जम्मू-कश्मीर के बाद अब ये होगा मोदी सरकार का अगला मिशन

जम्मू-कश्मीर के मुद्दे से जुड़े पाक अधिकृत कश्मीर पर गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में बोला कि कि मैं जब जम्मू-कश्मीर की बात करता हूं तो इसमें पीओके और अक्साई चिन भी शामिल हैं। इन्हें प्राप्त करने के लिए हम अपने प्राण भी न्यौछावर करने को तैयार है। शाह ने यह स्पष्टीकरण कांग्रेस नेता अधीररंजन चैधरी के उस विवादित बयान पर दिया, जिसमें उन्होंने कहा था कि कश्मीर मुद्दे की निगरानी जब संयुक्त राष्ट्र कर रहा है तो यह मामला आंतरिक कैसे रह गया?
दरअसल इस समय कांग्रेस की हालत खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे जैसी हो रही है। इसलिए कांग्रेस ने उस मुद्दे को बेवजह उठा दिया, जो प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्यकाल में शिमला समझौते के परिप्रेक्ष्य में ही खत्म हो गया था। जम्मू-कश्मीर राज्य पुनर्गठन विधेयक के पारित होने के साथ धारा-370 के खात्मे के बाद अब जरूरत तो यह है कि पीओके को पाक अधिकृत कश्मीर मानने की बजाय, पाक अधिकृत जम्मू-कश्मीर कहा जाए।
यह भारत का हिस्सा है, जिस पर पाकिस्तान ने अवैध कब्जा कर लिया है। भारत की आक्रामकता जरूरी है, क्योंकि बौखलाया पाकिस्तान कश्मीर में अराजकता फैलाने में पूरी ताकत लगाएगा। वैसे भी अब प्रधानमंत्री मोदी के 56 इंची नेतृत्व ने तय कर दिया है कि राख के नीचे दबी जिस चिंगारी पर पाक बैठा है, यदि उसे भूल से भी भड़काने की कोशिश की तो उसका दामन भी खाक हो जाएगा।
हालांकि संसद में हुई इस बेवाक चर्चा से यह पैगाम पूरी दुनिया में चला गया है कि पीओके समेत संपूर्ण कश्मीर भारत का अभिभाज्य अंग है। इस मुद्दे पर पीवी नरसिंह राव सरकार ने भी कड़क रुख अपनाया था। तब इस सरकार ने भारतीय संसद में बाकायदा इस मकसद का प्रस्ताव पारित किया था कि पाक अधिकृत कश्मीर के साथ वह भू-भाग जो पाक ने चीन को बेच दिया है, अर्थात अक्साई चिन भी हमारा है।
नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद लाल किले की प्राचीर से कड़े लहजे में पाकिस्तान को सीधा संदेश देेते हुए कहा था कि उसके कब्जे वाले कश्मीर, गिलगिट और ब्लूचिस्तान में जो अमानवीय अत्याचार हो रहे हैं, वे बर्दाश्त से बाहर हैं। पीओके और ब्लूचिस्तान पाक के लिए बहिष्कृत क्षेत्र हैं। पीओके की जमीन का इस्तेमाल वह, जहां भारत के खिलाफ शिविर लगाकर गरीब व लाचार मुस्लिम किशोरों को आतंकवादी बनाने का प्रषिक्षण दे रहा है, वहीं ब्लूचिस्तान की भूमि से खनिज व तेल का दोहन कर अपनी आर्थिक स्थिति बहाल किए हुए है।
अकेले मुजफ्फराबाद में 62 आतंकी शिविर हैं। यहां के लोगों पर हमेशा पुलिसिया हथकंडे तारी रहते हैं, महिलाओं को वोट का अधिकार नहीं है, उन्हें जबरन वैश्यावृत्ति के धंधों में धकेल दिया जाता है, नौजवानों के पास रोजगार नहीं हैं। 40 फीसदी आबादी गरीबी रेखा के नीचे है। 88 प्रतिशत क्षेत्र में पहुंच मार्ग नहीं हैं। बावजूद पाकिस्तान पिछले 72 साल से यहां के लोगों का बेरहमी से खून चूसने में लगा है।
जो व्यक्ति अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाता है, उसे सेना, पुलिस या फिर आइएसआई उठा ले जाती है। दूसरी तरफ पीओके के निकट खैबूर पख्तूनख्वा प्रांत और कबाइली इलाकों में पाक फौज और तालिबानियों के बीच अकसर संघर्ष जारी रहता है, इसका असर गुलाम कश्मीर को भोगना पड़ता है। नतीजतन यहां खेती-किसानी, उद्योग-धंधे, शिक्षा-रोजगार और स्वास्थ्य-सुविधाएं तथा पर्यटन सब चौपट हैं। गोया यहां के लोग भारत की ओर ताक रहे हैं।
ब्लूचिस्तान ने 72 साल पहले हुए पाक में विलय को कभी स्वीकार नहीं किया। पाक की कुल भूमि का 40 फीसदी हिस्सा ब्लूचिस्तान में है। पाक और ब्लूचिस्तान के बीच संघर्ष 1945, 1958, 1962-63, 1973-77 में होता रहा है। 77 में पाक द्वारा दमन के बाद करीब 2 दशक तक शांति रही। 1999 में परवेज मुशर्रफ सत्ता में आए तो उन्होंने बलूच भूमि पर सैनिक अड्डे खोल दिए। इसके बाद यहां कई अलगाववादी आंदोलन वजूद में आ गए।
लिहाजा यहां अलगाव की आग निरंतर सुलग रही है। 2001 में यहां 50 हजार लोगों की हत्या पाक सेना ने कर दी थी। इसके बाद 2006 में 20 हजार सामाजिक कार्यकर्ताओं को अगवा कर लिया गया, जिनका आज तक पता नहीं है। 2015 में 157 लोगों के अंग-भंग किए गए। पिछले 17 साल से जारी दमन की इस सूची का खुलासा एक अमेरिकी संस्था गिलगिट-ब्लूचिस्तान नेशनल कांग्रेस ने किया है। कश्मीर और ब्लूचिस्तान में लोगों पर होने वाले जुल्म एवं अत्याचार के बाबत पाक को दुनिया के समक्ष जवाब तो देना ही होगा, उसे भारत के जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश का हिस्सा मानते हुए मुक्त भी करना होगा?
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