NRC वो नहीं है जो आप समझते हैं, शुरुआत से अंत तक NRC से जुड़ी पूरी जानकारी

NRC वो नहीं है जो आप समझते हैं, शुरुआत से अंत तक NRC से जुड़ी पूरी जानकारी
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आज NRC और CAA को लेकर लोगों में भ्रम की स्थिति फैली हुई है। हम आपको बता रहे हैं कि आखिर NRC यानी नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटीजन क्या है। और इसकी झरूरत क्यों पड़ी थी। कब इसकी शुरुआत की गई थी।

देशभर में एनआरसी और सीएए को लेकर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। दिल्ली से लेकर लखनऊ तक कोई हाथों में झंडे लिए तो कोई डंडे लेकर प्रदर्शन कर रहा है। मुस्लिम समुदाय से जुड़े लोग एनआरसी के विरोध में प्रदर्शन को अपने भविष्य की रक्षा बता रहे हैं। लेकिन सीएए के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे अधिकार लोग भ्रमित हैं कि उन्हें NRC (नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटीजन) का विरोध करना है या CAA (सिटीजनशिप अमेंडमेंट एक्ट) का। कई तो सिर्फ विरोध कर रहे हैं फिर वह चाहे NRC का हो या CAA का, क्या फर्क पड़ता है। चलिए हम आपको बताते हैं कि NRC यानि नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन आखिर है क्या? और इसकी शुरुआत से लेकर अब तक कहानी और सबसे ज़रूरी सवाल इसकी ज़रूरत आखिर क्यों?

पहले समझते है कि आखिर NRC है क्या

नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन से पता चलता है कि कौन इस देश का नागरिक है और कौन नहीं। जिनका नाम इस सूचि में शामिल नहीं होता उन्हें अवैध नागरिक माना जाता है। NRC को लागू करने का उद्देश्य ही यही है कि अवैध नागरिकों की पहचान की जाए और उन्हें बाहर निकाला जा सके। मुमकिन हो तो उन्हें देश की नागरिकता दिलाकर उन्हें वैध किया जाए।

1955 में तय हुए नियम

भारत में 1955 में पहली बार नागरिकता तय करने के लिए नागरिकता कानून लाया गया। भारतीय नागरिकता कानून 1955 में नागरिकता से संबंधी नियम तय किए गए। जिनके आधार पर दूसरे देश के व्यक्ति को नागरिकता दी जा सकती है। भारतीय संविधान में अनुच्छेद 5 के 11वें पार्ट में इसके नियम तय किए गए। अनुच्छेद 5 के 11 वे नियम में पार्ट 2 में इसका विस्तृत विवरण है। नियम के तहत भारत से बाहर के दो तरह के प्रवासियों को भारत का नागरिक नहीं माना जाएगा। इसमें पहला जो फर्जी पासपोर्ट और फर्जी दस्तावेजों के आधार पर भारत में घुसा हो। इसके अलावा वीजा की अवधि खत्म होने पर भी बिना अनुमति के भारत में रूका हुआ हो।

असम समझौते में NRC की बात

1983 में नीली दंगों में हजारों लोगों की हत्या कर दी गई थी। असम में रह रहे बांग्लादेश के लोगों के खिलाफ सबसे बड़े दंगे थे। जिसके बाद केंद्र सरकार और प्रदेश सरकार ने इलीगल इमिग्रेंट डिटर्मिनेशन बाई ट्रिब्नयुल एक्ट को लागू किया। जिसके बाद हालात और खराब होते चले गए। आखिर में तत्तकालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन से समझौता करना पड़ा। जिसके तहत 1951 से 1971 तक भारत आने वाले सभी बांग्लादेशियों को भारत की नागरिकता दी गई। लेकिन वोट का अधिकार सिर्फ उन्हें दिया गया जो कि 1961 तक भारत आए थे।

आखिर NRC की ज़रूरत क्यों

एनआरसी की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि 1971 के दौरान बांग्लादेश से भारी संख्या में लोग देश में घुस गए। सबसे ज्यादा घुसपैठिए असम के अलावा पश्चिमी बंगाल में आए। जिसके बाद घुसपैठियों की पहचान कर उन्हें वहां से बाहर निकालने के लिए एनआरसी की जरुरत पड़ी। असम एनआरसी के तहत 25 मार्च 1971 के पहले से देश में रह रहे लोगों को ही भारतीय माना जाता है। इसके लिए उन्हें 1971 से पहले भारत में रहने का सबूत देना होता है। सबूत न दे पाने पर उन्हें घुसपैठिया मानकर वापस भेजने का प्रावधान है।

इन दस्तावेजों की होगी जांच

एनआरसी के तहत भारतीय नागरिता साबित करने के लिए जरुरी प्रमाण पत्र देने होंगे। जिसमें एलआईसी पॉलिसी, रेफ्यूजी रेजिस्ट्रेशन, सिटीजनशिप सर्टिफिकेट, पासपोर्ट, आधार कार्ड, जन्म का सर्टिफिकेट, लाइसेंस में से किसी एक प्रमाण पत्र का होना जरुरी है।

असम में हुई जांच

असम सरकार ने NRC पर पहली बार 31 दिसम्बर 2017 को नियम तय किए। जिसके बाद दिसम्बर 2012 नागरिक सत्यापन की प्रक्रिया शुरू की गई। भारतीय नागरिक मान्यता के लिए 3.30 करोड़ से अधिक आवेदन आए। लेकिन 1.19 लोगों को ही भारतीय नागरिक माना गया। जबकि 1.39 करोड़ लोगों की अलग-अलग स्तरों पर जांच की जा रही है। अब लोगों में एनआरसी और सीएए को लेकर थोड़ी भ्रम की स्थिति है। बहुत से लोग असम और बाकी जगहों पर हो रहे विरोध प्रदर्शन को एक ही समझ रहे हैं। लेकिन हमे उम्मीद है कि अब आपके पास NRC से जुडी सारी जानकारी है।

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