Mothers Day Speech In Hindi : हिंदी में मदर्स डे पर भाषण

Mothers Day Speech In Hindi : हिंदी में मदर्स डे पर भाषण
X
Mothers Day Speech In Hindi : मदर्स डे 2019 (Mother's Day 2019) में 12 मई 2019 (12 May) को है। ऐसे में अगर अगर आपको मदर्स डे भाषण (Mothers Day Speech) लिखना है तो हम आपके लिए (प्रोफ़ेसर नेहा) द्वारा लिखित सबसे बेस्ट मदर्स डे पर भाषण हिंदी में (Mothers Day Speech in Hindi) लाए हैं। मदर्स डे (Mother's Day) के इस भाषण को आप आप स्कूल, कॉलेज, दफ्तर या किसी मंच पर पढ़ सकते हैं। गूगल ट्रेंड (Google Trend) में भी मदर्स डे पर कविता (Mother's Day Poem), मदर्स डे कोट्स (mothers day quotes) और मदर्स डे शायरी (mothers day shayari) खूब ट्रेंड में है। लेकिन इस बार हम आपके लिए मातृ दिवस पर भाषण लाए हैं जो आपके लिए बहुत यूजफुल हो सकता है।

Mothers Day Speech In Hindi : मदर्स डे 2019 (Mother's Day 2019) में 12 मई 2019 (12 May) को है। ऐसे में अगर अगर आपको मदर्स डे भाषण (Mothers Day Speech) लिखना है तो हम आपके लिए (प्रोफ़ेसर नेहा) द्वारा लिखित सबसे बेस्ट मदर्स डे पर भाषण हिंदी में (Mothers Day Speech in Hindi) लाए हैं। मदर्स डे (Mother's Day) के इस भाषण को आप आप स्कूल, कॉलेज, दफ्तर या किसी मंच पर पढ़ सकते हैं। गूगल ट्रेंड (Google Trend) में भी मदर्स डे पर कविता (Mother's Day Poem), मदर्स डे कोट्स (mothers day quotes) और मदर्स डे शायरी (mothers day shayari) खूब ट्रेंड में है। लेकिन इस बार हम आपके लिए मातृ दिवस पर भाषण लाए हैं जो आपके लिए बहुत यूजफुल हो सकता है।

मदर्स डे पर भाषण (Mother Day Bhashan / Mother's Day Speech)

मातश्री, माता जी से मम्मी और ममा का सफर खासा लंबा है। किसी भी दौर में मां की ममतामयी तासीर नहीं बदली पर उसकी तस्वीर जरूर बदलती रही।

मेरे पास माँ है... तेरी सूरत से अलग भगवान की सूरत क्या होगी, मेरी मां... जिसकी मां ने बाघ ब्याया हो, जिसने मां का दूध पिया हो वह सामने आये... जैसे संवादों और जैसे भावनात्मक गानों तथा ललकारू बयानों से क्या अलग हमने कभी इस बात के बारे में भी चिंतन किया है कि मां के बारे में इससे इतर भी देखा, सोचा जाना जरूरी है। मसलन, आपके दादी या नानी मां और आपके नाती पोतों या होने वाले नाती पोतों की दादी या नानी मां यानी मां की सामाजिक हैसियत और भूमिका में क्या फर्क है या कैसी हो सकती है।

हां, आप इस आधार पर यह भी कल्पना कर सकते हैं कि आपके नाती पोतों के बहुओं की स्थिति एक मां के रूप में कैसी हो सकती है? ब्रिटेन में मातृत्व या नवजात के लालन पालन के क्षेत्र या चाइल्डकेयर के लिये किये जाने वाली किसी मां की सेवा का मोल लगाया है, वहां इसे कम से कम चार अरब पौंड के बराबर का समझा गया है। क्या यह मूल्य ज्यादा है या इसका भाव कम हुआ है? बढा है अथवा यह अनमोल है? इस बावत भी कभी कुछ विचारा है?

मां की भावनात्मक श्रेष्ठता, महानता के गुणगान खूब किये गये, देवी बनाया, बताया गया पर बदलते वक्त के साथ उसकी परिवर्तित होती स्थितियों, मुश्किलों और सहूलियतों के बारे में खास बहस मुबाहिसा कम ही हुआ। क्या किसी ने व्यापक सर्वेक्षण के जरिये यह जानने की कोशिश की है कि मानवता की अगली संतति को सुरक्षित और संरक्षित रखने, विकसित करने वाली मां को विकास से क्या हासिल हुआ या फिर उससे उसको क्या दुष्परिणाम झेलने पड़े।



समाज ही नहीं मनुष्यता का भविष्य निर्धारित करने वाली मां के चेहरे और चरित्र का भूत, भविष्य और वर्तमान क्या है? कौन सा दौर ऐसा था जिसके बारे में मांएं यह कह सकती हैं कि यह दौर माओं के लिये सबसे माकूल और मुफीद रहा? अपने देश में आजादी से पहले वाली मां और अब की मां की सूरत किस कदर बदली है? बदलती और विकसित होती तकनीकि, शिक्षा ,सुविधायें, लालन पालन की बदलती जरूरतों ने परिवार में मां की भूमिका का रूप स्वरूप, किस कदर बदल दिया है? मां का महिमा मंडन सत्य है पर इसके साथ उससे जुड़े इन महत्वपूर्ण मसलों पर सोचा जाना भी आवश्यक है।

वाराणसी में रहने वाली 87 वर्षीय रामरती के बड़े बेटे आज 70 साल के हैं। आजादी से ठीक पहले पहली बार मां बनी रामरती के अनुसार उनके बेटे के बेटे की बहू जिसने अभी अभी मां की भूमिका में प्रवेश किया है, उसे देखकर लगता है कि हमने जो सफर कभी तपती धूप या कड़कती बिजली, घनघोर बारिश में पैदल तय किया वह दूरी यह एक आरामदेह कार में बैठकर तय कर रही हो।

मां बनने, होने के कुछ तकाजे हैं वे तो पूरे ही करने होंगे पर मां बनने की बाकी सारी जिम्मेदारियां पहले के मुकाबले बहुत आसान हैं। यह अलग बात है कि कानपुर के फेथफुल गंज में रहने वाली 55 वर्षीया आशा देवी इस तर्क को विनम्रता से खारिज करती हैं। महक के अनुसार 'तब की बात और थी।' यह बात सही है कि आज की तरह बहुत सी सुविधाएं तब विकसित नहीं हुईं थीं पर नईबनी मां को सहायता देने के लिये न सिर्फ संयुक्त परिवार के सदस्य आपस में मदद करते थे बल्कि रिश्तेदारी में से बुआ, चाची, ननद भी चली आती थीं।

कुछ महीनों के बाद बच्चा हाथों हाथ कैसे पल बढ़ गया पता ही नहीं चलता था। अब कौन किसकी सहायता कर सकता है सभी दूर दूर और अपने में बिजी हैं। यह सपोर्ट सिस्टम ही खत्म हो गया तो सही मायने में उचित लालन-पालन के क्षेत्र में नयी मां की परेशानियां पुराने दौर से हमारे समय में ज्यादा है। बिहार से दिल्ली आईं मिल्की मिश्रा 28 की उम्र में पहली बार मां बनीं, बेटा दो साल का है।

पति रांची से हैं जो शादी से पहले दिल्ली में नौकरी करते थे। मिल्की का दर्द यह है कि जब वह मां बनी तो दिल्ली में बस जान पहचान के कुछ लोग ही उसके पास थे। उनकी मां राची के गांव में थी और मेरी मां मधुबनी में। कोई नहीं आ सका, जो भी दिशा निर्देश मिले मोबाइल पर जबकि हमने तो यही जाना है कि मां के लिये उसकी मां से संपर्क, संबंध और सीख जरूरी है।



माएं अपने बचपन और दूसरे के लालन पालन के अनुभव तथा अपनी मां से यह गुर सीखती हैं, पर हम संयुक्त परिवार में न रहने तथा अपने अपने माता पिता से दूर होने के चलते इनसे महरूम रहे। यह सही हैं कि मांओं का अपनी मां के घर जाना या उनसे लगातार का सीधा संपर्क कम हो गया है। मां भी बेटियों के वहां कम ही जाती हैं। हो सकता है संयुक्त परिवार में यदि मां ओहदे में छोटी है तो उसे अत्याधिक सेवा टहल और श्रम करना पड़े पर लालन-पालन के लाभ के कुछ दूसरे पहलू उसके हक में होते थे।

परिवारिक विघटन का सबसे ज्यादा खामियाजा मांओं और बुजुर्गों को ही उठाना पड़ रहा है। मदर सपोर्ट नेटवर्क में इसका बड़ा घाटा हुआ है। बीते दशकों में आम भारतीय परिवार का ढांचा बदला है। इस नये सामाजिक, पारिवारिक परिवेश में मां की भूमिका भी बदली है। अब ऐसे परिवार बेतहाशा बढे़ हैं जो मूलतः कहीं और के हैं और अपना शहर, परिवार छोड़कर दूसरे शहर आकर बसे हैं जिसमें माता-पिता और एक दो बच्चे हैं।

इन बच्चों में पर्याप्त अंतर है जबकि पहले दो बच्चे के बीच अंतर न होने के चलते मांओं को एक ही वक्त में कई बार तो तीन से अधिक आश्रित बच्चे पालने होते थे। अब तो एक ही बच्चे का चलन बढ़ गया है या कम से कम एक बार में एक ही बच्चे का ख्याल रखना होता है। इसके अलावा एक सबसे सकारात्मक बात यह हुई है कि पुरुष साथी या पति का सहयोग बढ़ा है।

फैजाबाद की 67 वर्षीया कुसुम्बी पाठक कहती हैं, ' पिता की भूमिका तब लालन पालन में एक प्रतिशत से ज्यादा नहीं थी। वे लोकलाज के चलते अपने बच्चे को दुलारते हुये उसे बाहर ले जाकर खेला भी नहीं सकते थे। लोग इसे ओछापन मानते, पर आज देखती हूं, पिता मां की सभी भूमिका में पूरी सहायता करता है। मैं तो कहती हूं चैथाई से भी ज्यादा काम वही निबटा देते हैं।

आज पुरुष बच्चे के साथ खेलने उन्हें खिलाने, पिलाने और तमाम काम के साथ साथ घर के भी कई कामों में सहायता करते हैं'। निस्संदेह यह एक वैश्विक तौरपर उभरने वाला सकारात्मक ट्रेंड है। पति के अलावा किसी मां का सबसे बड़ा सहयोगी कोई बना है तो विज्ञान और तकनीक विकास। उसने मां के मूल कर्तव्य, कामकाज पर बेहद असर डाला है।

1930 से 1970 के बीच आये फ्रिज, वैक्यूम क्लीनर, वाशिंग मशीन, टंबलर ड्रायर, बढ़िया किस्म के डिटरजेंट, ओवन, गैस चूल्हा ही नहीं बिना पिन वाले नैपी, डायपर, रेडीमेड बेबी फूड, फूड प्रोसेसर्स, पिसे मसाले, कुकर, रेडी टू इट फूड और इंटरनेट ऐसे ही कई दर्जन सुविधाओं और नायलॉन, टेफ्लॉन, स्टेनलेस स्टील और प्लास्टिक के नये अवतारों ने नयी मां की सूरत ही बदल दी है।



हर वक्त चरघिन्नी सी घर, रसोई, की साज संभाल में लगी रहने वाली मां को इसका बड़ा सहारा मिला है। पति जो औसतन हर दिन महज 10 मिनट की सहायता लालन पालन में करते थे वह आंकड़ा घंटे भर से ऊपर पहुंच गया है। मां के पास समय बचा है पहले के मुकाबले तकरीबन दूना, क्वालिटी टाइम लालन-पालन में निवेश कर पा रही हैं और अपने लिये भी समय निकाल रही हैं जिसे आजकल 'मी टाइम' के नाम से जाना जाता है।

आज माएं पहले के मुकाबले ज्यादा परिपक्व हैं। युवतियां देर में शादी कर रही हैं वे शिक्षित और बहुधा कामकाजी हैं। उसके बाद मां बनने से पहले पूरी योजना और रणनीति तय करने में भी वक्त लग रहा है। यह कम उम्र मां बनने से बेहतर तो है पर ज्यादा उम्र में उनका मां बनना कई तरह की परेशानियां भी ला रहा है। लिव इन रिलेशन, सिंगल मदर की संख्या बढ़ी है तो अब मां के लिये और बच्चे के लिये भी इन दिक्कतों से जूझती मां का एक अलग ही चेहरा है।

नोएडा की जोनाकी का ऑफिस दिल्ली में है। घर में पति और डेढ़ साल के बेटे के अलावा रिटायर्ड ससुर और सास भी हैं। उनके अनुसार, 'हम रोज दो शिफ्ट में काम करते हैं और वीकेंड में ओवर टाइम। पहला शिफ्ट दफ्तर और उसके बाद घर और बच्चे का लालन पालन। सप्ताहांत में पूरे घर की सफाई और दूसरे काम काज।' रिद्धिमा एक पोर्टल में टेक्निकल सपोर्ट स्टाफ में काम करती हैं।

वे सिंगल मदर हैं, पति के बजाए एक आठ साल की बेटी उनके साथ है। रिद्धिमा को किसी की सहायता नहीं मिल रही जिसके कारण बेटी को पालन मुश्किल तो पड़ रहा है पर वह इस काम को बखूबी और बहादुरी से अंजाम दे रही हैं। इसी तरह दिल्ली के मालवीय नगर में रहने वाली 29 वर्षीय निकिता चार साल से लिव इन रिलेशनशिप में हैं। दोनो के परिवार वालों ने उनसे नाता तोड़ रखा है।

बेटे को पाल पोसकर दो बरस का तो कर दिया पर बड़े पापड़ बेलने पड़े। हां, सोशल नेटवर्किंग और इंटरनेट ने हम कामकाजी व्यस्त अभिभावकों का बड़ा साथ दिया। कल्पना कीजिये और नहीं तो पांच दशक कोई पुरानी फिल्म देखिये, बेटे पर बलि बलि जाती, बेटी पर बरसती, बरसती पर भावना का सागर समेटे सीधी साधी मजबूर सी मां।

वह मां जो पूरी तरह से बेटे या पिता पर निर्भर और सामाजिक संस्कारों, सास ससुर से दबी हुई और फिर आजादी के पांच दशको बाद वाली मां देखिये, आत्म विश्वासी, शिक्षित, बच्चे के लालन-पालन को पारिवारिक दायित्व में सर्वोपरि समझने वाली पर साथ ही संतुलन बिठाने वाली मां और अब कामकाजी, आर्थिक आत्मनिर्भर, अधिकारों के प्रति सचेत, पति से सहयोग प्राप्त और अपने बेटे बेटियों की दोस्त सरीखी मां जिसकी चाहत संतान के साथ साथ जवान हैं। यकीन न हो तोे कोई ताजा फिल्म देख लीजिये।

और पढ़े: Haryana News | Chhattisgarh News | MP News | Aaj Ka Rashifal | Jokes | Haryana Video News | Haryana News App

Tags

Next Story