राफेल से बढ़ेगी वायुसेना की ताकत, लेकिन गेमचेंजर कहना जल्दबाजी

करीब दो दशक के लंबे इंतजार के बाद आखिरकार भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमानों के बेड़े में राफेल विमान शामिल होने जा रहे हैं। फ्रांस से 5 विमानों के पहले बैच के साथ इनकी भारत रवानगी हो चुकी है और 29 जुलाई को यह अंबाला एयरबेस पहुंचेंगे। लेकिन इनके आगमन को लेकर हरिभूमि से बातचीत में दी अपनी प्रतक्रियिा में रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि फ्रांस से भारत को राफेल विमानों की दो स्क्वॉड्रन यानि 36 विमान मिलने हैं, जिनकी मदद से वायुसेना की फौरी तौर पर ताकत तो बढ़ेगी। लेकिन उसे गेमचेंजर कहना जल्दबाजी होगा।
समुद्र की एक बूंद बराबर
वायुसेना के वरष्ठि सेवानिवृत अधिकारी एयर मार्शल बी़ के़ पांडे ने कहा कि राफेल की 2 स्क्वॉड्रन से वायुसेना की दशा और दिशा को पूरी तरह से बदल जाएगी। यह कहना ठीक नहीं होगा। क्योंकि भारत को चीन और पाकस्तिान के साथ जिन दोनों मोर्चों पर युद्ध की चुनौती मिलने का खतरा है। उसके लिए उसे लड़ाकू विमानों की कुल 42 अधिकृत स्क्वॉड्रन की बेहद जरूरत है। जबकि आज उसके पास केवल 32 स्क्वॉडन ही हैं।
इसमें से 12 स्क्वॉड्रन जिसमें फ्रांसिसी जगुवार लड़ाकू विमानों की 6 स्क्वॉड्रन और रूसी मिग-21बाइसन विमानों की 6 स्क्वॉड्रन आगामी दस साल के दौरान वायुसेना के बेड़े से बाहर हो जाएंगी। तब उसके पास लड़ाकू विमानों की कुल 23 स्क्वॉड्रन ही बचेंगी। इसमें तय समय पर डिलीवरी होने पर राफेल की 2 स्क्वॉड्रन जोड़ देने पर कुल 25 स्क्वॉडन ही होंगी। चीन के पास लड़ाकू विमानों की कुल 80 और पाकस्तिान के पास 20 स्क्वॉड्रन हैं। ऐसे में इनकी साझा चुनौती का मुकाबला करना भारत के लिए बेहद मुश्किल हो जाएगा।
120 लड़ाकू विमान चाहिए
एयर मार्शल अनिल चौपड़ा ने कहा कि भारत को दो सीमाओं पर युद्ध की चुनौती का सामना करने के लिए लड़ाकू विमानों की 50 स्क्वॉड्रन की जरूरत पड़ेगी। लेकिन इन्हें हम एक तरफ भी रखकर देखें तो 42 स्वीकृत स्क्वॉड्रन तो होनी ही चाहिए। ऐसे में राफेल की दो स्क्वॉड्रन बहुत बड़ा बदलाव नहीं लेकर आ सकती हैं। अगले पांच से दस साल में हमें राफेल जैसे कुल 120 लड़ाकू विमानों की जरूरत है।
राफेल का इतिहास
वर्ष 2002 में वायुसेना ने 126 राफेल लड़ाकू विमानों को लेकर आवश्यकता जताई थी। लेकिन मौजूदा सरकार ने इसकी खरीद को लेकर टेंडर 2007 में जारी किया। जिसके बाद राफेल बनाने वाली फ्रांसिसी कंपनी डेसाल्ट एवीएशन और यूरोपियन यूरोफाइटर दो मुख्य वक्रिेताओं के राफरूप में सामने आई। लेकिन 2012 में डेसाल्ट ने भारत के एचएएल के साथ राफेल के लिए भागीदारी करने से मना कर दिया। इसके बाद 126 विमानों का प्रोजेक्ट खटाई में पड़ गया। इसके बाद भाजपा सरकार सत्ता में आई और 2015 में 36 राफेल विमानों की सीधी फ्रांस सरकार के साथ खरीद करने के लिए करीब 59 हजार करोड़ रूपए का समझौता किया गया।
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