लेकिन लोकसभा 2019 के नतीजें आने के बाद यह लग रहा है कि मुद्दों, छवि और धारणा की लड़ाई में वह एक फिर धराशायी हो गए।

इस लोकसभा चुनाव में गांधी ने पूरी ताकत झोंकते हुए प्रधानमंत्री मोदी को घेरने की कोशिश की, लेकिन शायद वह 'मजबूत नेतृत्व' के विमर्श में जनमानस के भीतर अपनी छाप छोड़ने में विफल रहे। वर्ष 2017 के आखिर में गुजरात विधानसभा चुनाव के समय पार्टी अध्यक्ष की कमान संभालने के बाद से राहुल गांधी ने संगठन के स्तर पर बड़े बदलाव किए तो राज्यों के विधानसभा चुनाव में आक्रामक अभियान चलाया।

उनके अध्यक्ष रहते हुए कांग्रेस ने कुछ राज्यों पराजयों का सामना किया, लेकिन पिछले साल नवंबर-दिसंबर में तीन राज्यों-मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के विधानसभा चुनावों में उसकी जीत ने पार्टी की लोकसभा चुनाव के लिए उम्मीदों को ताकत देने का काम किया। लोकसभा चुनाव के साल में राहुल गांधी के सामने जहां कांग्रेस के पुनरुद्धार की चुनौती थी अपनी नेतृत्व क्षमता को साबित करने का भी बड़ा लक्ष्य था।

राहुल गांधी ने पूरी कोशिश भी की। उन्होंने राफेल लड़ाकू विमान सौदे का मुद्दा जोरशोर से उठाया। इसके अलावा उन्होंने 'न्यूनतम आय गारंटी' (न्याय) योजना को 'मास्टरस्ट्रोक' के तौर पर पेश किया। शायद उन्हें उम्मीद थी कि गरीबों को सालाना 72 हजार रुपये देने का उनका वादा भाजपा के राष्ट्रवाद वाले विमर्श की धार को कुंद कर देगा, जबकि हकीकत में ऐसा नहीं हुआ।

जानकारों का मानना है कि गांधी के 'नकारात्मक' प्रचार अभियान के साथ पार्टी अथवा विपक्षी गठबंधन की तरफ से नेतृत्व का स्पष्ट नहीं होना भी भारी पड़ा। पार्टी के प्रचार अभियान की कमान संभालते हुए गांधी प्रधानमंत्री पद अथवा विपक्ष की तरफ से नेतृत्व के सवाल को भी प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से टालते रहे। वह बार बार यही कहते रहे कि जनता मालिक है और उसका फैसला स्वीकार किया जाएगा।

कांग्रेस अध्यक्ष के लिए इस चुनाव में पार्टी की हार के साथ दोहरा झटका यह है कि वह अपनी परंपरागत अमेठी सीट से भी चुनाव हार गए। दरअसल, राहुल गांधी ने 2004 में अमेठी से पहला लोकसभा चुनाव लड़ा था और जीत हासिल की थी। उन्हें 2007 को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का महासचिव नियुक्त किया गया। उन्हें भारतीय राष्ट्रीय छात्र संघ (एनएसयूआई) और भारतीय युवा कांग्रेस का प्रभार सौंपा गया।

इसके बाद 2009 के आम चुनावों में भी वह जीते और साथ में कांग्रेस को बड़ी जीत मिली जिसका श्रेय उन्हें दिया गया। जनवरी, 2013 में उन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया। इसके बाद वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने अमेठी की लोकसभा सीट पर पुनः जीत दर्ज की। वह 16 दिसंबर, 2017 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष बनाए गए।

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