Mahatma Gandhi Jayanti 2020: महात्मा गांधी ने क्यों नहीं की थी भगत सिंह की फांसी रोकने की कोशिश

Mahatma Gandhi Jayanti 2020: महात्मा गांधी अहिंसावादी विचारधारा के थे, जबकि भगत सिंह उनके विचारधारा के बिल्कुल विपरीत थे। हालांकि दोनों अपने-अपने तरीके से देश की सेवा कर रहे थे। देश को अंग्रेजों के चंगुल से छुड़ाते-छुड़ाते भगत सिंह फांसी के फंदे तक पहुंच गए।
लेकिन दुख इस बात का था कि महात्मा गांधी ने भगत सिंह के फांसी का विरोध तक नहीं किया। ऐसे में उनके खिलाफ युवाओं ने विरोध-प्रदर्शन शुरू कर दिया था। काला झंड़ा दिखाकर उनके खिलाफ नारेबाजी भी की गई। बता दें कि ऐसा माना जाता था कि अगर महात्मा गांधी विरोध करते तो भगत सिंह के साथ-साथ राजगुरू और सुखदेव की भी फांसी रूक जाती। हालांकि ऐसा नहीं हुआ।
भगत सिंह और महात्मा गांधी की विचारधारा में था जमीन-आसमान का फर्क
महात्मा गांधी अहिंसावादी विचारधारा के थे। उनका मानना था कि अगर कोई एक गाल पर थप्पड़ मारे तो दूसरा गाल आगे कर दो। तुम हाथ मत उठाओ। वहीं भगत सिंह थप्पड़ के बदले में हाथ तोड़ने वाली विचारधारा से थे। हालांकि उनकी ये विचारधारा विशेषत: अंग्रेजों के खिलाफ थी। उनका मानना था कि अंग्रेजों ने देशवासियों पर काफी जुर्म कर लिया है। अब आंख के बदले आंख की विचारधारा से ही अंग्रेजों को देश से भगाया जा सकता है।
1931 में जब भगत सिंह को फांसी दी गई थी, तो महात्मा गांधी के खिलाफ कई प्रदर्शन हुए। कांग्रेस के कराची अधिवेशन में लोगों ने महात्मा गांधी के खिलाफ काला झंडा दिखाकर अपनी नाराजगी जाहिर की। उस समय युवाओं के दिल की धड़कन थे भगत सिंह। महात्मा गांधी के द्वारा उनकी फांसी का विरोध न करने पर गांधी जी को भारी विरोध का सामना करना पड़ा।
महात्मा गांधी ने की थी फांसी रोकने की कोशिश
महात्मा गांधी को पता था कि भगत सिंह उनकी विचारधारा के बिल्कुल विपरीत हैं। लेकिन उन्हें ये भी पता था कि दोनों का मकसद एक था। बताया जाता है कि महात्मा गांधी को जब भगत सिंह के फांसी की खबर मिली तो वो काफी दुखी हुए। काफी देर तक महात्मा गांधी मौन हो गए थे। महात्मा गांधी ने 'My Life is My Message' किताब में लिखा है कि उन्होंने 23 मार्च 1928 को वायसराय इरविन को एक पत्र लिखा था।
इसमें उन्होंने लिखा था कि मुझे पहले ही बता दिया गया है कि मैं भगत सिंह और उनके साथियों की फांसी की सजा में हस्तक्षेप न करूं। लेकिन शांति के लिए एक अंतिम प्रयास जरूरी है। कल डा सप्रू मुझसे मिले और बताया कि आप इस मामले में कोई रास्ता निकालने पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं। ऐसे में फांसी की सजा रोकने पर विचार किया जा सकता है, तो मेरा अनुरोध है कि सजा को वापस ले लिया जाए। विचार करने के बाद ही इस फैसले पर आगे बढ़ा जाए। उन्होंने आगे लिखा था कि मुझे आने की जरूरत होगी तो मैं जरूर आऊंगा। कृपया दया करें, क्योंकि दया कभी बेकार नहीं जाती।
इस पत्र से ये तो यकीन हो जाता है कि भगत सिंह को फांसी की सजा से बचाने के लिए महात्मा गांधी ने पूरी कोशिश की थी। साथ ही भगत सिंह और उनके साथियों की फांसी की सजा से महात्मा गांधी को कितना दर्द हुआ, ये भी इस पत्र से साफ पता लगता है।
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