पीएम मोदी ने विजयाराजे सिंधिया के सम्मान में जारी किया 100 रुपये का सिक्का, पढ़ें पूरा भाषण

पीएम नरेंद्र मोदी ने सोमवार को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये 'राजमाता विजयाराजे सिंधिया जी' के सम्मान में विशेष स्मारक सिक्के का विमोचन किया है। बीजेपी ट्विटर के मुताबिक, इस दौरान पीएम मोदी ने अपने संबोधन में कहा कि एकता यात्रा के समय विजया राजे सिंधिया जी ने मेरा परिचय गुजरात के युवा नेता नरेन्द्र मोदी के तौर पर कराया था, इतने वर्षों बाद आज उनका वही नरेन्द्र देश का प्रधानसेवक बनकर उनकी अनेक स्मृतियों के साथ आपके सामने है। आज राजमाता जी जहां भी हैं, हम सबको देख रही हैं, हमें आशीर्वाद दे रहीं हैं। जिनका उनसे सरोकार रहा है, जिनकी वो सरोकार रही हैं, वो कुछ लोग इस कार्यक्रम में मौजूद हैं। देश में ये कार्यक्रम आज वर्चुअल रूप से मनाया जा रहा है।
विजया राजे जी ने पुस्तक में एक जगह लिखा है- एक दिन ये शरीर यहीं रह जाएगा, आत्मा जहां से आई है वहीं चली जाएगी, शून्य से शून्य में, स्मृतियां रह जाएगी, अपनी इन स्मृतियों को मैं उनके लिए छोड़ जाऊंगी, जिनसे मेरा सरोकार रहा है, जिनकी मैं सरोकार रही हूं। स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर आजादी के इतने दशकों तक, भारतीय राजनीति के हर अहम पड़ाव की वो साक्षी रहीं।
आजादी से पहले विदेशी वस्त्रों की होली जलाने से लेकर, आपातकाल और राम मंदिर आंदोलन तक, राजमाता के अनुभवों का व्यापक विस्तार रहा है। राजमाता जी कहती भी थीं- मैं एक पुत्र की नहीं, मैं तो सहस्त्रों पुत्रों की मां हूं।हम सब उनके पुत्र-पुत्रियां ही हैं, उनका परिवार ही हैं।
ये मेरा बहुत बड़ा सौभाग्य है कि मुझे राजमाता जी की स्मृति में 100 रुपये के विशेष स्मारक सिक्के का विमोचन करने का मौका मिला। ये आवश्यक है कि राजमाताजी की जीवन यात्रा को, उनके जीवन संदेश को आज की पीढ़ी भी जाने, उनसे प्रेरणा लें, इसलिए उनके बारे में बार-बार बात करना आवश्यक है। राजमाता ने सामान्य मानवी के साथ, गांव-गरीब के साथ जुड़कर जीवन जिया, उनके लिए जीवन समर्पित किया। राजमाता ने ये साबित किया की जनप्रतिनिधि के लिए राजसत्ता नहीं जनसेवा सबसे महत्वपूर्ण है। राजमाता ने साबित किया कि जनप्रतिनिधि के लिए जनसेवा ही सब कुछ है। राजमाता एक राजपरिवार की महारानी थीं, लेकिन उन्होंने संघर्ष लोकतंत्र की रक्षा के लिए किया, जीवन का महत्वपूर्ण कालखंड जेल में बिताया। आपातकाल के दौरान उन्होंने जो कुछ भी सहा, उसके साक्षी हम लोग हैं।
राष्ट्र के भविष्य के लिए राजमाता ने अपना वर्तमान समर्पित कर दिया था। देश की भावी पीढ़ी के लिए उन्होंने अपना हर सुख त्याग दिया था।राजमाता ने पद और प्रतिष्ठा के लिए न जीवन जीया, न राजनीति की। आपातकाल के दौरान तीहाड़ जेल से राजमाता ने अपनी बेटियों को चिट्ठी लिखी थी। उन्होंने चिट्ठी में जो लिखा था उसमें बहुत बड़ी सीख थी।
उन्होंने लिखा था- अपनी भावी पीढ़ियों को सीना तान कर जीने की प्रेरणा मिले इस उद्देश्स से हमें आज की विपदा को धैर्य के साथ झेलना चाहिए। ऐसे कई मौके आए जब पद उनके पास तक चलकर आए। लेकिन उन्होंने उसे विनम्रता के साथ ठुकरा दिया। एक बार खुद अटल जी और आडवाणी जी ने उनसे आग्रह किया था कि वो जनसंघ की अध्यक्ष बन जाएं।
लेकिन उन्होंने एक कार्यकर्ता के रूप में ही जनसंघ की सेवा करना स्वीकार किया। हम राजमाता के जीवन के हर पहलू से हर पल बहुत कुछ सीख सकते हैं। वो छोटे-छोटे से साथियों को उनके नाम से जानती थीं। सामाजिक जीवन में अगर आप हैं, तो सामान्य से सामान्य कार्यकर्ता के प्रति ये भाव हम सभी के अंदर होना चाहिए। राजमाता एक आध्यात्मिक व्यक्तित्व थीं। साधना, उपासना, भक्ति उनके अन्तर्मन में रची-बसी थी। लेकिन जब वो भगवान की उपासना करती थीं, तो उनके मंदिर में एक चित्र भारत माता का भी होता था। भारत माता की भी उपासना उनके लिए वैसी ही आस्था का विषय था।
राजमाता के आशीर्वाद से देश आज विकास के पथ पर आगे बढ़ रहा है। गाँव, गरीब, दलित-पीड़ित-शोषित-वंचित, महिलाएं आज देश की पहली प्राथमिकता में हैं। पीएम मोदी ने आगे कहा कि ये भी कितना अद्भुत संयोग है कि रामजन्मभूमि मंदिर निर्माण के लिए उन्होंने जो संघर्ष किया था, उनकी जन्मशताब्दी के साल में ही उनका ये सपना भी पूरा हुआ है। सशक्त, सुरक्षित, समृद्ध भारत राजमाता जी का सपना था। उनके इन सपनों को हम आत्मनिर्भर भारत की सफलता से पूरा करेंगे। राजमाता की प्रेरणा हमारे साथ है, उनका आशीर्वाद हमारे साथ है।
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