महाराष्ट्र: रिपोर्ट में दावा- तीन वर्षों में कुपोषण के 15000 से अधिक केस मिले, सामने आईं चौंकाने वाली जानकारी

महाराष्ट्र: रिपोर्ट में दावा- तीन वर्षों में कुपोषण के 15000 से अधिक केस मिले, सामने आईं चौंकाने वाली जानकारी
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मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता की अगुवाई वाली पीठ महाराष्ट्र के मेलघाट के आदिवासी जिलों में कुपोषण के उच्च मामलों के बारे में जनहित याचिकाओं (पीआईएल) पर सुनवाई कर रही है।

महाराष्ट्र (Maharashtra) के 16 जिलों में बच्चों में कुपोषण के करीब 15 हजार 253 मामले सामने आए हैं। इन जिलों में कुपोषण (Malnutrition) के कारण तीन वर्षों में 6,582 बच्चों की मौत हुई है। जिनमें से 601 मामलें ऐसें हैं जिनमें कुपोषण के शिकार कई बच्चों की मां नाबालिग (Minors) थीं। यानी उनका बाल विवाह हुआ था। इसका खुलासा उस रिपोर्ट से हुआ है जिसे एडवोकेट जनरल आशुतोष कुंभकोनी (Advocate General Ashutosh Kumbhakoni) ने बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) में पेश किया है।

मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता की अगुवाई वाली पीठ महाराष्ट्र के मेलघाट के आदिवासी जिलों में कुपोषण के उच्च मामलों के बारे में जनहित याचिकाओं (पीआईएल) पर सुनवाई कर रही है। पिछली सुनवाई के दौरान, पीठ को बताया गया था कि बाल कुपोषण से होने वाली मौतों का एक कारण बाल विवाह की उच्च दर थी। अदालत ने जिला मजिस्ट्रेट और जिला कलेक्टर को 16 आदिवासी जिलों का दौरा करने और बाल विवाह की उच्च घटनाओं के कारणों का पता लगाने के लिए कहा था। महाराष्ट्र सरकार ने इसके लिए तीन लोगों को नियुक्त किया था, जिन्होंने अब अपनी रिपोर्ट सौंप दी है।

महाराष्ट्र के इन 16 जिलों में कुपोषण के कारण 2019-20 से 2021-22 तक तीन वर्षों में 6,582 बच्चों की मृत्यु हुई। जिनमें से 601 मामलों में माता-पिता बाल विवाह के शिकार थे और उनकी मांए नाबालिग थीं। पिछले तीन वर्षों में कुपोषण के कारण मरने वाले बच्चों की कुल संख्या में से 5,031 अनुसूचित जनजाति (एसटी) के थे।

रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले तीन वर्षों में गंभीर तीव्र कुपोषण (एसएएम) के 26, 059 मामले सामने आए, जिनमें से 20,293 मामले एसटी समुदाय के थे। इसके अलावा, मध्यम तीव्र कुपोषण (एमएएम) के 1,10,674 मामले सामने आए, जिनमें से 79,310 एसटी समुदाय के थे। एसएएम के 3,000 मामलों में बच्चों की मां नाबालिग थीं। एमएएम के मामलों में यह संख्या 11,652 थी। जिन अन्य स्थानों से कुपोषण के मामले सामने आए उनमें नंदुरबार, अमरावती, नासिक, ठाणे, पालघर और गढ़चिरौली शामिल हैं।

नंदुरबार जिले में कुपोषण के कारण हुई 1,270 बच्चों की मौत में से 137 मामलों में बच्चों की मां नाबालिग थीं। अमरावती जिले में जहां मेलघाट स्थित है, 729 मौतों में से 75 मामलों में माताएं नाबालिग थीं। गढ़चिरौली जिले में 704 मौतें हुईं, जिसमें 465 मामले एसटी समुदाय के थे, जिनमें से 88 मामले मां के नाबालिग होने के थे। इन दिमाग को झकझोरने वाले आंकड़ों को देखते हुए अदालत ने कहा, आदिवासी समुदाय में प्रचलित बाल विवाहों की उच्च संख्या के संबंध में सरकार के लिए वास्तव में ऐसे समुदायों में बुजुर्गों को जागरूक करने और उन्हें बीमार होने के बारे में जागरूक करने की जरूरत है।

पीठ ने आगे कहा कि हम आशा और विश्वास करते हैं कि सरकार कानून के प्रावधानों को उचित रूप से लागू करने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी। जिसका उपयोग बच्चों, विशेष रूप से आदिवासी समुदायों में लड़कियों के लाभ के लिए किया गया है। अदालत ने याचिकाकर्ताओं से सरकारी रिपोर्टों का जवाब देने और सुझाव देने को कहा है। साथ ही कोर्ट ने मामले को आगे की सुनवाई के लिए 20 जून की तारीख तय की है।

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