खाड़ी में बढ़ते तनाव के बीच उठी भारत के हितों की सुरक्षा की मांग, लोकसभा में कांग्रेस ने उठाया मुद्दा

बीते दो महीने से फारस और ओमान की खाड़ी में अमेरिका और ईरान के बीच जारी तनाव के मुद्दे की गूंज लोकसभा में भी सुनाई दी। बुधवार को शून्यकाल के दौरान कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने इस पर बोलते हुए सरकार से भारत के हितों की रक्षा करने और मसले पर सदन में उचित जवाब देने की मांग की। उन्होंने कहा कि मध्यपूर्व में आज जो हालात हैं। उसका भारत की ऊर्जा स्थिति पर भी प्रभाव पड़ेगा। क्योंकि खाड़ी मार्ग से दुनिया के लगभग 80 फीसदी कच्चे तेल का आयात किया जाता है, जिसमें भारत भी शामिल है।
लेकिन मौजूदा तनाव और बीते 2 मई को अमेरिका द्वारा इस पर भारत को दी जा रही आयात संबंधी छूट वापस लेने के बाद भी क्या सरकार ईरान से तेल का आयात करती रहेगी या फिर उसने कोई अन्य व्यवस्था भी की है कि जिससे देश में तेल की कीमतें न बढ़े? आंकड़ों के हिसाब से भारत ने ईरान से वर्ष 2018-19 में 23.5 मिलियन टन कच्चे तेल का आयात किया था।
डीएवीपी ने कम किया विज्ञापन
लोकसभा में कांग्रेस के संसदीय दल के नेता अधीर रंजन चौधरी ने डीएवीपी द्वारा मीडिया को दिए जा रहे विज्ञापन में की जा रही कटौती का मामला उठाया। उन्होंने कहा कि डीएवीपी द्वारा मीडिया कंपनियों को दिए जाने वाले केंद्रीय मंत्रालयों और पीएसयू के विज्ञापनों की प्रक्रिया को डिजीटाइज करने के साथ इसमें कटौती कर दी गई है। सारे विज्ञापन बंद किए जा रहे हैं। मीडिया वालों का जुर्म केवल इतना है कि यह सरकार के खिलाफ आवाज उठाते हैं।
उन्होंने आगे कहा कि ऐसा करना अपराध नहीं है। राफेल डील में पक्षपात से लेकर भ्रष्टाचार और चुनाव के दौरान लगाए गए मॉडल कोड आफ कंडक्ट के उल्लंघन के मामलों को मीडिया ने ही प्रमुखता से उठाया था। इसलिए सरकार का यह कदम अलोकतांत्रिक है। किसी भी लोकतांत्रिक देश में प्रेस को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है। सभी को इस मूलभूत अधिकार की सुरक्षा के लिए खड़ा होना चाहिए।
Pilatus एयरक्राफ्ट घोटाला
शून्यकाल में ही भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने 2009 में वायुसेना के लिए खरीदे गए 126 पिलाट्स विमानों का मामला उठाते हुए सरकार से मांग की कि इसमें तुरंत एफआईआर कर सम्मिलित व्यक्ति और तत्कालीन मंत्री को जेल जाना चाहिए। सीबीआई ने मामले पर हाल ही में एफआईआर दर्ज कर ली है। इस खरीद को लेकर यूपीए सरकार ने ऑफसेट के नियम बदले थे। संजय भंडारी की कंपनी के साथ इसे लेकर 2009 में समझौता हुआ था।
उसके बाद कमीशनखोरी का पैसा किसी अन्य अकाउंट के जरिए कहीं और पहुंचा। साथ ही उसके जरिए विदेशों में खासकर लंदन में कई जगहों पर प्रॉपर्टी खरीदी गई। इसमें निशिकांत दुबे ने साफ तौर पर राबर्ट वाड्रा का नाम लिया। जिसके बाद कांग्रेस सदस्यों ने हंगामा करना शुरू दिया। हंगामा बढ़ता देख लोकसभा अध्यक्ष ने उनका नाम कार्यवाही से हटाने का आश्वासन दिया।
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