Mulayam Singh Yadav: मुलायम-कांशीराम ने एक नारा देकर बदल दिये थे राजनीतिक समीकरण, पढ़ें नेताजी के जबरदस्त सियासी कमबैक की कहानियां

Mulayam Singh Yadav Death: उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के संस्थापक मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav Passed Away) का 82 साल की उम्र में निधन हो गया है। बता दें कि नेता जी काफी समय से बीमार चल रहे थे और उनकी हालत में कोई खास सुधार नहीं हो रहा था, मुलायम सिंह यादव ने गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में अंतिम सांसें लीं। नेता जी उत्तर प्रदेश ही नहीं देश की राजनीति में भी एक बड़ी शख्सियत थे, उन्होंने केंद्र सरकार से लेकर यूपी में मंत्री और मुख्यमंत्री तक के पदभार संभाले थे। मुलायम सिंह यादव का जन्म 1939 में उत्तर प्रदेश के इटावा (Etawah) जिले के एक छोटे से गांव सैफई (Saifai) में हुआ था, अपने 55 साल के राजनीतिक करियर में मुलायम सिंह यादव ने कभी लोगों के दिलों पर राज किया तो कभी उनकी नेगेटिव छवि देखने को मिली थी। आज की इस खबर में हम आपको नेता जी से जुड़ी ऐसी कहानियों के बारे में बताएंगे जो आपको उनके राजनीतिक जीवन का छोटा सा नमूना पेश करेगी।
- मुलायम पर चली थी ताबड़तोड़ गोलियां, बच निकले नेता जी
1984 में मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश के लोकतांत्रिक मोर्चा के स्टेट प्रेजिडेंट थे, तारीख थी 8 मार्च 1984 जब मुलायम इटावा दौरे पर निकले थे। इस दौरान अचानक उनकी कार पर 2 बाइक सवारों ने हमला कर दिया और ताबड़तोड़ गोलियों की बरसात कर दी थी। मुलायम की कार पर 9 राउंड फायरिंग की गई थी। मुलायम की कार में बैठे एक साथ की इस हमले में मौत हो गई थी, लेकिन कहते हैं न 'जाको राखे सईंया मार सके ना कोय' इतनी गोलियां चलने के बावजूद नेताजी इस हमले में बच निकले थे। बता दें कि 1984 कि इस घटना के बाद मुलायम राजनीति में और ज्यादा मुखर हो गए, उन्होंने यूपी में जिलेवार दौरे शुरू कर दिए। अब समय कांग्रेस को पटखनी देने का था, 1989 के चुनाव में राजीव गांधी केंद्र से और एनडी तिवारी UP से बाहर हो गए थे। इसके बाद नए मुख्यमंत्री के लिए जनता दल के विधायकों की बैठक हुई, मीटिंग में मुलायम के मुकाबले चौधरी चरण सिंह के बेटे अजीत सिंह थे, लेकिन चंद्रशेखर के सहयोग से मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री (Former CM Mulayam Singh Yadav) बन गए थे।
- कारसेवकों पर हुई फायरिंग तो सत्ता से बाहर हुए मुलायम
1989 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने के बाद मुलायम सिंह यादव के राजनीतिक जीवन में बड़े उतार-चढाव आए, दरअसल 90 के दशक में सांप्रदायिक दंगे (communal riots) भड़के हुए थे। उत्तर प्रदेश में जगह-जगह बाबरी मस्जिद और राम मंदिर (Ram Mandir) को लेकर दंगे भड़के हुए थे, ऐसे में 1990 में विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने अयोध्या में बाबरी मस्जिद को गिराने के लिए कारसेवा की। जैसे ही ये कारसेवक मस्जिद के पास पहुंचे वैसे ही तत्काल सीएम मुलायम सिंह यादव ने सुरक्षाबलों को गोलियां चलाने का आदेश दे दिया था, इस गोलीबारी में 16 निहत्थे कारसेवकों की मौत हो गई थी और सैंकड़ों लोग गंभीर रूप से घायल भी हो गए थे। बाद में यह खबर सामने आई की सुरक्षाबलों की इस कार्रवाई में 28 लोगों ने अपनी जान गंवाई थी। मुलायम के इस फैसले के बाद कांग्रेस ने अपना समर्थन वापस लेने का फैसला किया था। हालांकि, कांग्रेस ऐलान कर पाती इससे पहले ही मुलायम सिंह यादव ने विधानसभा भंग करने की सिफारिश कर दी। इस घटना के बाद मुलायम सिंह यादव सत्ता से बाहर हो गए थे।
बता दें कि 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद (Babri Masjid) को कारसेवकों द्वारा गिरा दिया गया था, जिसके बाद तत्कालीन सीएम कल्याण सिंह (Kalyan Singh) को इस्तीफा देना पड़ा। उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू किया गया था, 6 महीने बाद यूपी में विधानसभा चुनाव हुए जिसमे भारतीय जनता पार्टी कि जीत तय मानी जा रही थी, लेकिन नेता जी भी किसी से कम नहीं थे। उन्होंने धुर-विरोधी बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के कांशीराम (Kanshi Ram) का समर्थन ले लिया था। उनके इस मास्टर स्ट्रोक का असर चुनावों के नतीजों पर देखने को मिला, 422 सीटों वाली विधानसभा में सपा-बसपा गठबंधन को 176 सीटें मिली। उनके सत्ता में वापसी के बाद यूपी में एक नारा बहुत चलन में आया " मिले मुलायम-कांशीराम, हवा में उड़ गए जय श्रीराम।"
- मायावती ने अपना सपोर्ट लिया वापस
सपा-बसपा के मिलान से बनी सरकार 2 साल तक तो बहुत अच्छे से चली, लेकिन 2 जून 1995 को लखनऊ (Lucknow) में गेस्ट हाउस कांड (Guest House Case) हो गया। दरअसल, मायावती की पार्टी बसपा ने मुलायम सरकार से समर्थन वापस लेने के लिए एक गेस्ट हाउस में विधायकों की बैठक बुलाई थी। मीटिंग शुरू होते ही सपा कार्यकर्ताओं ने गेस्ट हाउस में हंगामा कर दिया। यह हंगामा कब विद्रोह में बदलकर जानलेवा हो गया किसीको पता नहीं चला, इस पूरे घटनाक्रम में मायावती की जान भी खतरे में आ गयी थी। हालांकि सुरक्षाकर्मियों ने उन्हें बचा लिया, इसके बाद मायावती ने आरोप लगाया की सपा कार्यकर्त्ता उनकी जान लेना चाहते थे। इस गेस्ट हाउस में हुए विद्रोह के बाद मुलायम सिंह यादव की सरकार एक बार फिर गिर गयी थी। और मायावती (Mayawati) ने भाजपा (BJP) के समर्थन से यूपी में सरकार बनाई, इस घटनाक्रम के बाद मुलायम सिंह यादव और उनके भाई शिवपाल सिंह यादव (Shivpal Singh Yadav) के खिलाफ मुकदमा भी दर्ज किया गया था।
मुलायम न सिंह यादव जितनी बार भी सत्ता से बाहर हुए उसके बाद उनका कमबैक उतना ही तगड़ा और लाजवाब था। इस बार भी कुछ ऐसा ही हुआ, मुलायम सिंह यादव ने अपना रुख यूपी से केंद्र सरकार की तरफ बदल लिया। इसके साथ ही सपा को 1996 लोकसभा चुनाव में 17 सीटें मिली और 13 दिन के अंदर ही अटल की सरकार गिर गयी, जिसके बाद एचडी देवगौड़ा प्रधानमंत्री बने। इस सरकार में मुलायम सिंह यादव रक्षा मंत्री बन गए।
- मास्टर माइंड नेता होने के बावजूद सरकार बनाने से चूके मुलायम
2002 में हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी सबसे बड़ी पार्टियों में से एक थी, 403 सीटों पर हुए चुनाव में सपा को 143 सीटें मिलीं, इसके बावजूद भाजपा और मायावती गठबंधन ने सरकार बनाकर सपा को पछाड़ दिया था। केंद्र (Central Government) से बेदखल हो चुके मुलायम यूपी में हुई इस हार के बाद एकबार फिर राजनीति से अलग-थलग पड़ गए। लेकिन 2003 में मुलायम सिंह की बाज की नजर ने भाजपा और मायावती के बीच चल रही आंतरिक कलह को भांप लिया और इस मौके का बिल्कुल सही फायदा उठाया। भाजपा ने समर्थन वापस लिया, मायावती अपना इस्तीफा लेकर राजभवन पहुंची। तब मुलायम ने सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया, उन्होंने सीएम बनते ही मायावती के 98 में से 37 विधायकों को तोड़ लिया।
मायावती ने इन बागी विधायकों की सदस्य्ता रद्द करने की बात उठायी लेकिन अध्यक्ष ने उनकी मांग को खारिज कर दिया था। इसके बाद मामले ने हाई कोर्ट का रुख किया जब वहां बात नहीं बनी तो सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) का दरवाजा भी खटखटाया गया। इसके बाद 2007 में सुप्रीम कोर्ट ने 37 विधायकों को अयोग्य घोषित कर दिया, लेकिन तब तक मुलायम सिंह यादव की सरकार का कार्यकाल लगभग पूरा हो चुका था। मायावती की जीत हुई लेकिन उनकी इस जीत का फायदा कुछ खास मिल नहीं पाया।
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