ममता बनर्जी की जिंदगी के अनसुने किस्से, भाइयों को दूध बेचकर पाला और ऐसे तय किया CM तक का सफ़र

लोकसभा चुनाव 2019 के मद्देनजर पश्चिम बंगाल सबसे ज्यादा चर्चा में है। अभी तक हुए सभी छह चरणों में पश्चिम बंगाल में हिंसा की खबरे सामने आईं जोकि अभी तक चल रही हैं। इस लोकसभा चुनाव में प. बंगाल राजनीतिक लड़ाई का सबसे बड़ा अखाड़ा बन हुआ है। 'दीदी' कहलाने वाली ममता बंगाल में चट्टान की तरह खड़ी हैं। भाजपा को अपने संघर्ष को मुकाम तक पहुंचाने के लिए इस चट्टान से टकराना पड़ रहा है। मोदी- शाह की जोड़ी पश्चिम बंगाल में अपना कमल खिलाने की कोशिश में लगी है। तो वहीं ममता इसे रोकने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रही हैं। ममता और पीएम मोदी में जुबानी जंग और आरोप प्रत्यारोप सिलसिला भी चल रहे चल रहा है। ऐसे में पूरे देश की नजरे बंगाल की राजनीति पर टिकी हुई हैं। यहां पर बीजेपी और टीएमसी के कार्यकर्ता भी एक दूसरे के खिलाफ हिंसक होते दिख रहे हैं। इसी हिंस के बीच ममता का जो रूप आज देश देख रहा है वो इन्होंने अभी भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ अख्तियार किया है। ममता स्कूल और कॉलेज के जमाने से ही गर्म और विद्रोही तेवर की रही हैं। तो चलिए जानते हैं कॉलेज के समय से ममता बनर्जी का सिस्टम के खिलाफ विद्रोह।
ममता का सिस्टम के खिलाफ विद्रोह
ममता बनर्जी का जन्म पश्चिम बंगाल के कोलकाता में हुआ था और वह वर्तमान में इस राज्य की मुख्यमंत्री हैं। लेकिन ममता का राजनीति से नाता स्कूल के दिनों से ही जुड़ गया था। ममता बनर्जी 70 के दशक में कॉलेज में कांग्रेस के जरिए सक्रिय राजनीति से जुड़ी। कॉलेज के दिनों में ममता छात्राओं और छात्रों की समस्या को मुख्य तौर उठाती थी।
पालन पोषण और पढ़ाई के लिए बेचना पड़ा दूध
स्वतंत्रता सेनानी स्वतंत्रता सेनानी प्रोमिलेश्वर बनर्जी की बेटी हैं। पिता की मौते के बाद अपने भाई-बहनों के पालन पोषण और अपनी पढ़ाई जारी रखने के लिए उन्हें दूध भी बेचना पड़ा था। इस परेशाने से जूझने के बाद भी ममता ने राजनीति से अपने कदम पिछे नहीं हटाए। ममता ने कलकत्ता विश्वविद्यालय से एमए की डिग्री ली। इसके बाद उन्हेंने कानून की पढ़ाई जोगेश चंद्र कॉलेज से की। इसी दौरान ममता राजनीति में हो गई और कांग्रेस ने उन्हें बंगाल में महासचिव बना दिया।
1984 में देश की सबसे युवा सांसद बनने का रिकॉर्ड
ममता बनर्जी राजनीति में और सक्रिय हुईं और बंगाल में साल 1976 से 1984 तक महिला कांग्रेस की महासचिव बनी रहीं। साल 1984 में ममता बनर्जी ने अपना पहला लोकसभा चुनाव जादवपुर लोकसभा सीट से लड़ा था। उस समय ममता के साथ चुनावी मैदान में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) के कद्दावर उम्मीदवार सोमनाथ चटर्जी थे। अपने शानदार भाषण की वजह से ममता ने युवाओं को दिल जीता और सोमनाथ चटर्जी को मात देकर सबसे युवा सांसद बनने का रिकॉर्ड अपने नाम दर्ज कर लिया।
कांग्रेस ने ममता को बनाया भारतीय युवा कांग्रेस का महासचिव
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) नेता सोमनाथ चटर्जी को जादवपुर लोकसभा सीट से मात देकर ममता ने लोकप्रिय हो गई। सीपीएम के खिलाफ बड़ी जीत और बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए कांग्रेस ने ममता बनर्जी को भारतीय युवा कांग्रेस का महासचिव बना दिया। साल 1989 में लोकसभा सीट जादवपुर से दूसरी बार चुनाव लड़ा और उन्हें मालिनी भट्टाचार्य से हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद ममता ने कोलकाता का रुख किया और यहां पर साल 1991 में दक्षिण कोलकाता सीट से सीपीएम उम्मीदवार बिप्लव दासगुप्ता के खिलाफ चुनाव लड़ा और भारी मतों से जीत हासिल की। ममता की जीत का सिलसिला 2009 तक लगातार जारी रहा।
ममता को मंत्री पद से हाथ धोना पड़ा
भारी मतो से चुनाव जीतने के बाद ममता को पहली बार केंद्र सरकार में मंत्री बनने का मौका मिला। ममता को मानव संसाधन विकास और युवा मामलों के मंत्रालय का प्रभार सौंपा गया। कुछ दिनों के बाद युवाओं के मामले को लेकर ममता की पीएम नरसिम्हा राव से मतभेद शुरू हो गए। जिसके बाद 1993 में ममता को मंत्री पद से हाथ धोना पड़ा।
ममता ने कांग्रेस पर लगाया आरोप
ममता बनर्जी ने 1996 में होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस पर सीपीएम की कठपुतली होने का आरोप लगाया। साल 1997 में ममता ने कांग्रेस पार्टी से खुद को अलग कर लिया। इसके बाद ममता बनर्जी ने एक जनवरी 1998 में अपनी नई पार्टी बनाई, जिसका नाम तृणमूल कांग्रेस था। ममता ने साल 1998 में हुए लोकसभा चुनावों में आठ सीटों पर कब्जा जमा लिया। उस समय ममता का लोहा कोलकाता से लेकर दिल्ली तक माना जाने लगा।
ममता ने एनडी और यूपीएस से जोड़ा नाता
लोकसभा चुनाव में जीत हासिल करने के बाद ममता ने अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए में शामिल होने का फैसला लिया। जब ममता एनडीए से जुड़ी तो उन्हें रेल मंत्रालय का प्रभार सौंपा गया। रेल बजट में बंगाल को ममता ने ज्यादा ट्रेन दी। जिसके बाद उनपर पक्षपाक्ष के आरोप लगा और फिर विवाद भी शुरू हो गया। ममता ने उस समय एनडीए से अलग होने का फैसला किया जब साल 2001 में हथियारों की खरीद के लिए दलाली और बीजेपी अध्यक्ष बंगारू लक्ष्मण के रिश्वत लेने का खुलासा हुआ था। एनडी से अलग होने के बाद ममता ने वर्ष 2004 का लोकसभा चुनाव लड़ा जिसमें केवल वह अपनी ही सीट बचा पाई।
ममता केंद्रीय चर्चा में आईं
ममता को साल 2005 के नगर निगम चुनाव और 2006 के विधानसभा चुनाव में हार का सामना करने पड़ा। जिसके बाद ममता राजनीतिक जमीन को हासिल करने का मौके तालाश करने लगी। साल 2006 में ममता सिंगूर प्लांट के विरोध से केंद्रीय चर्चा में आईं। उन्होंने सिंगूर में टाटा मोटर्स के प्रस्तावित कार निर्माण के परियोजना स्थल पर जाने से जबरन प्रशासन ने रोका और ममता ने सीपीएम सरकार के खिलाफ इसे राजनीतिक मुद्दा बना लिया। पूरे पश्चिम बंगाल में ममता के कार्यकर्ताओं ने धरना प्रदर्शन और हड़ताल की। ममता ने राज्य में वर्ष 2011 के विधानसभा चुनावों में मां, माटी मानुष के नारे के जरिए 34 सालों के सीपीएम सरकार को राज्य से उखाड़ फेंका दिया। ममता ने इस लोकसभा चुनाव में 294 में से 184 सीटें हासिल की थी।
ममता ने यूपीए से तोड़ा नाता
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) से नाता तोड़कर यूपीए से नाते जोड़ने वाली ममता ने नंदी ग्राम हिंसा को लेकर सितंबर 2012 को संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) से अपना समर्थन वापस ले लिया। नंदी ग्राम में स्पेशल इकोनॉमिक जोन विकसित करने के लिए गांव वालों की जमीन ली जानी थी। लेकिन गांव वाले इससे नाखुश थे उन्होंने माओवादियों के समर्थन से पुलिस की कार्रवाई का विरोध किया। इस विरोध में 13 लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था और हिंसा शुरू हो गई। ममता ने इस घटना के बाद राज्य में सीपीएम कार्यकर्ताओं के हिंसा पर रोक लगाने के लिए उसवक्त के पूर्व पीएम मनमोहन सिंह और पूर्व गृह मंत्री शिवराज पाटिल से इस पर लगाम लगाने की मांग की थी।
ममता बनर्जी को मोदी विरोध ने राष्ट्रीय नेता
2014 में मोदी सरकार बनने के बाद ममता ने एनडीए सरकार की नीतियों के खिलाफ हो गईं। ममता बनर्जी नोटबंदी और जीएसटी को लेकर लातार पीएम मोदी और अमित शाह पर हमले करती रहीं। भाजपा और टीएमसी में राजनीति संघर्ष उस समय शुरू हो गया जब भाजपा ने पश्चिम बंगाल में खुद को मजबूत करने की प्रक्रिया शुरू की। ममता बनर्जी भी पूरी ताकत से मोदी विरोध में जुट गईं और मोदी के खिलाफ विपक्ष को एकजुट करने में कोलकाता से दिल्ली को एक कर दिया।
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