JNU में विरोध प्रदर्शन पर कोई प्रतिबंध नहीं, छात्र संघ की आपत्ति के बाद कुलपति का बड़ा बयान

JNU Protest: जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) के छात्रों द्वारा विश्वविद्यालय द्वारा जारी नए मुख्य प्रॉक्टर कार्यालय (COP) मैनुअल पर आपत्ति जताने के एक दिन बाद, कुलपति शांतिश्री धूलिपुड़ी पंडित ने बताया कि मैनुअल में शामिल सभी नियम पहले से ही लागू थे और यूनिवर्सिटी ने किसी भी मामले में जुर्माने का स्लैब नहीं बढ़ाया है। उन्होंने कहा कि यह नियम 10 सालों से लागू है। इस बात का जिक्र उन्होंने एक इंटरव्यू में किया है।
कुलपति ने दिया बयान
दिल्ली हाई कोर्ट ने प्रशासनिक ब्लॉक के 100 मीटर के दायरे में विरोध प्रदर्शन पर रोक लगा दी है। इस संबंध में अदालत में चार मामले हैं। कुलपति ने कहा कि विश्वविद्यालय में अनुशासन सुनिश्चित करने के लिए प्रॉक्टर मैनुअल लाया गया था। इससे पहले प्रॉक्टर मैनुअल हर किसी के लिए उपलब्ध नहीं था। कुलपति ने कहा कि पारदर्शिता लाने के लिए मैनुअल सभी के लिए उपलब्ध कराया गया था।
मैनुअल में क्या कहा गया था
पिछले दिनों एक मैनुअल सामने आया था, जिसमें कहा गया कि परिसर में विरोध प्रदर्शन करने पर 20,000 रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा, अगर विरोध प्रदर्शन शैक्षणिक परिसरों के 100 मीटर के भीतर आयोजित किया जाता है। साथ ही, कहा गया था कि भूख हड़ताल, धरना या अन्य विरोध प्रदर्शन करने पर छात्रों पर 20,000 रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा।
राष्ट्रविरोधी नारे लगाए जाने पर 10,000 रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा। साथ ही, इसमें कहा गया था कि पोस्टर, पंपलेट आदि में गलत भाषा का प्रयोग या जातीय-सांप्रदायिक भेदभाव करने पर 10 हजार रुपये का जुर्माना लगेगा। अधिकारियों की अनुमति के बिना परिसर में समारोह आयोजित करने पर 6000 रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा। यूनिवर्सिटी के अंदर धूम्रपान करने पर 500 रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा। शराब पीने, नशीले पदार्थ के सेवन आदि पर 8000 रुपये का जुर्माना है।
छात्र संघ ने किया विरोध
विश्वविद्यालय छात्र संघ ने इस मैनुअल का विरोध किया था और इसे आवाज दबाने की राजनीति करार दिया था। स्टूडेंट यूनियन ने बताया कि यह असहमति को दबाने के लिए विश्वविद्यालय अधिकारियों के कदम का हिस्सा था। इसका उद्देश्य छात्रों को अपने मुद्दे उठाने से भी हतोत्साहित करना है। यूनियन अध्यक्ष आइशी घोष ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि यह प्रयास उस कैंपस संस्कृति को नष्ट करने का है जिसे जेएनयू दशकों से बढ़ावा दे रहा है।
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