National Unity Day: जानिये सरदार वल्लभ भाई पटेल को सरदार की उपाधि क्यों और कैसे मिली?

सरदार वल्लभ भाई पटेल, जिन्हें भारत के आयरन मैन के रूप में याद किया जाता है, 31 अक्टूबर को सरदार वल्लभ भाई पटेल की 145वीं जंयती है। 2014 से हर साल 31 अक्टूबर को देश में राष्ट्रीय एकता दिवस मनाया जाता है। इस दिन लोग रन फॉर यूनिटी में भाग लेते हैं। रन फॉर यूनिटी एकता का प्रतीक है जो यह दिखाता है कि देश एक दिशा में, एक भारत, श्रेष्ठ भारत के लक्ष्य के साथ सामूहिक रूप से आगे बढ़ रहा है। सरदार वल्लभ भाई पटेल जी ने देश को ब्रिटिश सरकार के कब्जे से मुक्त करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। वल्लभ भाई पटेल जी को सरदार का खिताब दिया गया था क्योंकि उन्होंने उत्कृष्ट नेतृत्व के गुणों को चित्रित किया था। उन्होंने आम कारणों के लिए विभिन्न आंदोलनों तथा एकजुट लोगों का नेतृत्व किया था।
22 साल की उम्र में की 10वीं पास
वल्लभ भाई पटेल 31 अक्टूबर 1875 में गुजरात के नडियाड में एक जमींदार परिवार में पैदा हुए। वे अपने पिता झवेरभाई पटेल और माता लाड़बाई के चौथे बेटे थे। उनके पिता एक किसान थे। 1891 में महज 16 साल की उम्र में उनका विवाह झावेरबा से कर दिया गया। जिसके बाद वे दहयाभाई और मणिबेन पटेल नाम के दो बच्चों के पिता बने। वल्लभाई पटेल ने अपनी शुरुआती शिक्षा एक गुजराती मीडियम स्कूल में की थी। उन्होंने 22 साल की उम्र में अपनी 10वीं की परीक्षा पास की। फिर 1913 में उन्होने इंस ऑफ कोर्ट ने लॉ की पढ़ाई पूरी की। उसके बाद उन्होने गुजरात में गोधरा में लॉ की प्रैक्टिस की शुरूआत की।
1917 में खेड़ा आंदोलन में निभाई महत्वपूर्ण भूमिका
भारत की आजादी के महानायक महात्मा गांधी के प्रभावशाली विचारों से प्रेरित होकर वल्लभभाई पटेल ने छूआछूत, जातिवाद, महिलाओ के खिलाफ हो रहे अत्याचारों के खिलाफ अपनी आवाज उठाई और सामाजिक बुराई को दूर करने के लिए काफी प्रयास किए। 1917 में उन्होंने खेड़ा आंदोलन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जिसके बाद उनको सरदार की उपाधि मिली।
भारत छोड़ो आंदोलन में सरदार वल्लभ भाई पटेल की सक्रिय भागीदारी
1942 में भारत छोड़ो आंदोलन को लेकर ऐसा कहा जाता है कि शुरूआत में सरदार पटेल जी इस आंदोलन को लॉन्च करना चाहते थे। हालांकि गांधी जी ने आखिरकार भारत छोड़ो आंदोलन शुरू किया था, फिर भी पटेल जी ने अन्य कांग्रेस अधिकारियों की तुलना में आंदोलन में अधिकतम समर्थन दिया। उन्होंने गांधी जी और अन्य स्वतंत्रता सेनानियों के साथ मिलकर काम किया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि आंदोलन ने ब्रिटिश को बहुत प्रभावित किया और उन्हें देश से बाहर निकलने के लिए मजबूर कर दिया।
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