माधव सिंह सोलंकी के इस रिकॉर्ड को तोड़ने के लिए नरेंद्र मोदी ने झोंक दी थी पूरी ताकत, नहीं हो पाए कामयाब

माधव सिंह सोलंकी के इस रिकॉर्ड को तोड़ने के लिए नरेंद्र मोदी ने झोंक दी थी पूरी ताकत, नहीं हो पाए कामयाब
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कांग्रेस के दिग्गज नेता माधव सिंह सोलंकी का निधन आज 94 साल की उम्र में निधन हो गया है। माधव सिंह सोलंकी चार बार गुजरात के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। माधव सिंह सोलंकी भारते के विदेश मंत्री भी रह चुके हैं।

कांग्रेस ने एक महीने के अंदर अपने दो प्रतिभाशाली नेताओं को खो दिया है। ये कांग्रेस के लिए बहुत बुरा समय है। जब एक तरफ हर राज्यों में उनकी शाख गिरती जा रही है। वहीं दूसरी उनके बड़े-बड़े नेताओं का निधन हो रहा है। कांग्रेस के दिग्गज नेता माधव सिंह सोलंकी का निधन आज 94 साल की उम्र में निधन हो गया है। माधव सिंह सोलंकी चार बार गुजरात के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। माधव सिंह सोलंकी भारते के विदेश मंत्री भी रह चुके हैं। लेकिन बहुत कम लोगों को पता है कि नरेंद्र मोदी भी उनका रिकॉर्ड तोड़ नहीं पाये थे। उनकी गुजरात में जातिगत समीकरण अदभूत थी। जिसकी चर्चा आज भी की जाती है। आइये एक नजर उनकी जीवनी पर डाले और समझने की कोशिश करे की कैसे वह राजनीति के इतने बड़े ज्ञाता बने।

तत्कालीन मुख्यमंत्री मोदी ने सोलंकी का रिकॉर्ड तोड़ने के लिए झोंक दी थी पूरी ताकत

2012 के गुजरात विधानसभा से पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी अपने नेताओं के साथ बैठक कर रहे थे। उनकी प्रधानमंत्री पद के लिए उम्मीदवारी का सारा दारोमदार इसी चुनाव पर था। उन्होंने पार्टी के वरिष्ठ सदस्यों से कहा कि इस बार हमें किसी भी हालत में माधव सिंह सोलंकी का रिकॉर्ड तोड़ना है। हालांकि इस चुनाव में बीजेपी को स्पष्ट बहुमत मिला था लेकिन वो रिकॉर्ड नहीं तोड़ पाए। यह रिकॉर्ड था 1985 के विधानसभा चुनाव का। 1985 में खाम का करिश्मा बरकरार रहा। कांग्रेस ने माधव सिंह सोलंकी के नेतृत्व में 182 में से 149 सीट जीतकर नया कीर्तिमान स्थापित किया। कुछ राजनीतिक विश्लेषक इस जीत में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद पैदा हुई सहानुभूति को भी जिम्मेदार मानते हैं। माधव सिंह सोलंकी ने 11 मार्च के रोज तीसरी बार मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली।

1980 में पहली बार बने थे मुख्यमंत्री

1980 के चुनाव से पहले ही माधव सिंह सोलंकी ने अपने मुख्यमंत्री बनने का रास्ता साफ़ कर लिया था। माधव सिंह सोलंकी की इस बहुकोणीय सत्ता संघर्ष में जीते कैसे? यहां उन्हें फायदा मिला संजय गांधी और इंदिरा गांधी की करीबी का। हालांकि योगेंद्र मकवाना भी संजय के काफी करीब थे लेकिन वो काफी जवान थे। इस वजह से उनकी छंटनी हो गई। दरअसल माधव सिंह सोलंकी चुनाव से पहले ही अपने मुख्यमंत्री बनने की बिसात बिछा चुके थे। वो प्रदेश कांग्रेस कमिटी के अध्यक्ष थे। ऐसे में टिकट वितरण में उनकी काफी चली। सोलंकी ने अपने 80 के लगभग समर्थकों को टिकट बांटी। कांग्रेस की लहर में करीब-करीब सभी जीतकर आए। इससे उनकी दावेदारी सबसे मजबूत हो गई।

जब इंदिरा गांधी ने माधव सिंह सोलंकी को दिया था ये आदेश

1980 के लोकसभा चुनाव में उस समय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी चुनाव प्रचार के लिए गुजरात आई हुई थीं। मैं उनके पास लोकसभा चुनाव के उम्मीदवारों के नाम पर मंजूरी लेने के लिए पहुंचा। उन्होंने मेरे सुझाए सभी 26 नामों पर सहमति जताई। इसके बाद मैंने उनसे शिष्टाचारवश पूछ लिया कि मैडम और कोई आदेश। उन्होंने मुझसे कहा कि देखो हरिजन, आदिवासी, पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक और महिलाएं कांग्रेस का सबसे बड़ा जनाधार हैं। इसको अच्छी तरह से जुटाए रखना। जिसके बाद माधव सिंह सोलंकी ने कहा था कि उन्होंने कभी खाम शब्द का इस्तेमाल नहीं किया लेकिन इस समीकरण का खूब इस्तेमाल किया। दरअसल यह सिर्फ माधव सिंह सोलंकी की उपज नहीं था। 1969 में केंद्र की तर्ज पर सूबे में भी कांग्रेस दो फाड़ हो गई। उस समय सूबे में कांग्रेस की सरकार थी। मोरारजी देसाई के नेतृत्व में गुजरात कांग्रेस का बड़ा धड़ा कांग्रेस (ओ) में बना रहा। सूबे में इसका नेतृत्व हितेंद्रभाई देसाई कर रहे थे। उस समय कांतिलाल घिया के नेतृत्व में पांच विधायकों ने कांग्रेस (ओ) से बगावत कर इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस (आर) ज्वॉइन कर ली थी।

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