अब भारत की गिरफ्त से बचकर नहीं जा सकेंगे मसूद जैसे आतंकी: अमित शाह

लोकसभा में बुधवार को मत-विभाजन के साथ विधि-विरुद्ध क्रियाकलाप (निवारण) संशोधन विधेयक 2019 (यूएपीए) को मंजूरी मिल गई है। इसके पक्ष में 287 और विरोध में 8 मत पड़े। सदन में बिल पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि इससे आतंकवाद से जुड़े मामलों में जांच करने वाली एजेंसी एनआईए को मजबूती मिलेगी। साथ ही आतंकवाद के समूल नाश के लिए जरुरी कड़े कानून की आवश्यकता की पूर्ति होगी।
इसलिए समूचे सदन को एकजुटता से किसी पार्टी की विचारधारा या दलगत राजनीति के नजरिए से नहीं बल्कि इसे आतंकवाद के जड़ से खात्मे के लिए उठाए जा रहे सरकार के अहम कदम के तौर पर देखा जाना चाहिए और एकमत से समर्थन करते हुए आतंकी संगठनों को भी कड़ा संदेश देना चाहिए। सदन में गृह मंत्री का पूरा जवाब सुने बिना कांग्रेस, डीएमके, टीएमसी, एनसीपी, आरएसपी, बीएसपी ने वॉकआउट किया।
नहीं बचेंगे मसूद जैसे आतंकी
उन्होंने कहा, इस संशोधन बिल से आने वाले वक्त में मसूद अजहर जैसे आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई करना आसान हो जाएगा। क्योंकि इसमें आतंकवाद फैलाने वाले समूह के अलावा उसके मुखिया यानि किसी व्यक्ति पर भी कार्रवाई करने का अधिकार एनआईए को मिलेगा। यह प्रावधान बिल में इसलिए शामिल किया गया है क्योंकि इतिहास में ऐसा देखने को मिला कि आतंकवाद से जुड़ी किसी भी घटना को अंजाम देने के बाद संबंधित समूह पर तो प्रतिबंध लग जाता था। लेकिन उससे जुड़े लोग किसी और नाम से दूसरा संगठन बनाकर चलाने लगते थे। आज जरूरत ऐसे लोगों का पर्दाफाश करके दुनिया के सामने उनका असली चेहरा लाने की है।
आतंकवाद व्यक्ति की मंशा में होता है न कि संस्था में। ऐसा प्रावधान अमेरिका, चीन, इजराइल, यूरोपियन यूनियन के देशों, यूएन और पाकिस्तान जैसे देशों ने भी अपने कानूनों में शामिल किया है। पूर्व में ऐसा न होने की वजह से मसूद अजहर को आतंकी घोषित कराने के लिए भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में जाकर निर्णय कराना पड़ा था। जिसमें करीब एक दशक का लंबा वक्त लगा। ऐसे ही इंडियन मुजाहिद्दीन (आईएम) के मुखिया यासिन भट्टकल के संगठन पर प्रतिबंध लगा लेकिन भट्टकल के खिलाफ कानूनी प्रावधान न होने के चलते कार्रवाई में अड़चन आई।
कांग्रेस पर साधा निशाना
गृह मंत्री ने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि जो कांग्रेस पार्टी आज एनडीए सरकार द्वारा लाए जा रहे संशोधनों का विरोध कर रही है। वही सबसे पहले वर्ष 1967 में इस बिल को संसद में पास कराने के लिए लाई थी। उस वक्त भूतपूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व में केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी। इसके बाद इसमें वर्ष 2004 के अंत से लेकर 2008 और 2013 में लाए गए तीन संशोधन भी यूपीए की सरकारों के दौर में ही आए हैं। ऐसे में आज विरोध क्यों? जबकि भाजपा पहले भी आतंकवाद के खिलाफ थी और आज भी है।
बरकरार रहेगा संघीय ढ़ांचा
इस बिल के जरिए केंद्र संघीय ढांचे को ध्वस्त नहीं करेगा। एनआईए के डीजी केवल उन्हीं मामलों की पड़ताल करेंगे जो उनके पास होंगे। राज्यों की कार्रवाई उनके स्तर पर ही चलती रहेगी। संशोधनों से एनआईए के पुलिस इंस्पेक्टर को राज्यों में जाकर मामले की जांच करने का अधिकार मिलेगा। इससे प्रशिक्षित युवा अधिकारियों में आत्मविश्वास बढ़ेगा। एनआईए एक विशिष्ट कार्यबल है, पुलिस स्टेशन नहीं है। यहां आईजी, डीआईजी, एसपी से लेकर डायरेक्टर के स्तर तक किसी मामले की जांच की समीक्षा की जाती है।
ऐसे में इंस्पेक्टर को दिए गए अधिकारों का गलत इस्तेमाल होने की संभावना नहीं है। राज्य पुलिस के जांच करते वक्त अधिकार एसपी के ही पास रहेगा। 2008-19 के बीच एनआईए में तैनात स्टाफ को लगातार प्रशिक्षण दिया गया है। आंकड़ों के हिसाब से 250 से ज्यादा मामले राज्यों में चल रहे हैं। लेकिन इनकी देखरेख के लिए पर्याप्त अधिकारी नहीं हैं। ऐसे में इंस्पेक्टर रैंक के अधिकारियों को अधिकार देना जरुरी था।
बर्दाश्त नहीं शहरी माओवाद
शहरी माओवाद के लिए काम करने वाले लोगों, सामाजिक कार्यकर्ताओं के प्रति सरकार की कोई संवेदना नहीं है। यह सामाजिक काम नहीं है। बल्कि इससे वैचारिक आतंकवाद फैलाया जा रहा है। यह सब गरीब, पिछड़े और आदिवासी लोगों को देश के खिलाफ भड़काकर उनके हाथों में बंदूकें पकड़ा रहे हैं। धारा 25 (1) में आतंकी गतिविधियों में संलिप्त व्यक्ति की संपत्ति जब्त कर ली जाएगी। लेकिन कोर्ट के आदेश पर ही उसकी कुर्की होगी। आरोपी को 24 घंटे के अंदर कोर्ट में पेश करना होगा लेकिन उसकी पुलिस रिमांड 30 दिन की होगी।
धारा 67 एफ (ए) में अगर कोई व्यक्ति कंप्युटर के जरिए आतंकवाद को बढ़ावा देगा तो उसका कंप्युटर जब्त कर एजेंसी को जांच करने का अधिकार होगा। आतंकी के अलावा जो व्यक्ति आतंकवाद बढ़ाने के लिए धन, ट्रेनिंग, साहित्य और आतंकी थ्योरी के जरिए युवाओं के मन में जहर घोलने की कोशिश करेगा। उसके खिलाफ एक्शन होगा। आतंकवाद केवल बंदूकों से नहीं, इन तरीकों से भी फैलता है। आरोपी को सरकार से अपील करने का अधिकार है। जिसकी वह रिटायर्ड हाईकोर्ट जज की कमेटी से समीक्षा करा सकती है। संतुष्ट न होने पर आरोपी कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है।
विपक्ष का वॉकआउट
विपक्षी दलों के सदस्यों ने इसके जरिए केंद्र और राज्य के बीच बनी हुई संघीय ढ़ांचे की व्यवस्था पर कुठाराघात होने का खतरा जताते हुए बिल को वापस लेकर संसद की स्थायी समिति या सेलेक्ट कमेटी को भेजने की मांग की। लेकिन जब इसका जवाब देने के लिए गृह मंत्री अमित शाह खड़े हुए तो कांग्रेस, डीएमके, टीएमसी, आरएसपी, बसपा और एनसीपी ने बिना उनकी बात सुने हुए सदन से वॉकआउट किया।
बिल पास कराने की प्रक्रिया के दौरान संशोधनों पर खंडवार विचार करते वक्त एआईएमआईएम के असासुद्दीन औेवेसी ने तीन बार मत-विभाजन की मांग रखी। जिसपर लोस अध्यक्ष ओम बिरला ने सदस्यों को इलेक्ट्रानिक वोटिंग नंबर आवंटित न होने की वजह से अपनी-अपनी जगह पर खड़े होकर हाथ उठाकर पक्ष और विरोध में जवाब देने का निर्देश दिया गया। इसमें औवेसी द्वारा प्रस्तुत संशोधन संख्या 19-20, 21 और 22 बहुमत से खारिज हो गए।
और पढ़े: Haryana News | Chhattisgarh News | MP News | Aaj Ka Rashifal | Jokes | Haryana Video News | Haryana News App
© Copyright 2025 : Haribhoomi All Rights Reserved. Powered by BLINK CMS
-
Home
-
Menu
© Copyright 2025: Haribhoomi All Rights Reserved. Powered by BLINK CMS