Opposition Meeting: विपक्षी एकता की बैठक पर PK ने कसा तंज, बोले- एक साथ बैठने से सरकार नहीं बनती

Opposition Meeting Bengaluru: बिहार (Bihar) की राजधानी पटना (Patna) के बाद मंगलवार को कर्नाटक (Karnataka) की राजधानी बेंगलुरु में 26 विपक्षी दलों की दो दिवसीय बैठक संपन्न हुई। इसको लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों एक दूसरे के खिलाफ जमकर बयानबाजी कर रहे हैं। विपक्ष की इस बैठक को लेकर जन सुराज के सूत्रधार और चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने बड़ा बयान दिया है।
प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) ने कहा कि सिर्फ राजनीतिक दलों के नेताओं के एक साथ बैठ जाने से विपक्षी एकता नहीं होती। उसका प्रभाव देश के जन मानस पर ज्यादा नहीं पड़ने वाला है। इसका असर तब होगा, जब विपक्षी पार्टियों और नेताओं के साथ मन भी मिले। देश की जनता का कोई मुद्दा हो, जमीनी स्तर पर काम करने वाले नेता हो, तब जाकर जनता की भावना को वोट में बदल सकते हैं।
आपातकाल के कारण हारी थी इंदिरा: पीके
पीके ने कहा कि कई लोगों को ऐसा लगता है कि 1977 में सारे विपक्षी दल एक साथ आए थे और उन्होंने इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) को हरा दिया, जो लोग ऐसा सोचते हैं, वो उनकी बहुत बड़ी बेवकूफी है। उस समय सभी विपक्षी दलों के एक साथ आने से इंदिरा नहीं हारी, उस समय आपातकाल एक बड़ा मुद्दा था, जयप्रकाश नारायण (Jai Prakash Narayan) का आंदोलन भी था। यदि आपातकाल लागू नहीं होता, जेपी आंदोलन (JP movement) नहीं होता, तो सारे दलों के एक साथ आने से भी इंदिरा गांधी नहीं हारती।
बोफोर्स मुद्दे पर हुई थी राजीव गांधी की हार: प्रशांत किशोर
प्रशांत किशोर ने आगे कहा कि विश्वनाथ प्रताप सिंह (Vishwanath Pratap Singh) 1989 में बोफोर्स मुद्दे के खिलाफ आंदोलन किया और राजीव गांधी (Rajiv Gandhi) की सरकार को हटाकर सत्ता में आए। राजनीतिक दल तो बाद में एक हुए। उससे पहले बोफोर्स मुद्दा बना, जिसके नाम पर देशव्यापी आंदोलन हुआ। इसके बाद लोगों की जनभावनाएं उनसे जुड़ी। इसके बाद 2019 के चुनाव में भी सारे दल एक साथ जमा हुए थे। इसके बावजूद उसका कोई असर नहीं देखने को मिला था।
बस मीडिया के बीच चर्चा का मुद्दा बन सकती है यह बैठक: पीके
प्रशांत ने नीतीश पर तंज कसते हुए कहा जिस भूमिका में आज नीतीश कुमार (Nitish Kumar) दिखने की कोशिश कर रहे हैं, इसी भूमिका में आंध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू (Chandrababu Naidu) भी 2019 में दिखे थे। देश की बात तो छोड़ दीजिए, अपने राज्य आंध्र प्रदेश में भी वे बुरी तरह हार गए थे। जब तक जनता के मुद्दों पर सहमति नहीं होगी, तब तक मुझे नहीं लगता कि इन प्रयासों का कोई असर होगा। राष्ट्रीय स्तर पर क्या राजनीति हो रही है, विपक्ष वाले क्या कर रहा है, ये मेरे सरोकार का विषय नहीं है। ये बैठक बस मीडिया के बीच चर्चा का मुद्दा बन सकती है।
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