ज्ञानवापी विवाद के बीच ओवैसी का फिर से दावा, आज का नहीं 2700 साल पुराना है यह फव्वारा

उत्तर प्रदेश के वाराणसी (Varanasi) में ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanvapi Masjid) मामले को लेकर एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी (AIMIM chief Asaduddin Owaisi) ने एक बार फिर दावा किया है। इस बार उन्होंने न्यू यॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि ये शिवलिंग नहीं बल्कि 2700 साल पुराना फव्वारा है।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि कुछ संघी जीनियस पूछ रहे हैं कि बिजली के बिना एक फव्वारा कैसे था। इसे ग्रेविटी कहा जाता है। संभवतः दुनिया का सबसे पुराना कामकाजी फव्वारा 2700 साल पुराना है। प्राचीन रोमन और यूनानियों के पास पहली और छठी शताब्दी ईसा पूर्व के फव्वारे थे।
उन्होंने 'न्यूयॉर्क टाइम्स' का एक पुराना आर्टिकल शेयर किया और कहा कि जो 2700 साल पुराने एक फव्वारे की कहानी कहता है। इसे ओवैसी ने अपने ट्विटर अकाउंट पर शेयर किया है। ओवैसी के अलावा मुस्लिम पक्ष की तरह भी फव्वारे को लेकर दावा किया गया है। मुस्लिम पक्ष और ओवैसी ने दावा किया है कि ज्ञानवापी मस्जिद के वजुखाना में जो कलाकृतियां मिली हैं वह कोई शिवलिंग नहीं बल्कि एक फव्वारा है।
वाराणसी की जिला कोर्ट ने बीते दिनों मस्दिज के सर्वे के लिए कोर्ट कमीश्नर की नियुक्ति थी और इसे इलाहाबाद उच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती दी गई थी। जिसने 21 अप्रैल को अपील को खारिज कर दिया था। उच्च न्यायालय के 21 अप्रैल के आदेश को शीर्ष अदालत में चुनौती दी गई थी और शुक्रवार को कोर्ट ने जिला कोर्ट में केस को ट्रांसफर कर दिया। ऐसे में अब जिला कोर्ट ही इस मामले को देखेगी।
जानकारी के लिए बता दें कि पांच महिलाओं ने अदालत में याचिका दायर कर श्रृंगार गौरी मंदिर में दैनिक पूजा की अनुमति मांगी थी, जिसके बारे में दावा किया जाता है कि यह ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के अंदर स्थित है। परिसर में सर्वेक्षण और वीडियोग्राफी करने के लिए सिविल कोर्ट का आदेश बाद में अदालत द्वारा दिया गया था। विजय शंकर रस्तोगी ने दायर की याचिका में दावा किया था कि पूरा परिसर काशी विश्वनाथ मंदिर का है और ज्ञानवापी मस्जिद मंदिर परिसर का केवल एक हिस्सा है। यह भी 1991 से अदालत में लंबित है।
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